लाल किले का असली इतिहास जो आपसे छुपाकर रखा गया

WD Feature Desk
Republic day 2024 : लाल किले के इतिहास को लेकर इतिहासकारों में मतभेद है। इसे भारत की प्राचीन इमारतों में से एक विश्व विरासत में शामिल किया है। कहते हैं कि लाल किले को मुगलकाल में बनाया गया था परंतु मुगलकाल के पूर्व भी इसके होने के संकेत मिलते हैं। तो फिर क्या है इसका असली इतिहास? 
ALSO READ: 26 जनवरी गणतंत्र दिवस : क्या महाभारत और बौद्ध काल में भी था लोकतंत्र
लाल हवेली और लाल कोट : ऐसी मान्यता है कि लाल किले को पहले तुर्क जाति के मुगल लोग लाल किला नहीं लाल हवेली कहते थे। क्यों? कुछ इतिहासकारों के अनुसार इसे लालकोट का एक पुरातन किला एवं हवेली बताते हैं जिसे शाहजहां ने कब्जा करके इस पर तुर्क छाप छोड़ी थी। 
 
लाल कोट का नाम बदलकर शाहजहानाबाद किया : दिल्ली का लालकोट क्षेत्र हिन्दू राजा पृथ्वीराज चौहान की 12वीं सदी के अंतिम दौर में राजधानी थी। लालकोट के कारण ही इसे लाल हवेली या लालकोट का किला कहा जाता था। बाद में मुगलों ने लालकोट का नाम बदलकर शाहजहानाबाद कर दिया।
 
मुगल बनाने तो नाम लाल किला नहीं रखते : लाल कोट अर्थात लाल रंग का किला, जो कि वर्तमान दिल्ली क्षेत्र का प्रथम निर्मित नगर था। यदि मुगल इसे बनाते या शाहजहां इसे बनवाते तो इसका नाम लाल किला नहीं रखते बल्की किसी फारसी भाषा के नाम पर रखते। कई लोग कहेंगे कि इसको अपना नाम लाल बलुआ पत्थर की प्राचीर एवं दीवार के कारण मिला है।
ALSO READ: स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस में क्या अंतर होता है? कैसे फहराया जाता है झंडा
किसने बनाया लाल किला : कहते हैं कि इसकी स्थापना तोमर शासक राजा अनंगपाल ने 1060 में की थी। साक्ष्य बताते हैं कि तोमर वंश ने दक्षिण दिल्ली क्षेत्र में लगभग सूरज कुण्ड के पास शासन किया था, जो 700 ईस्वी से आरम्भ हुआ था। दिल्ली का लाल किला शाहजहां के जन्म से सैकड़ों साल पहले 'महाराज अनंगपाल तोमर द्वितीय' द्वारा दिल्ली को बसाने के क्रम में ही बनाया गया था। महाराजा अनंगपाल तोमर द्वितीय अभिमन्यु के वंशज तथा परमवीर पृथ्वीराज चौहान के नानाजी थे।
 
किला राय पिथौरा नाम रखा : तोमर शासन के बाद फिर चौहान राजाओं का शासन चला। पृथ्वी राज चौहान ने 12वीं सदी में शासन ले लिया और उस नगर एवं किले का नाम किला राय पिथौरा रखा था। राय पिथौरा के अवशेष अभी भी दिल्ली के साकेत, महरौली, किशनगढ़ और वसंत कुंज क्षेत्रों में देखे जा सकते हैं।
 
लाल कोट को इस तरह किया रिकंस्ट्रक्शन : कुछ इतिहासकार मानते हैं कि शाहजहां (1627-1658) ने जो कारनामा तेजोमहल के साथ किया वही कारनामा लाल कोट के साथ। लाल किला पहले लाल कोट कहलाता था। कई भारतीय विद्वान इसे लाल कोट का ही परिवर्तित रूप मानते हैं। इसमें संदेह नहीं कि लाल किले में अनेक प्राचीन हिन्दू विशेषताएं-किले की अष्टभुजी प्राचीर, तोरण द्वार, हाथीपोल, कलाकृतियां आदि भारतीयों के अनुरूप हैं। शाहजहां के प्रशंसकों तथा मुस्लिम लेखकों ने उसके द्वारों, भवनों का विस्तारपूर्वक वर्णन नहीं किया है। 
 
