Biodata Maker

चातुर्मास: आध्यात्मिक शुद्धि और प्रकृति से सामंजस्य का पर्व

सुशील कुमार शर्मा
शनिवार, 5 जुलाई 2025 (08:06 IST)
चातुर्मास, संस्कृत के 'चतुः' (चार) और 'मास' (महीने) शब्दों से मिलकर बना है, जो भारतीय उपमहाद्वीप में एक विशिष्ट चार महीने की अवधि को दर्शाता है। यह वह समय होता है जब प्रकृति अपने चरम पर होती है, धरती वर्षा से तृप्त होती है और वातावरण में एक विशेष ऊर्जा का संचार होता है।

हिंदू धर्म में इसे आध्यात्मिक साधना, संयम और आत्मचिंतन का पवित्र काल माना जाता है। आषाढ़ शुक्ल एकादशी (देवशयनी एकादशी) से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी (देवोत्थान एकादशी) तक चलने वाले इस चातुर्मास का न केवल धार्मिक बल्कि वैज्ञानिक और सामाजिक महत्व भी है, जो इसे आज भी प्रासंगिक बनाता है।
 
चातुर्मास का धार्मिक और पौराणिक महत्व: हिंदू मान्यताओं के अनुसार, देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में चार महीने के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं। इस दौरान सृष्टि का संचालन भगवान शिव करते हैं। यह अवधि शुभ कार्यों, जैसे विवाह, गृह प्रवेश आदि के लिए वर्जित मानी जाती है, क्योंकि भगवान के शयनकाल में मांगलिक कार्य करना उचित नहीं माना जाता।
 
इस दौरान विशेष रूप से तपस्या, व्रत, पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठानों पर जोर दिया जाता है। साधु-संत इस अवधि में एक स्थान पर चातुर्मास करते हैं, जिसे 'वर्षावास' या 'चौमासा' भी कहते हैं, और अपने भक्तों को धर्म का ज्ञान देते हैं। यह स्वयं पर नियंत्रण, इंद्रियों को साधने और आध्यात्मिक उन्नति का समय होता है।
 
जैन धर्म में भी चातुर्मास का विशेष महत्व है, जहां इसे 'पर्युषण पर्व' के रूप में मनाया जाता है। जैन मुनि और साध्वियां इस दौरान विहार करना बंद कर देते हैं और एक स्थान पर रुककर साधना करते हैं, ताकि वर्षाकाल में उत्पन्न होने वाले सूक्ष्म जीवों को हानि न पहुंचे। यह अहिंसा, आत्मशुद्धि और तपस्या का महापर्व होता है। बौद्ध धर्म में भी बुद्ध के समय से ही 'वर्षावास' की परंपरा रही है, जहां भिक्षु वर्षा ऋतु में भ्रमण त्याग कर एक स्थान पर ध्यान और अध्ययन करते हैं।
 
वैज्ञानिक और पर्यावरणीय प्रासंगिकता : चातुर्मास की अवधारणा केवल धार्मिक नहीं, बल्कि इसके पीछे गहरा वैज्ञानिक और पर्यावरणीय तर्क भी निहित है:
 
मौसम और स्वास्थ्य: चातुर्मास मुख्य रूप से मानसून का समय होता है। इस दौरान वातावरण में नमी बढ़ जाती है, जिससे विभिन्न प्रकार के सूक्ष्मजीव, बैक्टीरिया और वायरस पनपते हैं। यह अवधि बीमारियों के फैलने के लिए अधिक अनुकूल होती है। इस दौरान भोजन में संयम बरतना, हल्का और सुपाच्य भोजन ग्रहण करना, और साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है। धार्मिक नियम जैसे प्याज, लहसुन, बैंगन आदि के सेवन से परहेज करना, वास्तव में इस अवधि में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बनाए रखने में मदद करता है।
 
पर्यावरण संरक्षण: वर्षा ऋतु में पृथ्वी पर नए जीवन का संचार होता है। इस दौरान कई छोटे-छोटे जीव-जंतु, कीट-पतंग और वनस्पतियां उत्पन्न होती हैं। साधु-संतों द्वारा वर्षाकाल में यात्रा न करने का नियम अप्रत्यक्ष रूप से इन जीवों को कुचलने से बचाने और पर्यावरण को संरक्षित करने का संदेश देता है। यह प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने की भारतीय परंपरा का ही एक हिस्सा है।
 
शरीर शोधन: इस अवधि में व्रत और उपवास करने से शरीर का डिटॉक्सिफिकेशन (विषहरण) होता है। यह पाचन तंत्र को आराम देता है और शरीर को अंदर से शुद्ध करता है। यह एक प्रकार की प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति है जो सदियों से चली आ रही है।
 
