इन 11 अंधविश्वासों के पीछे भागती दुनिया...

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
अंधविश्वास दुनिया के कोने-कोने में फैले हुए हैं। कभी-कभी तो उन्हें संस्कृति की धरोहर का एक हिस्सा मानकर अनमोल समझा जाता है, तो कभी-कभी इनमें विज्ञान ढूंढा जाता है। पश्चिम में जहां अंधविश्वास को गंभीरता से नहीं लिया जाता, वहीं पूर्व में इसके प्रति विश्वास है, तो अफ्रीका में इसके प्रति जुनून है। अंधविश्वास की असली जड़ भूत-प्रेत का डर, जादू-टोने होने का डर, प्रेम-विवाह, व्यापार-नौकरी में असफलता का डर और दुर्भाग्य घटित होने का डर है।
 
हिन्दू धर्म के 10 विश्वास या अंधविश्वास, जानिए
 
अफ्रीका जैसे देशों के लोगों की जिंदगी में धर्म, विज्ञान से ज्यादा अंधविश्वास की पकड़ ज्यादा मजबूत है। अफ्रीकी संस्कृति का अधिकतर हिस्सा अंधविश्वास की बुनियाद पर बना है। हालांकि पश्चिम में पुराने अंधविश्वासों की जगह नए अंधविश्वासों ने ले ली है।
 
कभी-कभी अंधविश्वास बहुत काम के होते हैं तो कभी-कभी ये नुकसानदायी। जैसे जादू एक झूठ है लेकिन वह सत्य की तरह आभासित होता है। जब तक यह मनोरंजन का साधन है, तब तक ठीक है लेकिन जब इसके दम पर लोगों को धर्मांतरित किया जाए या उनको ठगा जाता है तो यह सामाजिक बुराई बन जाता है। चमत्कार या किसी आस्था के बल पर किसी व्यक्ति का जीवन बदल जाए, उसका रोग ठीक हो जाए, उसके संकट दूर हो जाए या अचानक वह धनवान बन जाए, तो उसे ठीक माना जा सकता है, लेकिन किसी के रोग ठीक करके बदले में उसे ठगा जाए या धर्मांतरित किया जाए तो यह अपराध है। खैर... आओ हम जानते हैं ऐसे अंधविश्वास जिनके बारे में कुछ भी कहना मुमकिन नहीं।
 
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गंडा-ताबीज : किसी की बुरी नजर से बचने, भूत-प्रेत या मन के भय को दूर करने या किसी भी तरह के संकट से बचने के लिए गंडे-ताबीज का उपयोग किया जाता है। गंडा-ताबीज करना प्रत्येक देश और धर्म में मिलेगा। चर्च, दरगाह, मस्जिद, मंदिर, सिनेगॉग, बौद्ध विहार आदि सभी के पुरोहित लोगों को कुछ न कुछ गंडा-ताबीज देकर उनके दुख दूर करने का प्रयास करते रहते हैं। हालांकि कई तथाकथित बाबा, संत और फकीर ऐसे हैं, जो इसके नाम पर लोगों को ठगते भी हैं। 
विश्वास का खेल : यदि आपके मन में विश्वास है कि यह गंडा-ताबीज मेरा भला करेगा तो निश्चित ही आपको डर से मुक्ति मिल जाएगी। मान्यता है कि नाड़ा बांधने या गले में ताबीज पहनने से सभी तरह की बाधाओं से बचा जा सकता है, लेकिन इन गंडे-ताबीजों की पवित्रता का विशेष ध्यान रखना पड़ता है अन्यथा ये आपको नुकसान पहुंचाने वाले सिद्ध होते हैं। जो लोग इन्हें पहनकर शराब आदि का नशा करते हैं या किसी अपवित्र स्थान पर जाते हैं उनका जीवन कष्टमय हो जाता है।
 
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भभूति : धूने की राख से बनने वाली भभूति को 'ऊदी' भी कहते हैं। भारत में इसका ज्यादा प्रचलन है। मान्यता है कि किसी सिद्ध बाबा या स्थान से प्राप्त की गई भभूति को लगाने से संकट दूर रहते हैं और व्यक्ति को हर कार्य में सफलता मिलती है। ऊदी में शिर्डी के साईं बाबा के स्थान की ऊदी को सबसे चमत्कारिक माना जाता है।
 
