ईसाई समुदाय धूमधाम से मनाएगा ईस्टर पर्व...

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ईसाइयों का सबसे बड़ा पर्व है ईस्टर। यह वसंत ऋतु में पड़ता है। महाप्रभु ईसा मसीह मृत्यु के तीन दिनों बाद इसी दिन फिर जी उठे थे, जिससे लोग हर्षोल्लास से झूम उठे। इसी की स्मृति में यह पर्व संपूर्ण ईसाई-जगत्‌ में प्रतिवर्ष बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।



 
यह पर्व हमेशा एक ही तारीख को नहीं पड़ता।  21 मार्च के बाद जब पहली बार चांद पूरा होता है, उसके बाद के पहले रविवार को ईस्टर का त्योहार होता है। यह पर्व वसंत ऋतु में आता है, जब प्रकृति मुस्करा उठती है।
 
ईसा मसीह के जीवित हो उठने का वृत्तांत है कि उनकी भयानक मृत्यु के बाद उनके अनुयायी बिलकुल निराश हो उठे थे। वे उदास-हताश बैठे थे कि सहसा किसी ने जोर से दरवाजे को खटखटाया। दरवाजा खोलने पर सामने एक औरत खड़ी थी। उसने भीतर आकर लोगों को चकित कर दिया और कहा कि- 'मैं दो औरतों के साथ ईसा के शव पर जल चढ़ाने उनकी समाधि के पास गई थी।
 
देखा कि समाधि का पत्थर खिसका और समाधि खाली हो गई। उसके भीतर दो देवदूत दिखे, जो हिम के समान उज्ज्वल वस्त्र धारण किए हुए थे और जिनका मुखमंडल दमक रहा था। उन्होंने बताया कि 'तुम लोग नाजरेथ के ईसा को ढूंढ़ रही हो? वे यहां नहीं है। वे अब जी उठे हैं। मृतकों के बीच जीवित को क्यों ढूंढ़ती हो? जाकर यह शुभ समाचार उनके शिष्यों को सुनाओ।' मैं उसी समाचार को सुनाने आई हूं।'
 
 

इस समाचार को सुनकर लोग चकित रह गए, उन्हें विश्वास नहीं हुआ। इस बीच दूसरी औरत 'मग्दलेना' समाधि के निकट रोती रही थी। उसने देखा कि कोई चरण उसकी ओर बढ़ रहा है। उसने कहा- 'महाशय, यदि आपने ईसा मसीह का शव यहां से निकाल लिया है, तो कृपया बताइए कि कहां रखा है?' 
 
उत्तर मिला- 'मेरी!' यह परिचित आवाज थी। उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा।


 
उसने ही सबसे पहले पुनः जीवित ईसा को देखा और हांफते हुए स्वर में कहा- 'प्रभु!' महाप्रभु ने कहा कि 'तुम मेरे अनुयायियों को संदेश दे दो कि मैं उन्हें शीघ्र मिलूंगा।' मग्दलेना इस संदेश को लेकर विदा हुई और महाप्रभु के संदेश को उनके शिष्यों को सुनाया। इसीलिए ईसाई 'ईस्टर' पर्व को मनाते हैं। यह शब्द जर्मन के 'ईओस्टर' शब्द से लिया गया, जिसका अर्थ है 'देवी'। यह देवी वसंत की देवी मानी जाती थी।
 
इसके बाद महाप्रभु चालीस दिनों तक अपने शिष्यों के बीच जाते रहे और उन्हें प्रोत्साहित करते रहे, उपदेश देते रहे कि, 'तुम्हें शांति मिले।' इससे उनमें साहस और विश्वास जगा और निर्भय होकर उन्होंने ईसा के पुनः जीवित होने का संदेश दिया। ईसाइयों का विश्वास है कि महाप्रभु ईसा जीवित हैं और महिमाशाली हैं, वे उन्हें आनंद, आशा और साहस हमेशा प्रदान कर रहे हैं। इसे ही संबल बनाकर ईसाई सभी कष्टों को सहन करने को तैयार रहते हैं, सभी अन्यायों का सामना करने को उद्यत रहते हैं।
 
यह पर्व क्रिसमस की तरह धूमधाम और बाहरी तड़क-भड़क के साथ नहीं मनाया जाता, फिर भी यह ईसाई-पर्वों में महत्तम है। ईस्टर के रविवार के पहले जो शुक्रवार आता है, उस दिन ईसाई 'गुड फ्राइडे' मनाते हैं। इसी दिन प्रभु ईसा को फांसी पर चढ़ाया गया था। इस दिन लोग काली पोशाक पहनकर और अपने अस्त्रों को उल्टा लेकर शोक व्यक्त करते हैं।
 
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