dhuniwale dadaji : धूनी वाले दादाजी का निर्वाण दिवस, पढ़ें विशेष जानकारी

Webdunia
वर्ष 2021 में श्री बड़े दादाजी महाराज यानी धूनीवाले दादाजी (Dhuniwale Dadaji) की बरसी 16 दिसंबर, गुरुवार को मनाई जा रही है। प्रतिवर्ष मार्गशीर्ष/अगहन सुदी तेरस या त्रयोदशी के दिन भारत के महान संत दादाजी धूनीवाले की पुण्यतिथि मनाई जाती है। दादाजी को भारत के महान संतों में से माना जाता है। उन्हें भगवान शिव और दत्त यानी भगवान दत्तात्रेय का अवतार मानकर पूजा जाता है। मान्यतानुसार उनके दरबार में आने मात्र से ही मनुष्य की बिन मांगी मुराद या दुआएं पूर्ण हो जाती हैं।
 
दादाजी धूनीवाले का यह दादा दरबार मध्य प्रदेश के खंडवा (Khandwa, Madhya Pradesh) में स्थापित है, जोकि भारत का यह एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है। दादाजी धूनीवाले के नाम पर भारत और विदेशों में मिलाकर कुल 27 धाम हैं। जहां इन स्थानों पर दादाजी के समय से अब तक निरंतर धूनी जल रही है। खंडवा में दादा दरबार (Shri Dada Darbar Khandwa) में दादाजी धूनीवाले का स्मारक स्थल पर बना हुआ है। यह भी शिर्डी के साईं बाबा के स्थान की तरह ही उनके भक्तों के प्रसिद्ध है। 
 
मान्यतानुसार दादाजी यानी स्वामी केशवानंद जी महाराज एक बहुत बड़े संत थे और लगातार यहां से वहां घूमते रहते थे। दादाजी प्रतिदिन पवित्र अग्नि यानी धूनी के सामने ध्यानमग्न होकर बैठे रहते थे, इसीलिए दादाजी धूनीवाले के नाम से लोग उन्हें स्मरण करने लगे। जहां उनकी समाधि हुई थी, उसी स्थान पर स्मारक स्थल पर बनाया गया है।
 
उनकी महिमा का गुणगान करने वाली कईं कथाएं उनके भक्तों के बीच प्रचलित हैं। दादाजी के संबंध में यह मान्यता भी है कि दादाजी धूनीवाले मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले के एक छोटे-से गांव निमावर (साईखेडा) में एक पेड़ से प्रकट हुए थे। जहां उन्होंने अपनी अनेक लीलाएं दिखाई। यहां उन्होंने अपने हाथों से ही धूनी प्रज्ज्वलित करके दिखाई थी, जो आज भी साईखेडा में स्थित दादाजी दरबार गढ़ी में प्रज्ज्वलित है। 
 
इस धूनी के बारे में वहां के लोग कहते हैं कि दादाजी इस धूनी में चने आदि डालकर, उसे हीरे-मोती (Dhuniwale Dadaji Ki Mahima) में बदल देते थे और उनका कोई भी भक्त उन्हें कितनी ही बेशकीमती चीज उपहार में दें, वे उसे भी धूनी मैया में डाल देते थे। साईखेडा में अनेक लीलाएं दिखाने के बाद दादाजी महाराज खंडवा आकर बस गए, जहां दादाजी ने धूनी माई प्रज्ज्वलित करके कई दशकों तक अनेक लीलाएं दिखाने के बाद सन् 1930 में समाधि ले ली। जहां आज भी उनकी यह बेशकीमती धरोहर लगभग 14 एकड़ में फैली हुई और विश्व प्रसिद्ध मंदिर और समाधि स्थल (Dhuniwale Dadaji) है, जो मंदिर ट्रस्ट द्वारा संचालित किया जा रहा है। 
 
सन् 1930 में दादाजी ने मार्गशीर्ष शुक्ल त्रयोदशी के (मार्गशीर्ष सुदी 13) के दिन खंडवा शहर में समाधि ली और उनकी यह समाधि रेलवे स्टेशन से मात्र 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। राजस्थान के डिडवाना गांव से आए उनके एक भक्त भंवरलाल ने दादाजी धूनीवाले के साथ ही रहकर उनकी खूब सेवा की तथा दादाजी ने उन्हें अपना प्रिय शिष्य मानते हुए हरिहरानंद नाम से संबोधित किया, जिन्हें उनके भक्त छोटे दादाजी नाम से पुकारते थे, सन् 1942 में हरिहरानंद जी ने बीमारी के बाद महानिर्वाण को प्राप्त किया, आज भी उनकी समाधि दादाजी धूनीवाले की समाधि के पास ही स्थापित की गई है।

 
यहां आने के लिए आप रेल तथा सड़क मार्ग, हवाई अड्डा आदि से आसानी से खंडवा पहुंचकर दादाजी धूनीवाले की समाधि स्थल के दर्शन प्राप्त कर सकते हैं।
 
- आरके.

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

परीक्षा में सफलता के लिए स्टडी का चयन करते समय इन टिप्स का रखें ध्यान

Shani Gochar 2025: शनि ग्रह मीन राशि में जाकर करेंगे चांदी का पाया धारण, ये 3 राशियां होंगी मालामाल

2025 predictions: वर्ष 2025 में आएगी सबसे बड़ी सुनामी या बड़ा भूकंप?

Saptahik Panchang : नवंबर 2024 के अंतिम सप्ताह के शुभ मुहूर्त, जानें 25-01 दिसंबर 2024 तक

Budh vakri 2024: बुध वृश्चिक में वक्री, 3 राशियों को रहना होगा सतर्क

सभी देखें

धर्म संसार

प्रयागराज में महाकुंभ की तैयारियां जोरों पर, इन देशों में भी होंगे विशेष कार्यक्रम

प्रयागराज में डिजिटल होगा महाकुंभ मेला, Google ने MOU पर किए हस्‍ताक्षर

Yearly rashifal Upay 2025: वर्ष 2025 में सभी 12 राशि वाले करें ये खास उपाय, पूरा वर्ष रहेगा शुभ

28 नवंबर 2024 : आपका जन्मदिन

28 नवंबर 2024, गुरुवार के शुभ मुहूर्त

अगला लेख