परमात्मा को भी प्रिय है 'नाम'

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इस संपूर्ण जगत में सामान्यतः व्यक्ति अपना नाम हो और लोग उसे पूछें, इज्जत दें, उसका नाम लें इस हेतु सदा प्रयासरत रहता है। परमात्मा का यह एक गुण तो हमने लिया है कि नाम होना चाहिए।


 

इस धरा पर सभी संत-महात्मा भी यही कहते हैं कि परमात्मा को सबसे प्रिय है तो वह है, उसका नाम अर्थात परमात्मा भी नाम चाहता है और मानव भी नाम चाहता है। परंतु इनमें जो अंतर है वह अत्यंत महत्वपूर्ण व सारगर्भित है। 
 
परमात्मा जो चाहता है वह उस परम तत्व का नाम चाहता है जिसमें अपार शक्ति समाई है और मानव जो नाम चाहता है वह अपने ही स्वयं के इस नश्वर शरीर का नाम चाहता है। वास्तव में ऐसे न जाने कितने शरीर हमने बदले हैं और जब यह मानव जीवन प्राप्त करके अवसर आया है कि हम उस प्रभु का नाम लें और उसकी प्रेममय समीपता प्राप्त करें तब अपने ही स्वयं के इस देह के नाम के चक्कर में हम उलझ जाते हैं। 
 
हम देखते हैं कि जनसामान्य व्यक्ति का नाम थोड़े समय तक तो लोग याद करते हैं, फिर सब भूलकर अपने काम में लग जाते हैं और शेष रहता है तो मात्र उन महापुरुषों व संतों का नाम जिन्होंने निःस्वार्थ भाव से जगत के कल्याण हेतु सदैव कार्य किया है और जनमानस के उद्धार हेतु उस परमात्मा का नाम हमें दिया है। 
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