इतिहास में 26 फरवरी 2002 की दिनांक भी एक काले दिन के रूप में दर्ज है। गोधरा कांड की लपलपाती लपटों में कितने ही दिल झुलस गए। बार-बार बदलते बयानों के तमाशों के बीच गोधरा ट्रेन की राख में सच दब कर रह गया।
सरकारी रिपोर्ट के आंकड़ों के पीछे से झांकता सच तड़प कर बाहर भी आना चाहे तो अब हमें कहां फुर्सत उसे सुनने-समझने की। क्योंकि उसके बाद की कितनी ही 26 तारीखों का जख्म रिस रहा है। किस-किस का मातम मनाएं? और कब तक?
विनाश और 26 तारीख का संबंध है कि खत्म होता ही नहीं। विनाश चाहे प्रकृतिजन्य हो या मनुष्यजनित उसने अपनी क्रूरता के कई किस्से इतिहास में दर्ज किए हैं।
26 अगस्त 2003 में नासिक के कुंभ मेले में सैकड़ों लोग मारे गए वहीं 26 दिसंबर 2004 में उमड़ी सूनामी का कहर सिहरा देता है। हत्यारी लहर ने हजारों मानवों को निगल लिया। विकास का दावा करने वाला प्रगतिशील इंसान स्तब्ध सा खड़ा रह गया। सूनामी के दिए आंसू अभी सूखे भी नहीं थे कि 26 जून 2004 में गुजरात में आई भीषण बाढ़ ने जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया।
प्रकृति का यह कोप इतने पर भी नहीं थमा और 26 जुलाई 2005 में मुंबई की असंयमित बाढ़ अश्रुओं का सैलाब लेकर आई। इस बाढ़ ने मुंबई के घर-घर में बेबसी की छाप छोड़ी। प्रकृति की क्रूरता को सहन करना मानवता की बेबसी हो सकती है। मगर मनुष्य की बर्बरता को बर्दाश्त करना बेबसी नहीं कमजोरी है। भारत की सुंदर धरा पर ना जाने किसने रोपी है दरिंदगी की फसल? आए दिन के बम ब्लास्ट से धरती रक्तरंजित हो रही है। 26 मई 2007 में गोवाहाटी में हुए ब्लास्ट ने सैकड़ों लोगों को मौत के घाट उतार दिया। वहीं 26 जुलाई 2008 के अहमदाबाद ब्लास्ट ने प्रशासन की नींद उड़ा दी।
इस ब्लास्ट के बाद देश के अन्य हिस्सों में जिस सतर्कता और सक्रियता की जरूरत थी वह निश्चित रूप से नहीं हुई। परिणाम हम सबके सामने है एक और 26 तारीख। मुंबई हमले में सैकड़ों लोगों की नृशंस हत्या ने हर भारतवासी को छलनी कर दिया। देश के कर्मठ सिपाही, पुलिस अधिकारी खिलौनों की तरह हमारे सामने नष्ट कर दिए गए।
इन 26 तारीखों के खूनी इतिहास ने आशंकित कर दिया है हर मन को। कहीं फिर किसी 26 को कोई स्याह दिन हमारे विश्वास को ना लूट लें। अंधविश्वास की बात ना करें तब भी सावधानी के संकेत तो देती ही है 26 तारीख।