हिन्दी प्रेम कविता : वह घूम रही उपवन-उपवन...

विनोद वर्मा 'दुर्गेश'
पुष्पों-सी नजाकत अधरों पर
नवनीत-सा कोमल उर थामे।
एक पाती प्रेम भरी लेकर
वह घूम रही उपवन-उपवन।


 
 
 
 
सुर्ख कपोलों पर स्याह लटें
धानी आंचल का कर स्पर्श।
छूने को नभ का केंद्र-पटल
वह घूम रही उपवन-उपवन।
 
मधुर रागिनी करतल ध्वनि पर
छेड़े अनकही अविरल सरगम।
सुधि बिसार, गर्दन उचकाए
वह घूम रही उपवन-उपवन।
 
भोर को निकली सांझ ढले तक
प्रियतम की अपलक बाट जोहती।
अतृप्त, अप्रसन्न और विक्षिप्त-सी
वह घूम रही उपवन-उपवन।
 
ना साज-सिंगार, ना इच्छा बाकी
रोम-रोम बसे मूरत यार की।
ले अभिलाषा उसके आवन की
वह घूम रही उपवन-उपवन।
 
Show comments

गर्भवती महिलाओं को क्यों नहीं खाना चाहिए बैंगन? जानिए क्या कहता है आयुर्वेद

हल्दी वाला दूध या इसका पानी, क्या पीना है ज्यादा फायदेमंद?

ज़रा में फूल जाती है सांस? डाइट में शामिल ये 5 हेल्दी फूड

गर्मियों में तरबूज या खरबूजा क्या खाना है ज्यादा फायदेमंद?

पीरियड्स से 1 हफ्ते पहले डाइट में शामिल करें ये हेल्दी फूड, मुश्किल दिनों से मिलेगी राहत

मेडिटेशन करते समय भटकता है ध्यान? इन 9 टिप्स की मदद से करें फोकस

इन 5 Exercise Myths को जॉन अब्राहम भी मानते हैं गलत

क्या आपका बच्चा भी हकलाता है? तो ट्राई करें ये 7 टिप्स

जर्मन मीडिया को भारतीय मुसलमान प्रिय हैं, जर्मन मुसलमान अप्रिय

Metamorphosis: फ्रांत्स काफ़्का पूरा नाम है, लेकिन मुझे काफ़्का ही पूरा लगता है.

अगला लेख