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ईरान क्यों छोड़ रहा है इस्लाम?

WD Feature Desk
बुधवार, 21 मई 2025 (18:42 IST)
पूर्व में ईरान एक पारसी देश था लेकिन खलीफाओं के काल में यह मुस्लिम देश बन गया। ईरान की सीमा हर काल में घटती-बढ़ती रही है।  आज का ईरान प्राचीन काल के ईरान से बहुत भिन्न है। प्राचीन काल के ईरान को सबसे पहले सिकंदर ने ध्वस्त किया और फिर बाद में तुर्क एवं अरब के लोगों ने नेस्तनाबूद कर दिया। जब अरब के खलीफाओं ने अपने धर्म का विस्तार किया तो आसपास के कई देशों को फतह करने के बाद ईरान को भी फतह कर लिया। ईरान अब वर्तमान में एक शिया मुस्लिम देश है।
 
कुछ वर्ष पूर्व ही सऊदी अरब के सबसे बड़े धर्मगुरु मुफ्ती अब्दुल अजीज अल-शेख ने घोषणा कर दी थी कि ईरानी लोग मुस्लिम नहीं हैं। अब्दुल-अजीज सऊदी किंग द्वारा स्थापित इस्लामिक ऑर्गेनाइजेशन के चीफ हैं। उन्होंने कहा कि ईरानी लोग 'जोरोएस्ट्रिनिइजम' यानी पारसी धर्म के अनुयायी रहे हैं। उन्होंने कहा था, 'हम लोगों को समझना चाहिए कि ईरानी लोग मुस्लिम नहीं हैं क्योंकि वे मेजाय (पारसी) के बच्चे हैं। इनकी मुस्लिमों और खासकर सुन्नियों से पुरानी दुश्मनी रही है। अरब के लोग अन्य मुल्कों के मुसलमानों को मुसलमान नहीं मानते हैं। 
 
अयातुल्ला खुमैनी के नेतृत्व में 1979 की ईरानी क्रांति के बाद से यह देश एक कट्टर मुस्लिम देश बनकर इस्लामिक कानून के अनुसार लोगों को जीवन जीने पर बाध्य करने लगा। इसी के साथ ही अरब दुनिया का ईरान के साथ रिश्ता खराब होने लगा। इससे पहले ईरान खुले विचारों वाला देश था जहां पर किसी भी प्रकार की धार्मिक पाबंदी नहीं थी। पश्चिम और अमेरिका से उसके गहरे संबंध थे। लेकिन इस्लामिक क्रांति के बाद सब पलट गया। पिछले कुछ वर्षों से समय का चक्र उल्टा चला और अब फिर से लोग फ्रीडम चाहते हैं। जब उन्हें यह फ्रीडम नहीं मिल पा रही है तो वे इस्लाम छोड़ने को मजबूर है।
 
डीडब्ल्यू की एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने 40 हजार लोगों का इंटरव्यू लिया गया। जिसके आधार पर यह अनुमान लगाया गया कि ईरान में काफी संख्या में लोग इस्लाम छोड़ रहे हैं। इसकी संख्या करीब 47 प्रतिशत से कम नहीं माना जा रही है। ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी के वरिष्ठ मौलवी मोहम्मद अबोलग़ासेम डौलाबी ने इस तरह की बातों का खुलासा किया कि पिछले वर्ष 2023 में ही ईरान में करीब 50 हजार से ज्यादा मस्जिदे बंद कर दी गई। इसके बंद होने के कई कारण बताए गए। मस्जिदों को बंद करने का एक कारण यह है कि आज मस्जिदें कुछ गुटों और राजनीति का आधार बन गई हैं।
 
यह कारण भी बताया किया कि लोग हिजाब कानून लागू करने के सरकार के प्रयासों से परेशान हैं। 20-29 आयु वर्ग के 78% लोग अनिवार्य हिजाब के खिलाफ हैं, और 26% लोग दिन में पांच बार प्रार्थना करते हैं। यह दर्शाता है कि युवा पीढ़ी धार्मिक प्रतिबंधों के खिलाफ है और स्वतंत्रता की ओर अग्रसर है। एक कारण यह भी माना जा रहा है कि लोगों में अब समझ बढ़ गई है और वे इस्लामिक किताबों में लिखी बातों को नहीं मानते हैं।
 
हाल ही में वर्ष 2024 में लिबरल सोच के उम्मीदवार मसूद पेजेशकियान ने कट्टरवादी सोच के सईद जलीली को करीब 40 लाख वोट से हराकर राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल की। उन्होंने जनता से ही दो ही वादे किए। पहला ये कि वे पश्चिम के देशों से फिर से अच्‍छे संबंध बनाएंगे और दूसरे ये कि वे देश को एक फ्री माहौल देंगे।

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