साईं बाबा की 7 अद्भुत प्रतिमाएं

अनिरुद्ध जोशी
साईं बाबा का पहला मंदिर उनके भक्त केशव रामचंद्र प्रधान ने बनवाया था। उनका दूसरा मंदिर शिरडी में है जहां उन्होंने समाधि ली थी। उनका तीसरा मंदिर महाराष्ट्र के परभणी जिले के पाथरी गांव में हैं जहां बाबा का जन्म हुआ था। आज देशभर में बाबा के मंदिर हैं‍ जिनमें से कुछ मंदिरों के प्रांगण में बाबा की विशालतम मूर्तियों को देखकर मन भावना से भर जाता है।
sai baba


पिता की मौत के बाद बदल गया साईबाबा का जीवन
 
भारत में बहुत से लोग वेदांती और सुन्नी हैं, जो दृढ़ता से एकेश्‍वरवादी हैं। वे उस एक ईश्वर के अलावा अन्य किसी के समक्ष झुकने को पाप मानते हैं। उनके लिए 'ब्रह्म ही सत्य है' या 'अल्लाह के अलावा और कोई अल्लाह नहीं।' यह दृढ़ता या कहें यह कायमी हमें समझ में आती है, अच्छी बात है और यह सत्य भी है, लेकिन जब यही दृढ़ लोग दूसरों को भी अपने जैसा बनाने की जोर-जबरदस्ती करते हैं तो फिर धार्मिकता सांप्रदायिकता में बदल जाती है
सांप्रदायिक होना आसान है, लेकिन धार्मिक होना बहुत मुश्किल। ध्यान, प्रार्थना, पूजा या नमाज पढ़ने से कोई धार्मिक बन जाता है तो यह बहुत ही आसान रास्ता है धर्म का। हमने तो पढ़ा और सुना है कि धर्म तो 'अग्निपथ' है। धर्म तो 'सत्य' है। सत्य का अर्थ आम बुद्धि के लिए समझना बहुत कठिन है।
 
सांप्रदायिकता के इस सबसे बुरे दौर में किसी धार्मिक व्यक्ति को खोजना बहुत ही मुश्किल है। जो लोग खुद को धर्मनिरपेक्ष या साम्यवादी कहते हैं वे गफलत में हैं या कहे कि वे उन लोगों में से हैं जिनका कोई धर्म नहीं है। यह नए तरह की सांप्रदायिकता है।
 
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साईं बाबा मूर्ति नंबर 1
साईं मंदिर, शिरडी जिला अहमदनगर (महाराष्ट्र)
ऊंचाई 5.5 फुट
 
‍साईं बाबा ने जहां समाधी ली थी वहीं उनकी विशालतम मूर्ति बनाई गई है। साईं भक्तों के लिए शिरडी तीर्थ स्थल है जहां दुनिया के कोने-कोने से भक्त समाधी पर माथा टेकने आते हैं। साईं के समाधी स्थल पर इस प्रतिमा का अनावरण बाबा की 36वीं पुण्यतिथि पर 7 अक्टूबर 1954 को किया गया। 5.5 फुट ऊंची इस मूर्ति में समय समय पर परिवर्तन होते रहे हैं।
शिरडी के साई बाबा (shirdi sai baba) का मंदिर विश्व भर में प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। शिरडी अहमदनगर जिले के कोपरगांव तालुका में है। गोदावरी नदी पार करने के पश्चात मार्ग सीधा शिरडी को जाता है। आठ मील चलने पर जब आप नीमगांव पहुंचेंगे तो वहां से शिरडी दृष्टिगोचर होने लगती है।
 
सन्‌ 1854 में वे पहली बार नीम के वृक्ष के तले बैठे हुए दिखाई दिए। कुछ समय बाद बाबा शिरडी छोड़कर किसी अज्ञात जगह पर चले गए और चार वर्ष बाद 1858 में लौटकर चांद पाटिल के संबंधी की शादी में बारात के साथ फिर शिरडी आए। इस बार वे खंडोबा के मंदिर के सामने ठहरे थे। इसके बाद के साठ वर्षों 1858 से 1918 तक बाबा शिरडी में अपनी लीलाओं को करते रहे और अंत तक यहीं रहे। 
 
