क्या स्कंद, कार्तिकेय सुब्रमण्यम और मुरुगन एक ही हैं? जानिए दिलचस्प कथा

Webdunia
मंगलवार, 29 नवंबर 2022 (04:32 IST)
भगवान शिव और पार्वती के पुत्र कार्तिकेय को स्कंद भी कहा जाता है। उन्हें दक्षिण भारत में सुब्रमण्यम और मुरुगन कहते हैं। दक्षिण भारत में उनकी पूजा का अधिक प्रचलन है। कार्तिकेय का वाहन मोर है। एक कथा के अनुसार कार्तिकेय को यह वाहन भगवान विष्णु ने उनकी सादक क्षमता को देखकर ही भेंट किया था। मयूर का मन चंचल होता है। चंचल मन को साधना बड़ा ही मुश्‍किल होता है। कार्तिकेय ने अपने मन को साथ रखा था। वहीं एक अन्य कथा में इसे दंभ के नाशक के तौर पर कार्तिकेय के साथ बताया गया है।
 
 
कैसे जन्म हुआ भगवान कार्तिकेय का :पौराणिक कथा के अनुसार अपने पति भगवान शिव का अपमान सहन नहीं कर पाने के कारण जब माता सती अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ में कूदकर भस्म हो गईं, तब शिवजी विलाप करते हुए गहरी तपस्या में लीन हो गए। उनके ऐसा करने से सृष्टि शक्तिहीन हो जाती है। इसी बीच तारकासुर ने ब्रह्मा से वरदान प्राप्त कर लिया कि उन्हें शिव का पुत्र ही मार सके और कोई नहीं क्योंकि तारकासुर जानता था कि अब शिवजी तपस्या से उठने वाले नहीं है। वरदान प्राप्त तारकासुर ने धरती पर आतंक फैला दिया और स्वर्ग पर अपना अधिकार प्राप्त कर लिया।
 
 
इस दौरान माता सती फिर से हिमालय राज के यहां पार्वती के रूप में जन्म लेकर शिवजी को प्राप्त करने के लिए तपस्या करने लगी है।
 
तारकासुर के आतंक के कारण चारों तरफ हाहाकार मच जाता है तब सभी देवता ब्रह्माजी से प्रार्थना करते हैं। तब ब्रह्माजी कहते हैं कि तारक का अंत शिव पुत्र करेगा। इंद्र और अन्य देव की योजना के तहत कामदेव को शिवजी की तपस्या भंग करने के कार्य में लगाया जाता है और तपस्या भंग होने के बाद उनका विवाह माता पार्वती से करने लक्ष्य सामने रखा जाता है। कामदेव शिवजी की तपस्या तो भंग कर देते हैं लेकिन वे खुद शिवजी के क्रोध के कारण उनके तीसरे नेत्र से भस्म हो जाते हैं।
 
बाद में शिवजी देवताओं की प्रार्थना पर कामदेव को प्रद्युम्न के रूप में जन्म लेने का वरदान देते हैं और माता पार्वती के तप को देखकर उनसे विवाह करने की हां भर देते हैं और इस तरह शुभ घड़ी और शुभ मुहूर्त में शिवजी और पार्वती का विवाह हो जाता है। इस प्रकार कार्तिकेय का जन्म होता है।  पुराणों के अनुसार षष्ठी तिथि को कार्तिकेय भगवान का जन्म हुआ था इसलिए इस दिन उनकी पूजा का विशेष महत्व है। 
 
तारकासुर का वध : बड़े होने पर देवासुर संग्राम में कार्तिकेय देवताओं के सेनापति बनते हैं। बाद में वे तारकासुर का वध कर देते हैं। कार्तिकेय तारकासुर का वध करके देवों को उनका स्थान प्रदान करते हैं। इसके बाद उन्हे स्कंद, कुमार और शक्ति कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है। कहते हैं कि उत्तरी ध्रुव के निकटवर्ती प्रदेश उत्तर कुरु के क्षे‍त्र विशेष में ही इन्होंने स्कंद नाम से शासन किया था। इनके नाम पर ही स्कंद पुराण है। माता पार्वती को इसीलिए स्कंद माता भी कहा जाता है। 
 
संस्कृत भाषा में लिखे गए 'स्कंद पुराण' के तमिल संस्करण 'कांडा पुराणम' में उल्लेख है कि देवासुर संग्राम में भगवान शिव के पुत्र मुरुगन (कार्तिकेय) ने दानव तारक और उसके दो भाइयों सिंहामुखम एवं सुरापदम्न को पराजित किया था। अपनी पराजय पर सिंहामुखम माफी मांगी तो मुरुगन ने उसे एक शेर में बदल दिया और अपनी माता दुर्गा के वाहन के रूप में सेवा करने का आदेश दिया।
 
दूसरी ओर मुरुगन से लड़ते हुए सपापदम्न (सुरपदम) एक पहाड़ का रूप ले लेता है। मुरुगन अपने भाले से पहाड़ को दो हिस्सों में तोड़ देते हैं। पहाड़ का एक हिस्सा मोर बन जाता है जो मुरुगन का वाहन बनता है जबकि दूसरा हिस्सा मुर्गा बन जाता है जो कि उनके झंडे पर मुरुगन का प्रतीक बन जाता है। इस प्रकार, यह पौराणिक कथा बताती है कि मां दुर्गा और उनके बेटे मुरुगन के वाहन वास्तव में दानव हैं जिन पर कब्जा कर लिया गया है। इस तरह वो ईश्वर से माफी मिलने के बाद उनके सेवक बन गए।
 
 
प्राचीनकाल के राजा जब युद्ध पर जाते थे तो सर्वप्रथम कार्तिकेय की ही पूजा करते थे। यह युद्ध के देवता हैं और सभी पुराण और ग्रंथ इनकी प्रशंसा करते हैं। आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि और 'तिथितत्त्व' में चैत्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी को, कार्तिक कृष्ण पक्ष की षष्ठी, ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की षष्ठी को भी स्कंद षष्ठी का व्रत होता है। यह व्रत 'संतान षष्ठी' नाम से भी जाना जाता है। स्कंदपुराण के नारद-नारायण संवाद में इस व्रत की महिमा का वर्णन मिलता है।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

निरंजनी अखाड़े के छावनी प्रवेश के दौरान रथ पर बैठीं हर्षा रिछारिया, क्यों मचा बवाल?

तुलसी की सूखी लकड़ी का दीपक जलाने से घर आती है समृद्धि, जानिए अद्भुत फायदे

पीरियड्स में महिला नागा साधु कैसे करती हैं महाकुंभ में स्नान, ये हैं नियम

महाकुंभ में कल्पवास क्या है, जानें क्यों करें? पढ़ें महत्व, लाभ और नियम के बारे में

चंद्रमा की इस गलती की वजह से लगता है महाकुंभ, जानिए पौराणिक कथा

सभी देखें

धर्म संसार

18 जनवरी 2025 : आपका जन्मदिन

18 जनवरी 2025, शनिवार के शुभ मुहूर्त

Tarot Card Predictions 2025: टैरो कार्ड राशिफल 2025, जानिए कैसा रहेगा मकर राशि का भविष्‍य

Osho Rajneesh: ओशो रजनीश की पुण्यतिथि पर पढ़ें रोचक जानकारी

Magh Month 2025: माघ के महीने में कौन-कौन से त्योहार आते हैं?

अगला लेख