प्रेम कविता : रख दो हथेलियों पर अक्षर

स्मृति आदित्य
रख दो 
इन कांपती हथेलियों पर 
कुछ गुलाबी अक्षर 
कुछ भीगी हुई नीली मात्राएं 
बादामी होता जीवन का व्याकरण, 
चाहती हूं कि उग ही आए कोई कविता
अंकुरित हो जाए कोई भाव, 
प्रस्फुटित हो जाए कोई विचार 
फूटने लगे ललछौंही कोंपलें ...
मेरी हथेली की ऊर्वरा शक्ति
सिर्फ जानते हो तुम 
और तुम ही दे सकते हो 
कोई रंगीन सी उगती हुई कविता 
इस 'रंगहीन' वक्त में.... 
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