संक्रांति के कुछ दिनों पूर्व से ही तिल, आटे, गुड़-सेव, सूजी और चावल के लड्डुओं की खुशबू से घर महकने लगते हैं। कहीं आटे को भूंजा जाता है तो कहीं तिल धोकर सुखाई जाती है। मकर संक्रांति के नजदीक आते ही लगभग हर घर में लड्डू बनाने की तैयारियां प्रारंभ हो जाती हैं, हो भी क्यों न... संक्रांति के सूर्य संक्रमण काल के इस पर्व को भारत भर में बहुत ही उत्साह और श्रद्धा से मनाया जाता है।
संक्रांति के अवसर पर कई जगह मेलों का आयोजन होता है। इलाहाबाद में तो बड़ा मेला लगता है, यहां नदी के तट पर सुबह से स्नान करने के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ जमा होने लगती है। यहां के पवित्र घाट में जाकर हर कोई स्नान करता है और तिल का दान करता है। दूसरी ओर संक्रांति का पर्व नई फसल के आने की खुशी में भी मनाया जाता है। हर जगह और घर की अपनी अलग-अलग परंपराएं होती हैं। कुछ भी हो पर संक्रांति पर तिल के लड्डू तो बनते ही हैं।
बाजारों में इस बार संक्रांति के लड्डुओं पर भी महंगाई का असर दिखाई दे रहा है। तिल के साथ सभी कुछ बहुत महंगा होने के कारण कई परिवार तो शगुन के तौर पर थोड़े से लड्डू बना कर ही काम चलाने के बारे में सोच रहे हैं। इतना ही नहीं रंगबिरंगी पतंगों पर भी महंगाई की मार दिखाई दे रही हैं। भारत भर में मनाया जाने वाला पंतगबाजी का पर्व पंतग उड़ाने के शौकिनों भी महंगाई के कारण खल रहा हैं।
संक्रांति के लड्डुओं का ठंड के मौसम को ध्यान रखते हुए विशेष महत्व है। हर बार ऐसा होता है कि संक्रांति के समय ठंड बहुत ज्यादा होती है। तिल और गुड़ गर्म होते हैं, इसलिए तिल के पकवान ठंड में स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभकारी माने गए हैं और यह परिवार के सदस्यों को पसंद भी होते हैं। अत: तिल-गुड़ के इस पर्व पर हमें तिल की उपयोगिता को ध्यान में रखकर संक्रांति का पर्व बहुत ही उत्साह के साथ मनाना चाहिए।