सामाजिक और व्यक्तिगत प्रासंगिकता: आज के आधुनिक युग में भी चातुर्मास की प्रासंगिकता कम नहीं हुई है, बल्कि कई मायनों में और बढ़ गई है:
 
आत्मचिंतन और आत्म-सुधार: भागदौड़ भरी जिंदगी में हमें अक्सर रुककर अपने भीतर झांकने का मौका नहीं मिलता। चातुर्मास आत्मचिंतन और आत्म-सुधार के लिए एक आदर्श समय प्रदान करता है। यह हमें अपनी आदतों, विचारों और व्यवहार पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर देता है।
 
संयम और अनुशासन: यह अवधि हमें इंद्रियों पर नियंत्रण रखना सिखाती है। उपवास, सात्विक भोजन और अनावश्यक भोग-विलास से दूर रहना हमें अनुशासित जीवन जीने की प्रेरणा देता है। यह मानसिक दृढ़ता को बढ़ाता है।
 
पारिवारिक और सामुदायिक बंधन: चातुर्मास के दौरान होने वाले धार्मिक आयोजन और व्रत-त्योहार परिवार के सदस्यों और समुदाय को एक साथ लाते हैं। लोग मिलकर पूजा-अर्चना करते हैं, कथाएं सुनते हैं और एक-दूसरे के साथ समय बिताते हैं, जिससे सामाजिक सद्भाव बढ़ता है।
 
प्रकृति से जुड़ाव: यह हमें प्रकृति के करीब लाता है। वर्षा की बूंदों, हरियाली और वातावरण में ताजगी का अनुभव करने से हम अपने आसपास के पर्यावरण के प्रति अधिक संवेदनशील बनते हैं।
 
डिजिटल डिटॉक्स: आधुनिक जीवन में हम डिजिटल उपकरणों से चौबीसों घंटे घिरे रहते हैं। चातुर्मास में कुछ नियमों का पालन करके हम एक प्रकार का डिजिटल डिटॉक्स कर सकते हैं, जिससे मानसिक शांति और एकाग्रता बढ़ती है।
 
चातुर्मास केवल एक धार्मिक अनुष्ठान या चार महीनों की अवधि नहीं है। यह भारतीय संस्कृति की गहरी समझ, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पर्यावरणीय चेतना का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि कैसे हम प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाकर, स्वयं को अनुशासित कर और आध्यात्मिकता की ओर बढ़कर एक स्वस्थ और सार्थक जीवन जी सकते हैं।

आज के तनावपूर्ण और भौतिकवादी युग में, चातुर्मास हमें अपनी जड़ों से जुड़ने, आत्मिक शांति पाने और जीवन के सही अर्थ को समझने का एक अनमोल अवसर प्रदान करता है। यह आध्यात्मिक शुद्धि और प्रकृति से सामंजस्य का एक जीवंत पर्व है, जिसकी प्रासंगिकता सदियों बाद भी अक्षुण्ण है।

 

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Budh gochar 2025: बुध का वृश्चिक राशि में गोचर, 3 राशियों को संभलकर रहना होगा

Mangal gochar 2025: मंगल का वृश्चिक राशि में प्रवेश, 3 राशियों के लिए है अशुभ संकेत

Kushmanda Jayanti: कूष्मांडा जयंती के दिन करें माता की खास पूजा, मिलेगा सुख संपत्ति का आशीर्वाद

Kartik Month 2025: कार्तिक मास में कीजिए तुलसी के महाउपाय, मिलेंगे चमत्कारी परिणाम बदल जाएगी किस्मत

October Horoscope 2025: अक्टूबर के अंतिम सप्ताह का राशिफल: जानें किन राशियों पर होगी धन की वर्षा, आएगा करियर में बड़ा उछाल!

सभी देखें

धर्म संसार

बुध को बलवान करने के लिए बुधवार के दिन करें ये उपाय, भगवान गणेश के आशीर्वाद से बनेंगे रुके काम

Aaj Ka Rashifal: आज का दैनिक राशिफल: मेष से मीन तक 12 राशियों का राशिफल (29 अक्टूबर, 2025)

29 October Birthday: आपको 29 अक्टूबर, 2025 के लिए जन्मदिन की बधाई!

Tulsi vivah 2025: देव उठनी एकादशी पर क्यों करते हैं तुलसी विवाह?

Aaj ka panchang: आज का शुभ मुहूर्त: 29 अक्टूबर, 2025: बुधवार का पंचांग और शुभ समय

अगला लेख