'बाबा की शिरडी' में भक्तों का मेला हमेशा लगा रहता है, जिसकी तादाद प्रतिदिन जहां 30 हजार के करीब होती है, वहीं गुरुवार व रविवार को यह संख्या दुगुनी हो जाती है। इसी तरह साई बाबा के प्रति आस्था और विश्वास के चलते रामनवमी, गुरुपूर्णिमा और विजयादशमी पर जहां 2-3 लाख लोग दर्शन को आते हैं, वहीं सालभर में लगभग 1 करोड़ से अधिक भक्त यहां हाजिरी लगा जाते हैं।
 
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साईं बाबा मूर्ति नंबर 2 
श्रीसाईं महाराज देवालयम, मछलीपट्टनम, जिला कृष्णानगरम (आंध्रप्रदेश)
ऊंचाई 54 फुट और चौड़ाई 36 फुट
 
श्रीसाईं बाबा की यह विशालतम मूर्ति आंध्रप्रदेश के समुद्र तटवर्ती शहर मछलीपट्टनम के बीचोंबीच स्थित जिला कोर्ट के सामने स्थापित है। इसका अनावरण 2011 में हुआ था।
विजयवाड़ा से 60 किलोमीटर दूर मछलीपट्टनम का मागिनापुडी सागर तट बेहद शांत और स्वच्छ है। इसका मार्ग भी बहुत खूबसूरत है। दाल और धान के खेत, ऊंचे नारियल वृक्ष, सड़क के साथ बहती नहरें, गांवों की सुंदर झोपडि़यां देखना अच्छा लगता है। 
 
 
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साईं बाबा मूर्ति नंबर 3
रेपुर गांव, काकिनाडा के पास, ईस्ट गोदावरी जिला (आंध्रप्रदेश)
ऊंचाई 116 फुट
 
आंध्रप्रदेश के पूर्वी गोदावरी जिले में स्थित काकिनाडा के पास रेपुर में साईं बाबा की सबसे विशालतम प्रतिमा स्थापित है। इस मूर्ति का अनावरण 2012 में किया गया।
बनी तीन मंजिला मकान के ऊपर बैठक मुद्रा में बनी इस मुर्ति को देखने दूर-दूर से भक्त आते हैं। मकान के नीचे भूमि पर साई बाबा की मूर्ति के रखे एक पैर के चरणों में शीश झुकाकर भक्तजन खुद को धन्य महसूस करते हैं।
 
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साईं बाबा मूर्ति नंबर 4
साईं बाबा मूर्ति, सूरत (गुजरात)
ऊंचाई 14 फुट 

गुजरात के सूरत शहर में मक्काई पूल चौराहे पर स्थित साईं बाबा की यह मूर्ति अद्भुत मुद्रा में है जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। इस मूर्ति की स्थापना सूरत युवक मंडल द्वारा की गई।
 
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साईं बाबा मूर्ति नंबर 5
सच्चिदानंद सद्गगुरु साईंनाथ महाराज मंदिर, भिवपुरी, तहसिल कर्जत जिला रायगढ़ (महाराष्ट्र)
ऊंचाई सामान्य
साईं बाबा के एक भक्त केशव रामचंद्र प्रधान ने भिवपुरी में सन् 1916 में बनवाया था। भिवपुरी मुंबई से पुना जाते वक्त बीच में पड़ता है। भिवपुरी में इस मंदिर के बनने की दास्तान भी बहुत रोचक है। केशवजी मुंबई में कार्य करते थे और भिवपुरी में रहते थे।
 
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साईं बाबा मूर्ति नंबर 6
साईंनाथ जन्मस्थान मंदिर, पाथरी जिला परभणी (महाराष्ट्र)
ऊंचाई सामान्य
 
