महालक्ष्मी के आह्वान से मन प्रकाशित होता है

Webdunia
शनिवार, 18 अक्टूबर 2014 (13:24 IST)
ज्योतिर्विद डॉ. रामकृष्ण डी. तिवारी 
 
वैदिक ग्रंथों में मन को सर्वशक्तिमान ईश्वर का स्वरूप ब्रह्म संबोधित किया है। उसे सृष्टि का निर्माता ब्रह्मा कहा गया है। इस जगत में इससे अधिक बलशाली कुछ नहीं है। यह प्रकाशक होकर ज्योति रूप में विद्यमान विद्या (ज्ञान) का द्योतक है। त्रिकाल इसमें ही है। इसके शुचि होने से दुनिया में हिंसा, द्वेष, द्वंद्व सहित समस्त अनीति के विनाश के लिए अतिरिक्त प्रयास की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। 


 
उपनिषदों के अनुसार मन अभीष्ट सिद्धि में वाहन का कर्म करता है। इससे असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है। मन में निवास करने वाली इच्छाशक्ति और उत्साह को पति-पत्नी के संबंध से वर्णित किया गया है। संकल्प (विचार) से इच्छाशक्ति का जन्म हुआ है। संकल्प मन से ही उत्पन्न होने पर सफल होता है। संकल्प शक्ति (विचार शक्ति) से किसी भी आध्यात्मिक, भौतिकीय क्षेत्र पर विजय प्राप्त की जा सकती है। इसके अभाव में चींटी मारना भी दुष्कर कर्म है। 
 
सा ते काम दुहिता धेनुरुच्यते,
यामाहुर्वाचं कवयो विराजम्‌। 
तया सपत्नान्‌ परि वृङ्ग्धि ये मम,
पर्येनान्‌ प्राणः पशवो जीवनं वृणक्तु
अथर्ववेद 9.2.5
 
अर्थात्‌ हे इच्छाशक्ति! उस तुम्हारी पुत्री को कामधेनु कहते हैं, जिनको विद्वान्‌जन विराट वाणी कहते हैं। उस वाणी से मेरे शत्रुओं का नाश करो। इन शत्रुओं को प्राणशक्ति, पशुधन और जीवन पूर्णतया छोड़ दें।
 
जिस प्रकार मन में भावों का उदय होता है, उसी तरह की वाणी व व्यवहार दृश्यमान होता है। जो समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाली कामधेनु है, उसका रिश्ता मन से सीधा है। जिसकी ताकत अणु-परमाणु अस्त्र-शस्त्र से अधिक है। जिसकी गति से अधिक किसी की भी चाल नहीं है। जिसके संचालन के लिए किसी बृहत्‌ भौतिक प्रबंधन की जरूरत नहीं है। जो जनसामान्य में असामान्य होकर सदैव विराजमान है। इस रत्नरूपी लक्ष्मी की पूजा व प्रयोग करके हम अपने जीवन को समृद्ध बना सकते हैं। 
 
इस देश ने हमेशा इसी शक्ति के बल पर संसार का गुरु होने का गौरव प्राप्त किया। मन की पवित्रता एवं विचार शक्ति के माध्यम से साधनहीन वन में तप करके जनकल्याण के लिए जो सूत्र हमारे ऋषियों ने दिए, वे विज्ञान की संतृप्त अवस्था के नाम से जाने जाते हैं। इससे अधिक मूल्यवान लक्ष्मी कुछ नहीं है। 
 
ज्योति पर्व पर हमारी मन की शक्ति में शुद्ध-पवित्र विचार आएं एवं इन संकल्प को प्राप्त करने की इच्छाशक्ति सभी को मिले। जो प्रत्येक जन के लिए सहज-सुलभ हैं। केवल उसे ज्ञात करके उसका प्रयोग प्रारंभ हो सके, यही शुभकामना है। 

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