एक निवेदन गणतंत्र दिवस पर

राकेशधर द्विवेदी
अंधेरा धरा पर छाया हुआ है
निशा कब कटेगी नहीं कुछ पता है
सूर्य अपनी डगर पर यूं ही खड़ा है
हर व्यक्ति परेशान अधीर खड़ा है
 

 
 
 
 
स्वप्न देखे हैं जाते पर पूरे न होते
रात्रि सा है ये जीवन सवेरे न होते
कभी जिंदगी में दिवाली न मनती
लिख सके जो दर्द को रोशनाई न बनती
 
कलम है परेशां और पुरुषार्थ थका है
मनोबल तो लगता है ठगा सा खड़ा है
है रावण यहां पर विजेता बना है
रघनंदन तो अब कहानियों में छुपा है
 
है न कोई नैतिक न नैतिकता बाकी
ईमानदारी‍ अब केवल कहानियों में सुनाई जाती
यह राष्ट्र की तस्वीर है निराली
यहां आम आदमी की हसरतें रह जाती अधूरी
 
मेरे नौजवान राष्ट्रवासियों इस निशा से उबारो
इस गणतंत्र पर राष्ट्र की तस्वीर नए सिरे से संवारो। 
 

 
 
Show comments

महाराष्ट्र में कौनसी पार्टी असली और कौनसी नकली, भ्रमित हुआ मतदाता

Prajwal Revanna : यौन उत्पीड़न मामले में JDS सांसद प्रज्वल रेवन्ना पर एक्शन, पार्टी से कर दिए गए सस्पेंड

क्या इस्लाम न मानने वालों पर शरिया कानून लागू होगा, महिला की याचिका पर केंद्र व केरल सरकार को SC का नोटिस

MP कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी और MLA विक्रांत भूरिया पर पास्को एक्ट में FIR दर्ज

टूड्रो के सामने लगे खालिस्तान जिंदाबाद के नारे, भारत ने राजदूत को किया तलब

कोविशील्ड वैक्सीन लगवाने वालों को साइड इफेक्ट का कितना डर, डॉ. रमन गंगाखेडकर से जानें आपके हर सवाल का जवाब?

Covishield Vaccine से Blood clotting और Heart attack पर क्‍या कहते हैं डॉक्‍टर्स, जानिए कितना है रिस्‍क?

इस्लामाबाद हाई कोर्ट का अहम फैसला, नहीं मिला इमरान के पास गोपनीय दस्तावेज होने का कोई सबूत

पुलिस ने स्कूलों को धमकी को बताया फर्जी, कहा जांच में कुछ नहीं मिला

दिल्ली-NCR के कितने स्कूलों को बम से उड़ाने की धमकी, अब तक क्या एक्शन हुआ?