इसे 'विभूति' भी कहते हैं। इसे व्यक्ति अपने मस्तक पर लगाता है और थोड़ी सी जीभ पर रखता है। मान्यता के अनुसार भभूति हर रोग, शोक, संकट और बाधा को दूर करने वाली होती है। यह जीवन में शांति और सुख देने वाली होती है।
 
विभूति का सच : प्राचीनकाल में यज्ञ में हर तरह की औषधियां डाली जाती थीं जिसके चलते यज्ञ की विभूति को पवित्र और रोगों को दूर करने वाली माना जाता था। लोग इसे अपने मस्तक पर लगाते थे और कुछ मात्रा में इसे ग्रहण भी करते थे। लेकिन आजकल तो कंडे या बबूल की राख से ही भभूति तैयार कर ली जाती है।
 
कैसे शुरू हुआ भभूति का प्रचलन : मध्यकाल में शैवपंथ के सिद्ध योगी, बाबा, अवधूत आदि संतजन लोगों को भभूति देकर उनकी हर इच्छा की पूर्ति करते थे। मध्यकाल में गुरु मत्स्येंद्र नाथ और गुरु गोरक्षनाथ लोगों को विभूति देकर उनके संकट दूर करते थे। बाद में शिर्डी के सांईं बाबा की भभूति के चमत्कारों के किस्से सुनने को मिलते हैं।
 
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नींबू और मिर्च : दुकानों के दरवाजों पर नींबू और हरी मिर्च को एक धागे में बांधकर लटकाया जाता है। इसे नजरबट्‍टू कहते हैं। माना जाता है कि इससे किसी भी प्रकार की नजर-बाधा और जादू-टोने से बचा जा सकता है। हालांकि आयुर्वेद में नींबू को एक चमत्कारिक दवाई माना जाता है।
 
मान्यता अनुसार बुरी नजर लगने के बाद व्यक्ति का चलता व्यवसाय बंद हो जाता है, घर में बरकत समाप्त हो जाती है। इसके चलते जहां पैसों की तंगी आ जाती है, वहीं स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां भी उत्पन्न हो सकती हैं।
 
इससे बचने के लिए दुकानों और घरों के बाहर नींबू-मिर्च टांग दी जाती है। ऐसा करने से जब बुरी नजर वाला व्यक्ति इसे देखता है तो नींबू का खट्टा और मिर्च का तीखा स्वाद बुरी नजर वाले व्यक्ति की एकाग्रता को भंग कर देता है। यह बुरी नजर से बचने का उपाय है।
 
नींबू का वास्तु : माना जाता है कि नींबू का पेड़ होता है, वहां किसी भी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा सक्रिय नहीं हो पाती है। नींबू के वृक्ष के आसपास का वातावरण सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर रहता है। इसके साथ वास्तु के अनुसार नींबू का पेड़ घर के कई वास्तुदोष भी दूर करता है।
 
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पवित्र जल : जल को हिन्दू धर्म में पवित्र करने वाला माना गया है। जल की पवित्रता के बारे में वेद और पुराणों में विस्तार से उल्लेख मिलता है। यह माना जाता है कि गंगा में स्नान करने से पाप धुल जाते हैं और मन निर्मल हो जाता है। गंगा नदी के जल को सबसे पवित्र जल माना जाता है। इसके जल को प्रत्येक हिन्दू अपने घर में रखता है। गंगा नदी दुनिया की एकमात्र नदी है जिसका जल कभी सड़ता नहीं है।
 
पवित्र जल छिड़ककर कर लोगों को पवित्र किए जाने की परंपरा भी है। आचमन करते वक्त भी पवित्र जल का महत्व माना गया है। मूलत: इससे कुंठित मन को निर्मल बनाने में सहायता मिलती है। मन के निर्मल होने को ही पापों का धुलना माना गया है।
 
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झाड़-फूंक : झाड़-फूंक कर लोगों का भूत भगाने या कोई बीमारी का इलाज करने, नजर उतारने या सांप के काटे का जहर उतारने का कार्य ओझा लोग करते थे। यह कार्य हर धर्म में किसी न किसी रूप में आज भी पाया जाता है।
 
