तांत्रिक पद्धति में भैरव शब्द की निरूक्ति उनका विराट रूप प्रतिबिम्बित करती हैं। वामकेश्वर तंत्र की योगिनीह्रदयदीपिका टीका में अमृतानंद नाथ कहते हैं- '
विश्वस्य भरणाद् रमणाद् वमनात् सृष्टि-स्थिति-संहारकारी परशिवो भैरवः।' भ- से विश्व का भरण, र- से रमश, व- से वमन अर्थात सृष्टि को उत्पत्ति पालन और संहार करने वाले शिव ही भैरव हैं। तंत्रालोक की विवेक-टीका में भगवान शंकर के भैरव रूप को ही सृष्टि का संचालक बताया गया है।