महाराष्ट्र के पाथरी (पातरी) गांव में साईंबाबा का जन्म 27 सितंबर 1830 को हुआ था। साईं के जन्म स्थान पाथरी (पातरी) पर एक मंदिर बना है। मंदिर के अंदर साईं की आकर्षक मूर्ति रखी हुई है। यह बाबा का निवास स्थान है, जहां पुरानी वस्तुएं जैसे बर्तन, घट्टी और देवी-देवताओं की मूर्तियां रखी हुई हैं।
साईं बाबा के बारे में सबसे सटिक जानकारी सत्य साईं बाबा द्वारा दी गई है जिन्हें बाबा का अवतार ही माना जाता है। उन्होंने उनका जन्म स्थान पाथरी गांव ही बताया है, तो वही सर्वमान्य है। यह सत्य साई की बात माने तो शिरडी में साईं के आगमन के समय उनकी उम्र 23 से 25 के बीच रही होगी।
 
बाबा की एकमात्र प्रामाणिक जीवन कथा 'श्री सांई सत्‌चरित' है जिसे श्री अन्ना साहेब दाभोलकर ने सन्‌ 1914 में लिपिबद्ध किया। ऐसा विश्वास किया जाता है कि सन्‌ 1835 में महाराष्ट्र के परभणी जिले के पाथरी गांव में साई बाबा का जन्म भुसारी परिवार में हुआ था। (सत्य साई बाबा ने बाबा का जन्म 27 सितंबर 1830 को पाथरी गांव में बताया है।)
 
इसके पश्चात 1854 में वे शिरडी में ग्रामवासियों को एक नीम के पेड़ के नीचे बैठे दिखाई दिए। अनुमान है कि सन्‌ 1835 से लेकर 1846 तक पूरे 12 वर्ष तक बाबा अपने पहले गुरु रोशनशाह फकीर के घर रहे। 1846 से 1854 तक बाबा बैंकुशा के आश्रम में रहे।
 
महाराष्ट्र के परभणी जिले के पाथरी गांव में सांई बाबा का जन्म हुआ था और सेल्यु में बाबा के गुरु वैकुंशा रहते थे। यह हिस्सा हैदराबाद निजामशाही का एक भाग था। भाषा के आधार पर प्रांत रचना के चलते यह हिस्सा महाराष्ट्र में आ गया तो अब इसे महाराष्ट्र का हिस्सा माना जाता है।
 
महाभारत काल में पांडवों ने यहां अश्वमेध यज्ञ किया था, तब अर्जुन अपनी फौज लेकर यहां उपस्थित थे। अर्जुन को पार्थ भी कहा जाता है। यही पार्थ बिगड़कर पाथरी हो गया। अब पातरी व पात्री कहा जाता है।
 
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साईं बाबा मूर्ति नंबर 7
‍‍जिला हरदा (मध्यप्रदेश)
मूर्ति ऊंचाई सामान्य 


हरदा साईं मंदिर : मध्यप्रदेश के हरदा में एक साईं भक्त परिवार के पास सौ वर्ष पूर्व शिर्डी के साईं बाबा द्वारा अपने हाथों से दी गई उनकी चरण पदुकाएं हैं। साईं बाबा के भक्त रामकृष्ण परुलकर उर्फ छुट्ट भैया को खुद साईं बाबा ने उनकी ये चरण पादुकाएं ठीक सौ वर्ष पूर्व 1915 में अपने हाथों से दी थी। रामकृष्ण तो नहीं रहे लेकिन उनके परिवार के मुखिया किशोर रंगनाथ परुलकर और राधा किशोर पुरुलकर अब इन चरण पादुका की पूजा करते हैं। इस परिवार के मुताबिक उनके पूर्वजों की तस्वीरें आज भी शिरडी में बाबा के स्थान पर लगी हैं।  
 
यहां उनके घर में ही साईं बाबा की एक छोटी-सी मूर्ति रखी है जहां शिरडी मंदिर की ही तरह साईं पूजा और आरती होती रहती है।

सौजन्य : सभी चित्र यूट्यूब और फेसबुक से साभार
 

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