पारंपरिक समाजों में ऐसे व्यक्ति को 'ओझा' कहा जाता है। कुछ ऐसे दिमागी विकार होते हैं, जो डॉक्टरों से दूर नहीं होते हैं। ऐसे में लोग पहले ओझाओं का सहारा लेते थे। ओझा की क्रिया द्वारा दिमाग पर गहरा असर होता था और व्यक्ति के मन में यह विश्वास हो जाता था कि अब तो मेरा रोग और शोक ‍दूर हो जाएगा। यह विश्वास ही व्यक्ति को ठीक कर देता था।
 
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चंगाई सभा : आजकल दुनियाभर में ईसाई धर्म के प्रचार और प्रसार के तरीके बदल गए हैं। भारत में जहां चंगाई सभा करके लोगों को गंभीर से गंभीर रोग ठीक करने का दावा किया जाता है, वहीं पश्चिम में उत्तेजनापूर्ण भाषणों से लोगों को ईसाई धर्म से जोड़े रखने का उपक्रम किया जाता है। हालांकि इस तरह के ठगने के कार्य हिन्दू धर्म में भी किए जाते हैं। संत आसाराम, संत निर्मल बाबा जैसे लोग इसका उदाहरण है।
 
'चंगाई' में ईसाई पादरी और सिस्टर्स गरीबों और मरीजों को इकट्ठा करते हैं और फिर ईश्‍वर की प्रार्थना द्वारा लोगों को ठीक करते हैं। उसमें से कई तो मनोवैज्ञानिक खेल के प्रभाव में आकर फौरी तौर पर ठीक होने का दावा करते हैं, लेकिन बाद में वे फिर से ‍वैसे ही बीमार हो जाते हैं। चंगाई सभा की भीड़ में अंतत: धर्मांतरण का खेल खेला जाता है। ये चंगाई सभा अधिकतर आदिवासी और ग्रामीण क्षेत्रों में होती है।
 
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अंगूठी-रत्न : दुनियाभर में अंगूठी पहनने का प्रचलन है। ज्यादातर लोग राशि अनुसार अंगूठी पहनते हैं। इन लोगों का विश्वास है कि इससे हमारे बुरे दिन मिट जाएंगे और अच्छे दिन शुरू हो जाएंगे। बहुत से लोग अंगूठी पहनने की परंपरा को 'रत्न विज्ञान' कहते हैं। भारत में ज्योतिष लोग अंगूठी पहनने की सलाह देते हैं। 
 
क्या व्यक्ति के जीवन पर रत्न या अंगूठी प्रभाव डालते हैं? उन्नति, धन एवं यश-कीर्ति के लिए लोग अंगूठी पहनते हैं। इसी के चलते विविध मोल और अनमोल रत्नों का व्यापार पूरे विश्व में फैला हुआ है। अधिकतर लोगों को नकली नगीना ही थमा दिया जाता है।
 
प्राचीनकाल और मध्यकाल की शुरुआत में लोग इसे आभूषण के रूप में ही पहनते थे लेकिन आजकल ये ग्रह-नक्षत्रों को सुधारने की वस्तु बन गए हैं। ग्रह-नक्षत्रों की अनुकूलता और उन्हें शांत करने के लिए लोग अंगूठी रत्न के अलावा यंत्र और माला को भी धारण करते हैं। अंगूठी एक आभूषण है जिसे अंगुली में पहना जाता है।
 
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जादू-टोना, यंत्र-मंत्र-तंत्र : कई लोग अपने संकट को दूर करने और जीवन में धन, संपत्ति, सफलता, नौकरी, स्त्री और प्रसिद्धि पाने के लिए किसी यंत्र, मंत्र या तंत्र का सहारा लेते हैं।

मंत्र तक बात समझ में आती है लेकिन तंत्र और यंत्र में भी लोग भरोसा करते हैं। कई बार लोग किसी तांत्रिक के चक्कर में उलझकर पैसा, समय और जिंदगी बर्बाद कर लेते हैं।
 
अखबारों, लोकल टीवी चैनलों पर कई तरह के बाबाओं, तांत्रिकों और ज्योतिषियों आदि के लुभावने विज्ञापनों के जाल में फंसकर लोग अपना धन लुटा आते हैं। 
 
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कर्मकांड या रीति-रिवाज : बहुत से धर्मों में ऐसे कर्मकांड या रीति रिवाज हैं जिसका पालन करना धार्मिक कृत्य माना जाता है। इनका पालन करने से व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि तो मिलती है साथ ही उससे जन्नत या स्वर्ग का रास्ता साफ हो जाता है।
 
