श्रावण मास : महाकालेश्वर की सवारी

नगर भ्रमण पर उज्जयिनी के राजा

स्मृति आदित्य
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श्रावण की सुहानी फुहारों के बीच मन धर्म के प्रति सहज ही आकर्षित होने लगता है। इस मौसम में शिव नगरी उज्जयिनी का सौन्दर्य, धर्म से जुड़ कर पवित्र हो जाता है। विश्व भर में भगवान महाकालेश्वर की श्रावण मास की सवारी प्रसिद्ध है। श्रावण के प्रति सोमवार को निकलने वाली यह विशेष सवारी देखने लोग दूर-दूर से आते हैं।

उज्जैन निवासी स्वयं को सौभाग्यशाली मानते हैं कि वे भगवान शिव के सान्निध्य में रहते हैं। श्रावण के हर सोमवार का नजारा इस शहर में कुछ इस तरह होता है कि चाहे हिन्दू हो या मुसलमान, सुबह अपने राजा के सम्मान में व्रत रखते है। शाम चार बजे सवारी के लिए राजाधिराज भूतभावन भगवान महाकालेश्वर तैयार होते हैं। कहा जाता है कि उज्जैन में भगवान शिव राजा के रूप में विराजमान है। श्रावण मास में वे अपनी प्रजा का हालचाल जानने के लिए नगर भ्रमण पर निकलते हैं।

प्रजा अपने राजा से मिलने के लिए इस कदर बेताब होती है कि शहर के चौराहे-चौराहे पर स्वागत की विशेष तैयारी की जाती है। शाम चार बजे राजकीय ठाट-बाट और वैभव के साथ राजा महाकाल विशेष रूप से फूलों से सुसज्जित चाँदी की पालकी में सवार होते हैं। जैसे ही राजा महाकाल पालकी में विराजमान होते हैं। ठंडी हवा के एक शीतल झोंके से या हल्की फुहारों से प्रकृति भी उनका भीना स्वागत करती है।

महाकालेश्वर मंदिर का समूचा परिसर जय-जयकारों से गूँज उठता है। हाथी, घोड़े, चँवर डूलाते कर्म‍ी, सरकारी बैंड की दिल धड़काती धुन, शहर के प्रतिष्ठित गणमान्य नागरिक, आम जन की श्रद्धा का उमड़ता सैलाब, बिल्वपत्र की विशेष रूप से बनी माला, झाँझ-मंजीरे नगाड़ों के साथ होता अनवरत कीर्तन और अपने राजा को देख भर लेने की विकलता के साथ दर्शन करने वालों का मन भाव-विभोर हो जाता है।

राजा महाकाल सबसे मिलते हैं,सबको दर्शन देते हैं। एक तरफ सुरक्षा का दायरा और दूसरी तरफ भक्ति का चरम उत्कर्ष, जिसने यह नजारा पहली बार देखा उसकी तो भावावेश में आँखें ही छलछला जाती है।

  प्रजा अपने राजा से मिलने के लिए इस कदर बेताब होती है कि शहर के चौराहे-चौराहे पर स्वागत की विशेष तैयारी की जाती है। शाम चार बजे राजकीय ठाट-बाट और वैभव के साथ राजा महाकाल विशेष रूप से फूलों से सुसज्जित चाँदी की पालकी में सवार होते हैं।      
नगर के कुछ खास हिस्सों से गुजरती सवारी का सबसे खूबसूरत दृश्य क्षिप्रा नदी के किनारे देखने को मिलता है, जब नदी के दूसरे छोर से संत-महात्मा भव्य आरती करते हैं और विशेष तोप की सलामी के बीच राजा महाकाल क्षिप्रा का आचमन करते हैं। सवारी के साथ पधारे गजराज अपनी सुँड को ऊँची कर राजा के सम्मान में हर्ष व्यक्त करते हैं। पवित्र मंत्रोच्चार के साथ सवारी वापस मंदिर पहुँचती है। शहरवासी दिन भर अपने राजा के सम्मान में किया व्रत सवारी के दर्शन के बाद ही खोलते हैं।

राजा महाकाल इस तरह श्रावण के प्रति सोमवार नगर भ्रमण करते हैं और कहते हैं कि इस दौरान वे इतनी राजसी मुद्रा में होते हैं कि हर अभिलाषा को पूरी करने का आशीर्वाद देते चलते हैं। देश के अलग-अलग प्रांतों से लोग सोमवार की इस दिव्य सवारी के दर्शन करने आते हैं, और मनचाहा वरदान लेकर जाते हैं।

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