प्रेम कविता : तुम्हें मैं क्या गीत सुनाऊं

राकेशधर द्विवेदी
प्रिये! तुम्हें मैं क्या गीत सुनाऊं
जो ला सके तुम्हारे अधरों पर मुस्कान
वो सुर-ताल कहां से लाऊं
प्रिये! तुझे मैं क्या गीत सुनाऊं।

रह-रहकर कहती है पुरवा
मंद पवन के झोंके, कुछ कह जाती रुककर
मिट्टी की सौंधी खुशबू और पानी सोते का
रोम-रोम में जो भर दे सिहरन
वह स्पंदन कहां से लाऊं
 
प्रिये! तुम्हें मैं क्या गीत सुनाऊं
वो वंशी की तान कहां से लाऊं
जो ला सके तुम्हारे अधरों पर मुस्कान
वह सुर-ताल कहां से लाऊं
 
रह-रहकर मैं शरमाऊं
दिल का क्या हाल बताऊं
प्रिये! तुम्हें मैं क्या गीत सुनाऊं
जो ला सके तुम्हारे अधरों पर मुस्कान
Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

गर्मियों में इन हर्बल प्रोडक्ट्स से मिलेगी सनबर्न से तुरंत राहत

जल की शीतलता से प्रभावित हैं बिटिया के ये नाम, एक से बढ़ कर एक हैं अर्थ

भारत-पाक युद्ध हुआ तो इस्लामिक देश किसका साथ देंगे

बच्चों की कोमल त्वचा पर भूलकर भी न लगाएं ये प्रोडक्ट्स, हो सकता है इन्फेक्शन

पाकिस्तान से युद्ध क्यों है जरूरी, जानिए 5 चौंकाने वाले कारण

सभी देखें

नवीनतम

प्रभु परशुराम पर दोहे

अक्षय तृतीया पर अपनों को भेजें समृद्धि और खुशियों से भरे ये प्यारे संदेश

भगवान परशुराम जयंती के लिए उत्साह और श्रद्धा से पूर्ण शुभकामनाएं और स्टेटस

समर्स में शरीर की गर्मी बढ़ा देती हैं ये चीजें, पड़ सकते हैं बीमार

गर्मी के दिनों में फैशन में हैं यह कपड़े, आप भी ट्राय करना ना भूलें

अगला लेख