वट सावित्री पूर्णिमा : कैसे करें व्रत-पूजा

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सौभाग्यवती महिलाओं का पावन पर्व
 

 
वट सावित्री पूर्णिमा के दिन वटवृक्ष की पूजा-अर्चना करने का विधान है। महिलाएं अपने अखंड सुहाग की रक्षा हेतु वटवृक्ष की पूजा और व्रत करती हैं तथा नए वस्त्र पहनकर, सोलह श्रृंगार करके वटवृक्ष की पूजा के बाद ही जल ग्रहण करती हैं।
 
वट सावित्री पूजन विधि : 
 
* इस पूजन में महिलाएं चौबीस बरगद फल (आटे या गुड़ के) और चौबीस पूरियां अपने आंचल में रखकर बारह पूरी व बारह बरगद वट वृक्ष में चढ़ा देती हैं।
 
* वृक्ष में एक लोटा जल चढ़ाकर हल्दी-रोली लगाकर फल-फूल, धूप-दीप से पूजन करती हैं।
 
* कच्चे सूत को हाथ में लेकर वे वृक्ष की बारह परिक्रमा करती हैं।
 
* हर परिक्रमा पर एक चना वृक्ष में चढ़ाती जाती हैं और सूत तने पर लपेटती जाती हैं।
 
* परिक्रमा पूरी होने के बाद सत्यवान व सावित्री की कथा सुनती हैं।
 
* फिर बारह तार (धागा) वाली एक माला को वृक्ष पर चढ़ाती हैं और एक को गले में डालती हैं। छः बार माला को वृक्ष से बदलती हैं, बाद में एक माला चढ़ी रहने देती हैं और एक पहन लेती हैं।

जब पूजा समाप्त हो जाती है तब महिलाएं ग्यारह चने व वृक्ष की बौड़ी (वृक्ष की लाल रंग की कली) तोड़कर जल से निगलती हैं। इस तरह व्रत समाप्त करती हैं।

 
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