पूजा-पाठ और कर्मकांडों की लंबी लिस्ट है। कर्मकांड को कुछ विद्वान धर्म का हिस्सा नहीं मानते तो कुछ लोग इसे अंधविश्वास मानते हैं। जो लोग कर्मकांड को मानते हैं उनके अनुसार इससे धर्म और समाज की व्यवस्था बनी रहती है। सभ्य समाज के लिए कर्मकांड जरूरी है।
 
अब सवाल उठता है कि कौन से कार्य कर्मकांड रीति-रिवाज हैं और कौन से कार्य अंधविश्वास? खैर जो भी हो, धार्मिक कर्मकांड करने से लोगों को मन में शांति मिलती है।
 
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ज्योतिषी : क्या ज्योतिषी या लाल किताब के उपाय से व्यक्ति का भाग्य बदल सकता है? आजकल ज्योतिषी और लाल किताब का प्रचलन बढ़ गया है। लोग भारतीय ज्योतिष के अलावा अब पाश्चात्य और चीनी ज्योतिष में भी विश्वास करने लगे हैं। इसके अलावा टैरो कार्ड और न जाने कौन-कौन-सी ज्योतिषी विद्या प्रचलन में आ गई है। 
अंगूठा शास्त्र, राशियां, कुंडलिनी, लाल किताब आदि असंख्‍य तरह की ज्योतिषी धारणा के चलते लाखों ज्योतिषी पैदा हो गए हैं और सभी ज्योतिषी लोगों का भविष्य सुधारने और बताने का व्यापार कर रहे हैं। यह विद्या कितनी वैज्ञानिक है, इस पर तो अभी शोध होना बाकी है। डरे हुए, अंधविश्वासी या कंफ्यूज लोग सभी को मानते हैं। 
 
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पारंपरिक अंधविश्वास और टोटके : ऐसे बहुत से अंधविश्वास हैं, जो लोक परंपरा से आते हैं जिनके पीछे कोई ठोस आधार नहीं होता। ये शोध का विषय भी हो सकते हैं। इन टोटको का धर्म से कोई संबंध नहीं होता। जानते हैं कि प्रचलित धारणाएं....
 
* चौराहे पर लोग नींबू काटकर क्यों रखते हैं?
* चौराहे पर रखे टोटको को ठोकर मारने वाला मुसिबत में पड़ जाता है?
* आप बिल्ली के रास्ता काटने पर क्यों रुक जाते हैं?
* जाते समय अगर कोई पीछे से टोक दे तो आप क्यों चिढ़ जाते हैं?
* किसी दिन विशेष को बाल कटवाने या दाढ़ी बनवाने से परहेज क्यों करते हैं?
* क्या आपको लगता है कि घर या अपने अनुष्ठान के बाहर नींबू-मिर्च लगाने से बुरी नजर से बचाव होगा?
* कोई छींक दे तो आप अपना जाना रोक क्यों देते हैं?
* क्या किसी की छींक को अपने कार्य के लिए अशुभ मानते हैं?
* घर से बाहर निकलते वक्त अपना दायां पैर ही पहले क्यों बाहर निकालते हैं?
* जूते-चप्पल उल्टे हो जाए तो आप मानते हैं कि किसी से लड़ाई-झगड़ा हो सकता है?
* रात में किसी पेड़ के नीचे क्यों नहीं सोते?
* रात में बैंगन, दही और खट्टे पदार्थ क्यों नहीं खाते?
* रात में झाडू क्यों नहीं लगाते और झाड़ू को खड़ा क्यों नहीं रखते?
* अंजुली से या खड़े होकर जल नहीं पीना चाहिए।
* क्या बांस जलाने से वंश नष्ट होता है।
* शनिवार को लोहा, तेल, काली उड़द आदि नहीं खरीदना चाहिए।
* मंगलवार को नाखून काटना गलत है।
* चंद्र या सूर्य ग्रहण में बाहर नहीं निकलना।
 
ऐसे ढेरों विश्वास और अंधविश्वास हैं, जो लोक परंपरा और स्थानीय लोगों की मान्यताओं पर आधारित हैं इनका धर्म से कोई लेना देना नहीं।
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