माया का चमत्कार...

शंका मिट गई

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- श्रीमती अंजली सहाय

कौसल नगर में गाधि नामक ब्राह्मण रहते थे। वे प्रकांड पंडित और धर्मात्मा थे। सदैव अपने में लीन रहते थे। इसी का फल हुआ कि उन्हें वैराग्य हो गया। सब कुछ त्यागकर तप करने चल पड़े। वन के किसी सरोवर में खड़े होकर वे तप करने लगे। गहरे जल में उनका केवल चेहरा ही बाहर दिखता था, बाकी शरीर पानी में रहता था।

आठ माह की कठोर तपस्या के बाद भगवान विष्णु उनसे प्रसन्न हुए, आकर दर्शन दिए। वरदान मांगने को कहा।

विष्णुजी को देख गाधि निहाल हो गए। कहा, 'भगवन्! मैंने शास्त्रों में पढ़ा है, यह सारा विश्व आपकी माया ने ही रचा है। वह बड़ी अद्भुत है। मैं आपकी उसी माया का चमत्कार देखना चाहता हूं।'

' तुम उस माया का चमत्कार देखोगे, तभी उसे छोड़ोगे भी।' विष्णुजी ने कहा और वरदान देकर अंतर्ध्यान हो गए।

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गाधि ने तप करना छोड़ दिया, किंतु उसी सरोवर के किनारे रहते थे। कंद-मूल खाकर प्रभु के भजन गाते थे। इसी प्रतीक्षा में थे, कब भगवान की माया के दर्शन होंगे।

एक दिन गाधि सरोवर में स्नान करने गए। मंत्र पढ़कर पानी में डुबकी लगाने लगे। अचानक वह मंत्र भूल गए। उन्हें लगा, जैसे वह पानी में नहीं हैं। कहीं और हैं, फिर उन्हें लगा, जैसे वह सब कुछ भूलते जा रहे हैं। भूतमंडल नामक गांव में चांडाल के घर उन्होंने जन्म लिया। उनका नाम रखा गया कटंज।

कटंज बहुत सुंदर और बलवान था। युवा होने पर वह शिकार खेलने में बहुत होशियार हो गया। फिर उसका विवाह एक सुंदर कन्या से हुआ। उसके दो पुत्री भी हुए।

एक समय की बात, उस गांव में महामारी फैल गई। महामारी भी ऐसी कि पूरा गांव ही उजड़ गया। कटंज की पत्नी और दोनों पुत्री भी महामारी में चल बसे। वह बड़ा दुखी हुआ। परिवार के शोक में उसने गांव छोड़ दिया।

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भटकता हुआ कटंज कीर देश की राजधानी श्रीमतीपुरी में पहुंच गया। उन दिनों वहां कोई राजा नहीं था। किसी युद्ध में राजा मारा गया था। राजा चुनने का भी वहां अनोखा तरीका था। सिखाए हुए हाथी पर सोने की अम्बारी रखकर हाथी छोड़ दिया जाता था। हाथी मार्ग में चलते-चलते जिस आदमी को सूंड से उठाता, अम्बारी पर बैठा लेता, वही वहां का राजा बना दिया जाता था।

श्रीमतीपुरी में घूमता हुआ कटंज एक बाजार में पहुंचा। उसी समय हाथी भी सामने से आ रहा था। कटंज को देख, हाथी उसके पास आकर रुका, फिर सूंड से उठाकर उसे अम्बारी पर बैठा लिया। नए राजा को पाकर दरबारी जय-जयकार करने लगे। मंगलगीत गाए जाने लगे। बाजे बजने लगे।

कटंज ने अपना असली नाम छिपा, अपना नाम गवल बता दिया। शुभ मुहूर्त में कटंज का राजतिलक कर दिया गया। वह राजमहल में आनंद से रहने लगा।

एक दिन गवल अपने राजमहल की अटारी पर खड़ा था, तभी उसी के गांव का कोई चांडाल वहां से गुजरा। उसने उत्सुकता से राजा को देखा, तो उसे पहचान गया। वहीं से चिल्लाकर कहा, 'अरे कटंज! तुम यहां आकर राजा बन बैठे। चलो, बहुत अच्छा हुआ। चांडालों में अब तक कोई राजा नहीं बना था।'



मंत्री और सेनापति भी राजा के पास खड़े थे। उन्होंने यह सुना तो चौंके, आपस में कहने लगे, 'क्या हमारा राजा चांडाल है!'

