प्रेम काव्य : रखना नहीं दिल से दूर

राकेशधर द्विवेदी
मैं भौंरा बन के गुनगुनाऊं
मैं आंखों में तेरी बस जाऊं


 
मैं गजरे का फूल बन जाऊं
रखना नहीं दिल से दूर
रखना नहीं दिल से दूर
 
मैं आंखों का नूर बन जाऊं
मैं गजल बनकर ओंठों पे आऊं 
मैं वीणा का तार बन जाऊं
हाथों का तेरे स्पंदन पाऊं
रखना नहीं दिल से दूर
रखना नहीं दिल से दूर
 
मैं फूल बनकर मुस्कराऊं
मैं नदिया की कल-कल बन जाऊं
मैं चांदनी बनकर खिलखिलाऊं
रखना नहीं दिल से दूर
रखना नहीं दिल से दूर
 
मैं बेला की खुशबू बन जाऊं
मैं सांसों में तेरी बस जाऊं
मैं कविता बोल बन जाऊं
रखना नहीं दिल से दूर
रखना नहीं दिल से दूर। 
 
 
Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

नमक-मिर्च वाली केरी खाने से पहुंचा रहे हैं सेहत को नुकसान, हो जाइये सावधान

लू लगने पर शरीर में दिखते हैं ये लक्षण, हीट स्ट्रोक से बचने के लिए अपनाएं ये उपाय और ज़रूरी सावधानियां

गर्मियों में धूप में निकलने से पहले बैग में रखें ये चीजें, लू और सन टेन से होगा बचाव

मोबाइल युग में पुस्तकें पढ़ने को प्रेरित करती एक मजेदार कविता: देकर हमें दुआएं

क्यों मनाया जाता है पृथ्‍वी दिवस, पढ़ें निबंध

सभी देखें

नवीनतम

कब और क्यों मनाया जाता है पृथ्वी दिवस, जानें इतिहास, महत्व और 2025 की थीम

पृथ्वी दिवस पर रोचक नाटक: धरती की डायरी, सृष्टि से संकट तक

पृथ्वी दिवस पर दो अनूठी कविताएं

विश्व पुस्तक दिवस पर मेरी किताब पर मेरी बात पर चर्चा

पृथ्वी दिवस 2025: कैसे सुधारा जा सकता है धरती के पर्यावरण को?

अगला लेख