झंडेवाला देवी मंदिर

मनोकामनाएँ पूर्ण करता पावन स्थल

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यह एक ऐसा पावन स्थल है जहाँ सारी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। जी हाँ! दिल्ली के झंडेवाला देवी मंदिर श्रद्धालुओं की श्रद्धा का केंद्र है। यहाँ पर दूर-दूर से भक्त, माँ के पावन दर्शनों के लिए आते हैं। यहाँ भक्त माँ भगवती से अपनी मानसिक शांति, स्वास्थ्य, सुख व अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए आशीर्वाद माँगते हैं।

यहाँ आने पर भक्तों का हिलता विश्वास दृढ़ होता है। जो भी इस मंदिर में आता है, यहाँ की अदृश्य आध्यात्मिक तरंगे उसके मन एवं हृदय को पावन कर देती हैं। किंतु यह सब भक्त की सतत्‌ साधना एवं उसकी श्रद्धा अनुसार कुछ समय में प्राप्त होता है।

झंडेवाला देवी मंदिर का एक प्राचीन इतिहास है, जिसकी मनमोहिनी पौराणिक गाथा एक विशेष भक्त बद्रीदास से आरंभ होती है। वह धर्मात्मा व्यक्ति 19वीं शताब्दी में एक प्रसिद्ध कपड़ा व्यापारी थे। परोपकारी बद्रीदास अपार संपत्ति से स्वामी थे। दिल्ली में उनकी प्रचुर अचल संपत्ति थी।

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वह माता वैष्णों देवी के अनन्य भक्त थे। उन्हें अपनी अपार संपत्ति से जरा भी मोह नहीं था और वह उसे दान-पुण्य में खर्च करते, दीन-दुखियों की सेवा एवं भगवत भजन करते थे। इसलिए इस साधु स्वभाव के व्यक्ति को लोग बद्री भगत के नाम से पुकारने लगे।

जिस स्थान पर वर्तमान में मंदिर स्थित है वह स्थान तब शांत, हरा-भरा उपवन था। हरी-भरी पहाड़ियों, फल-फूलों से लदे बगीचे और कल-कल करते झरने बहते थे। यहाँ पशु-पक्षी मोर-पपीहे आदि अपनी मधुर वाणी से वातावरण को महकाते थे। लोग इस शांत व निस्तब्द वातावरण में मानसिक व आत्मिक शांति के लिए आते थे। ऐसे व्यक्तियों में बद्री भगत भी थे।

धीरे-धीरे यह पता चला कि यहाँ के झरनों व पेड़-पौधों में स्वास्थ्य लाभ के गुण भी थे। अतः यहाँ लोग मानसिक शांति के साथ-साथ स्वास्थ्य लाभ के लिए भी आते थे।

बद्री भगत इस पावन स्थान पर साधना और ध्यान मग्न होकर प्रार्थना किया करते थे। एक बार वे स्वास्थ्यवर्धक झरने के पास साधना में रत थे, तब उनको अनुभूति हुई कि उसी स्थान पर एक प्राचीन मंदिर दबा हुआ है। उन्होंने निश्चय किया कि वह इस प्राचीन धरोहर का पुनरुद्धार अवश्य करेंगे।

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उस दिन से भक्त बद्री भगत ने अपना तन, मन, धन इस मंदिर की खोज में लगा दिया। उन्होंने इस क्षेत्र की भूमि खरीदनी आरंभ कर दी। अंत में बहुत प्रयत्न के बाद एक स्वास्थ्यदायी झरने के पास उन्हें इस प्राचीन मंदिर के अवशेष मिले जिनमें माता की सदियों पुरानी चमत्कारी मूर्ति विराजमान थी। किंतु खुदाई में मूर्ति के हाथ खंडित हो गए थे।

अपने शास्त्रों के अनुसार खंडित मूर्ति की पूजा-अर्चना वर्जित है। इसलिए बद्री भगत ने उस मूर्ति को गुफा में ही रहने दिया और उसके ठीक ऊपर नया मंदिर निर्माण करवाया। उन्हें विश्वास था कि पुरानी प्रतिमा की शक्ति नई प्रतिमा में विद्यमान होगी।

मूल मूर्ति की पवित्रता को ध्यान में रखते हुए नई प्रतिमा की विधिवत प्राण-प्रतिष्ठा करवाई गई। मंदिर के ऊपर ध्वजारोहण करवाया गया ताकि लोगों को दूर से ही मंदिर होने का आभास हो और वह माँ के दर्शन करने आएँ। इस प्रकार यह मंदिर, झंडेवाला मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हो गया। शीघ्र ही लोगों को मंदिर की चमत्कारी शक्ति का आभास होने लगा। इस मंदिर की महिमा व ख्याति देश-विदेश में फैल गई।

आज इस मंदिर में आने वाले हर भगत को माँ का आशीर्वाद प्राप्त होता है। बद्री भगत के सपनों को साकार करने में पाँच पीढि़यों से उनका परिवार प्रयासरत है। उनकी इस धरोहर का उनके वंशज बद्री भगत झंडेवाला टेंपल सोसायटी के सदस्यों के सहयोग से प्रबंधन कर रहे हैं। सामाजिक आवश्यकताओं को ध्यान रखते हुए धार्मिक, सामाजिक व सहायता कार्य चल रहे हैं।

मंदिर की आय का एक बड़ा भाग स्वास्थ्य, शिक्षा व सामाजिक कार्यों पर एवं भारत वर्ष की मूल भाषा संस्कृत के विकास पर खर्च किया जाता है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सोसायटी ने मंडोली में बद्री भगत संस्कृत वेद विद्यालय की स्थापना की है। आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक और पाश्चात्य चिकित्सा प्रणाली के निशुल्क औषधालय स्थापित किए गए हैं।

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