प्रिय तुम मेरी कविताओं में आओगे

राकेशधर द्विवेदी
जब रात चांदनी रो रोकर
कोई गीत नया सुनाएगी
ओस की बूंद बनकर 
धरती पर वह छा जाएगी
 
उसकी उस मौन व्यथा को
तुम शब्दों का रूप दे जाओगे
 
प्रिय तुम मेरी कविताओ में आओगे
जब आंख के आंसू बहकर के
 
कपोलों पर ठहरे होंगे
जब काजल के शब्दों ने 
 
कुछ गीत नए लिखे होंगे
तब इन गीतों के शब्दों में
 
तुम ध्वनि बनकर बस जाओगे
 
प्रिय तुम मेरी कविताओं में आओगे
 
जब पीड़ा अपने स्वर को
 
कैनवस पर मुखरित करेगी
गजल और गीत बनकर वो
 
मन मन्दिर को हर्षित करेगी
तब तुम श्याम की बांसुरी बन करके
 
तन-मन को महकाओगे
प्रिय तुम मेरी कविताओं में आओगे। 
                                

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