स्वजन वगैरह आकर्षित/वशवर्ती करने हेतु

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हेतु- स्वजन वगैरह आकर्षित/वशवर्ती होते हैं।

मन्ये वरं हरि-हरादय एव दृष्टा दृष्टेषु येषु हृदयं त्वयि तोषमेति ।
किं वीक्षितेन भवता भुवि येन नाल्यः कश्चिन्मनो हरति नाथ, भवान्तरेऽपी । (21)

यह तो ठीक ही हुआ, जो मैंने अन्य देव-देवियों को पहले ही देख लिए! चूँकि आपको देखने के बाद तो यह हृदय आप में ही खो गया! जगत में अब दूसरा ऐसा है भी कौन, जो जन्म-जन्मांतर में भी तेरे में डूबे हुए इस हृदय को तनिक भी लुभा सके?

ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो पण्णसमणाणं ।

मंत्र- ॐ नमः श्री मणिभद्र जय-विजय-अपराजिते सर्वसौभाग्यं सर्वसौख्यं कुरु कुरु स्वाहा ।
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