रक्षा के वचन निभाते ऐतिहासिक धर्मग्रंथ

भगवानों ने भी निभाया था राखी का फर्ज

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रक्षाबंधन का पर्व श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस पर्व की शुरुआत बहुत पहले हुई थी।

भारतीय संस्कृति में पौराणिक शास्त्रों, धर्मग्रंथों और अन्य ऐतिहासिक ग्रंथों ने रक्षाबंधन के कई उदाहरण हमारे सामने पेश किए हैं। जानिए रक्षा के वचन निभाने से संबंधित कुछ खास और महत्वपूर्ण जानकारी।

* भगवान इंद्र अपना राज्य असुर वृत्रा के हाथों गंवाने के बाद उसके खिलाफ युद्ध पर जाने वाले थे। भगवान बृहस्पति के अनुरोध पर इंद्र देव की पत्नी सचि ने उन्हें राखी बांध कर संग्राम में विजय होने के साथ-साथ उनकी रक्षा की प्रार्थना की।

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* शास्त्रों के मुताबिक शिशुपाल की मृत्यु के पश्चात्‌ जब भगवान कृष्ण की उंगली से रक्त बह रहा था, उस समय पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने रक्तस्राव रोकने के लिए उनकी कलाई पर अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर बांध दिया।

द्रौपदी के इस स्नेह को देख भगवान कृष्ण ने हर पल उनकी रक्षा करने का वचन दिया। तब से लेकर अपने जीवन के पच्चीस वर्षों तक उन्होंने उनकी रक्षा की।

* एक और वृत्तांत के अनुसार यमराज की बहन यमुना ने राखी बांध कर उन्हें अजरता और अमरता के वरदान से संपूर्ण किया था।

* इतिहास के पन्ने गवाह हैं कि जब राजा सिकंदर और राजा पुरू के बीच घमासान जंग हुई तब सिकंदर की पत्नी द्वारा पुरू को बांधी गई राखी के वचन स्मरण हुए और उसने सिकंदर की जान बक्श दी।

* चित्तौड़ की रानी कर्नावती ने राजा हुमायूं को अपनी सुरक्षा के लिए राखी भेजी थी किंतु बंगाल के खिलाफ संग्राम के चलते हुमायूं चित्तौड़ और कर्नावती को राजपूत रीति-रिवाज वाले जौहर में कुर्बान होने से नहीं बचा सके।

1905 में बंग भंग (बंगाल विभाजन) के समय शांति के दूत रवींद्रनाथ टैगोर ने हिंदुओं और मुसलमानों को आपस में राखी बांधकर शांति और अमल कायम करने की अपील की थी।

इस पर्व को सामुदायिक त्योहार बनाकर राष्ट्रवादी भावना को विभिन्न जाति और संप्रदाय के लोगों में बहाल करने का अनुरोध किया था, जिसका फल कुछ हद तक बंगाल में नजर आया था।

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