8 नवंबर: विनायकी चतुर्थी की कथा, यहां पढ़ें

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Vinayaki Chaturthi Katha विनायक चतुर्थी कथा- एक दिन भगवान भोलेनाथ स्नान करने के लिए कैलाश पर्वत से भोगवती गए। महादेव के प्रस्थान करने के बाद मां पार्वती ने स्नान प्रारंभ किया और घर में स्नान करते हुए अपने मैल से एक पुतला बनाकर और उस पुतले में जान डालकर उसको सजीव किया गया।
 
पुतले में जान आने के बाद देवी पार्वती ने पुतले का नाम 'गणेश' ganesha रखा। पार्वतीजी ने बालक गणेश को स्नान करते जाते वक्त मुख्य द्वार पर पहरा देने के लिए कहा। 
 
माता पार्वती ने कहा कि जब तक मैं स्नान करके न आ जाऊं, किसी को भी अंदर नहीं आने देना। भोगवती में स्नान कर जब भोलेनाथ अंदर आने लगे तो बालस्वरूप गणेश ने उनको द्वार पर ही रोक दिया। भगवान शिव के लाख कोशिश के बाद भी गणेश ने उनको अंदर नहीं जाने दिया। गणेश द्वारा रोकने को उन्होंने अपना अपमान समझा और बालक गणेश का सिर धड़ से अलग कर वे घर के अंदर चले गए।
 
शिवजी जब घर के अंदर गए तो वे बहुत क्रोधित अवस्था में थे। ऐसे में देवी पार्वती ने सोचा कि भोजन में देरी की वजह से वे नाराज हैं इसलिए उन्होंने 2 थालियों में भोजन परोसकर उनसे भोजन करने का निवेदन किया। 
 
शिव ने लगाया था हाथी के बच्चे का सिर- 2 थालियां लगीं देखकर शिवजी ने उनसे पूछा कि दूसरी थाली किसके लिए है? तब पार्वतीजी ने जवाब दिया कि दूसरी थाली पुत्र गणेश के लिए है, जो द्वार पर पहरा दे रहा है। तब भगवान शिव ने देवी पार्वती से कहा कि उसका सिर मैंने क्रोधित होने की वजह से धड़ से अलग कर दिया है।
 
इतना सुनकर पार्वतीजी दु:खी हो गईं और विलाप करने लगीं। उन्होंने भोलेनाथ से पुत्र गणेश का सिर जोड़कर जीवित करने का आग्रह किया। तब महादेव ने एक हाथी के बच्चे का सिर धड़ से काटकर गणेश के धड़ से जोड़ दिया। अपने पुत्र को फिर से जीवित पाकर माता पार्वती अत्यंत प्रसन्न हुईं। Ganesh Katha
 
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