ऑक्सफोर्ड बोडिलियन पुस्तकालय में रखा है सबूत : शाहजहां ने 1638 में आगरा से दिल्ली को राजधानी बनाया तथा दिल्ली के लाल किले का निर्माण प्रारंभ किया। अनेक मुस्लिम विद्वान इसका निर्माण 1648 ई. में पूरा होना मानते हैं। लेकिन ऑक्सफोर्ड बोडिलियन पुस्तकालय में एक चित्र सुरक्षित है जिसमें 1628 ई. में फारस के राजदूत को शाहजहां के राज्याभिषेक पर लाल किले में मिलता हुआ दिखलाया गया है। यदि किला 1648 ई. में बना तो यह चित्र सत्य का अनावरण करता है।
तारीखे फिरोजशाही का प्रमाण : इसका सबसे बड़ा प्रमाण है कि तारीखे फिरोजशाही में लेखक लिखता है कि सन 1296 के अंत में जब अलाउद्दीन खिलजी अपनी सेना लेकर दिल्ली आया तो वो कुश्क-ए-लाल (लाल प्रासाद/महल) की ओर बढ़ा और वहां उसने आराम किया।
 
अकबरनाम और अग्निपुराण में उल्लेख : लाल किले को एक हिन्दू महल साबित करने के लिए आज भी हजारों साक्ष्य मौजूद हैं। यहां तक कि लाल किले से संबंधित बहुत सारे साक्ष्य पृथ्वीराज रासो में मिलते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं, अकबरनामा और अग्निपुराण दोनों ही जगह इस बात के वर्णन हैं कि महाराज अनंगपाल ने ही एक भव्य और आलीशान दिल्ली का निर्माण करवाया था। शाहजहां से 250 वर्ष पहले 1398 ईस्वी में आक्रांता तैमूरलंग ने भी पुरानी दिल्ली का उल्लेख किया हुआ है।
 
लाल किले में सूअर और हाथी की मूर्ति : लाल किले के एक खास महल में सूअर के मुंह वाले चार नल अभी भी लगे हुए हैं। इस्लाम के अनुसार सूअर हराम है। साथ ही किले के एक द्वार पर बाहर हाथी की मूर्ति अंकित है, क्योंकि राजपूत राजा हाथियों के प्रति अपने प्रेम के लिए विख्यात थे। 
 
केसर कुंड : इसी किले में दीवाने खास में केसर कुंड नामक कुंड के फर्श पर कमल पुष्प अंकित है। दीवाने खास और दीवाने आम की मंडप शैली पूरी तरह से 984 ईस्वीं के अंबर के भीतरी महल (आमेर/पुराना जयपुर) से मिलती है, जो कि राजपुताना शैली में बनी हुई है। 
 
देवालय : आज भी लाल किले से कुछ ही गज की दूरी पर बने हुए देवालय हैं जिनमें से एक लाल जैन मंदिर और दूसरा गौरीशंकर मंदिर है, जो कि शाहजहां से कई शताब्दी पहले राजपूत राजाओं के बनवाए हुए हैं। लाल किले के मुख्य द्वार के ऊपर बनी हुई अलमारी या आलिया इस बात का पुख्ता प्रमाण है कि यहां पहले गणेशजी की मूर्ति रखी होती थी। पुरानी शैली के हिन्दू घरों के मुख्य द्वार के ठीक ऊपर या मंदिरों के द्वार के ऊपर एक छोटा सा आलिया बना होता है जिसके अंदर गणेशजी की प्रतिमा विराजमान होती है।
 
लाल किले पर पहले राजपूत राजाओं का आधिपत्य था बाद में मुगलों ने इस पर कब्जा कर लिया। इसके बाद 11 मार्च 1783 को सिखों ने लाल किले में प्रवेश कर दीवान-ए-आम पर कब्जा कर लिया था। उसके बाद इस पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया।

सम्बंधित जानकारी

Show comments

जरूर पढ़ें

मोहन भागवत के बयान पर भड़के असदुद्दीन ओवैसी, बोले- RSS और मुसलमान समंदर के 2 किनारे हैं जो...

Operation Sindoor से Pakistan में कैसे मची थी तबाही, सामने आया नया वीडियो

लश्कर का खूंखार आतंकी सैफुल्लाह खालिद पाकिस्तान में ढेर, भारत में हुए 3 बड़े आतंकी हमलों में था शामिल

दरवाजे पर बारात और दुल्हन ने दुनिया को कहा अलविदा, झोलाछाप डॉक्टर के कारण मातम में बदली खुशियां

हिमाचल में साइबर हैकरों ने की 11.55 करोड़ की ठगी, सहकारी बैंक के सर्वर को हैक कर निकाले रुपए

सभी देखें

नवीनतम

साल 2024 में 12000 करोड़ रुपए का यातायात जुर्माना, 9000 करोड़ का नहीं हुआ भुगतान, रिपोर्ट में हुआ खुलासा

उत्तराखंड में 6 बांग्लादेशियों और उनकी सहायता करने के आरोप में 2 भारतीय गिरफ्तार

Supreme Court : भारत कोई धर्मशाला नहीं, 140 करोड़ लोगों के साथ पहले से ही संघर्ष कर रहा है, सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी

योगी की नगरी में बनेगा 236 करोड़ रूपए का अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम

Punjab: आईएसआई को संवेदनशील जानकारी देने के आरोप में गुरदासपुर से 2 लोग गिरफ्तार

अगला लेख