जीवन में आत्मशक्ति का जागरण आवश्यक - विवेकानंद

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आज हम सांस्कृतिक संक्रमण के ऐतिहासिक दौर से गुजर रहे हैं। भौतिकवाद अपनी चरम पराकाष्ठा पर है। संयम, सेवा, तप, त्याग और सादगी जैसे नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों के अस्तित्व पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगा हुआ है। 
 
युवा वर्ग में इनके प्रति किसी गंभीर आस्था का सर्वथा अभाव ही दिखता है। भीषण अंतर्द्वंद्व की इस विषादपूर्ण स्थिति में आध्यात्मिक व बौद्धिक जगत के जाज्वल्यमान सूर्य स्वामी विवेकानंद युवाओं को प्रखर दिशा बोध प्रदान करते हैं। उनकी दैदीप्यवान ज्ञान-प्रभा के आलोक में युवाओं के दिलो-दिमाग में छाया ज्वलंत प्रश्नों का सघन कुहासा परत-दर-परत छंटता जाता है। 
 
स्वामी विवेकानंद के शब्दों में 'हे युवाओं! तुम उस सर्व शक्तिमान की संतानें हों। तुम उस अनंत दिव्य अग्नि की चिंगारियां हों।' उन्होंने कहा था- हर आत्मा मूलरूप में देव स्वरूप है और उसका लक्ष्य इस दिव्यता को जगाना है। लक्ष्य के एक बार निर्धारित होते ही फिर उसके अनुरूप युवाओं के जीवन का गठन शुरू हो जाता है। स्वामीजी के अनुसार, लक्ष्य के अभाव में हमारी 99 प्रतिशत शक्तियां इधर-उधर बिखरकर नष्ट होती रहती हैं। 
 
स्वामीजी के शब्दों में 'यह अज्ञान ही सब दुख, बुराइयों की जड़ है। इसी कारण हम स्वयं को पापी, दीन-हीन और दुष्ट-दरिद्र मान बैठे हैं। और दूसरों के प्रति भी ऐसी ही धारणाएं रखते हैं। इसका एकमात्र समाधान अपनी दिव्य प्रकृति एवं आत्मशक्ति का जागरण है। 
 
वे जोर देते हुए कहते हैं कि आध्यात्मिक और मात्र आध्यात्मिक ज्ञान हमारे दुख व मुसीबतों को सदैव के लिए समाप्त कर सकता है। इंद्रिय सुख एवं भोगों की इस अंधी दौड़ का कोई अंत भी तो नहीं। अस्तित्व की पूरी आहुति देने पर भी यह आग शांत होने वाली नहीं। 

 
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