धीरे-धीरे कटंज के चांडाल होने की बात चारों तरफ फैल गई। मंत्री और दरबारी राजा से दूर भागने लगे। कुछ दिन तक तो वह अकेला रहा। फिर सोचने लगा, 'जब मुझे कोई नहीं चाहता तो यहां रहना व्यर्थ है।' ऐसा सोचकर वह भी राजपाट त्यागकर चलता बना।

चलते-चलते दिन छिप गया। अंधेरी रात के कारण कुछ भी दिखाई नहीं पड़ रहा था। वह नदी के तट पर गया। नदी अंधेरे में ‍दिखी नहीं। कटंज आगे बढ़ा, तो छपाक से जल में जा पड़ा। अपने को बचाने के लिए हाथ-पैर मारे ही थे कि सरोवर के पानी में बेसुध पड़े गाधि को होश आ गया। अभी घड़ीभर में उन्होंने जो लीला देखी-भोगी थी, उसे याद कर उन्हें अति आश्चर्य हुआ।

बस, सोचने लगे, 'जप-जप करते समय ऐसा तो कभी हुआ नहीं?' भूला हुआ मंत्र भी अब उन्हें याद आ गया था। उन्होंने स्नान करके संध्या की, फिर पानी से बाहर निकल आए।

फिर विचारने लगे, 'ऐसा तो सपने में भी होता है। हो सकता है, वह सपना हो, उसी में मैंने सब कुछ किया हो, भोगा हो?'



इस प्रकार की बातें सोचते-विचारते गाधि धीरे-धीरे इस बात को भूलने लगे। कुछ दिन बीत गए। एक दिन उनके नगर का एक ब्राह्मण उधर आया। गाधि उसे बचपन से ही जानते थे। गाधि ने ब्राह्मण की आवभगत की फिर पूछा, 'आप इतने दुर्बल कैसे हो गए? क्या किसी रोग ने आ घेरा है?'

' भइया गाधि, आपसे क्या छुपाना! कुछ वर्ष पहले मैं तीर्थयात्रा पर गया था। घूमना हुआ कीर देश जा पहुंचा, वहां बड़ा आदर-सम्मान हुआ मेरा। मैं एक माह तक वहीं रहा। एक दिन मुझे पता चला कि उस देश का राजा एक चांडाल है। फिर एक दिन यह भी खबर सुनी, वह चांडाल नदी में डूब मरा। मुझे बहुत ही दुख हुआ। हृदय को कुछ ऐसी ठेस लगी कि मैं बीमार हो गया। बीमारी में ही अपने घर चला आया। इसी कारण मेरी यह बुरी हालत हो गई है।' ब्राह्मण ने बताया।

सुनकर गाधि ‍का सिर चकराने लगा। कुछ देर विश्राम करने के बाद ब्राह्मण चल दिया, तो गाधि व्याकुल हो उठे। उन्हें फिर से भूली बातें याद आ गईं। उसी समय चल पड़े भूतमंडल गांव को खोजने। मार्ग जानते नहीं थे। किसी तरह पूछते हुए पहुंचे।

वह गांव उन्हें जाना-पहचाना-सा लगा। फिर उस घर में पहुंचे, जहां कटंज चांडाल रहता था। यह घर भी उन्हें परिचित-सा लगा। वहां की हर वस्तु उनकी जानी-पहचानी थी। वह चकराए। सोचने लगे, 'मैं तो इस गांव और घर में कभी आया नहीं, फिर ये मुझे अ‍परि‍चित-से क्यों लग रहे हैं?

इसके बाद गाधि कीर नगर की राजधानी पहुंचे। राजमहल में गए। राजमहल के दरवाजे, शयनकक्ष, राजदरबार सभी कुछ उन्हें जाने-पहचाने लगे।

' यह सब क्या है? मैं पानी में केवल दो क्षण डुबकी लगाए रहा। उसी में मैंने इतना बड़ा दूसरा जीवन भी जी लिया। फिर भी पानी में ही रहा।

इसमें सत्य क्या है?' इसी उधेड़बुन में डूबे वह सरोवर तट पर आ पहुंचे। फिर तप करने लगे। अन्न-जल त्याग भी दिया।

भगवान विष्णुजी ने उन्हें फिर दर्शन दिए। बोले, 'ब्राह्मण, तुमने मेरी माया का चमत्कार देख लिया। मेरी इस माया ने ही विश्व को भ्रम से ढंका हुआ है। सभी विश्व को सत्य मानते हैं, जबकि वह उसी प्रकार है, जैसे तुमने चांडाल और राजा के अपने जीवन को देखा।'

सुनकर गाधि की सारी शंका मिट गई। वह उसी क्षण सब कुछ त्याग, गुफा में जाकर लीन हो गए।

साभार- पौराणिक कथाएं

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