एक फौजी को वतन का सलाम

Webdunia
- मनोज दुबे

16 दिसंबर 1971 का दिन था। एक नया देश दुनिया के नक्शे पर उभर आया था, बांग्लादेश और उस पाकिस्तान के उस सौतेले टुकड़े को आजादी की साँस दिलाने वाली शख्सियत थी, जनरल मानेकशॉ। बांग्लादेश युद्ध के दौरान उनकी रणनीति ही काम आई कि तेरह दिन में पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद यह पहला मौका था कि 45 हजार से ज्यादा सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया था।

शुरुआती जीवन : बीती 3 अप्रैल को ही उनका 94वाँ जन्मदिन था। सैम होरमुसजी
जब दिल लगा
  बात 1937 की है, एक कार्यक्रम में सैम की मुलाकात सिलू बोड से हुई। दोनों में प्रेम हो गया। सिलू बॉम्बे के एलफिंस्टन कॉलेज से ग्रेजुएट थीं और पेंटिंग उनका शौक था। कुदरत की इस चित्रकारी पर फौजी का दिल आ गया और दोनों ने 22 अप्रैल 1939 को शादी कर ली      
फ्रामजी जमशेदजी मानेकशॉ 1914 में अमृतसर में पैदा हुए, तब उनके पिता डॉक्टर एचएफ मानेकशॉ प्रथम विश्वयुद्ध में इंडियन मेडिकल सर्विस में कैप्टन थे। 'सॅम' नाम से वे अपनों के बीच जाने जाते थे। नैनीताल के शेरवुड कॉलेज में प्राथमिक शिक्षा हुई।

दो बड़े भाई इंग्लैंड में थे, सो इंग्लैंड जाना तय हुआ, लेकिन ऐनवक्त पर टल गया। कॉलेज की शिक्षा हिन्दू सभा कॉलेज, अमृतसर में ही हुई। यहाँ से उनका चयन भारतीय सैन्य अकादमी देहरादून में हो गया। अकादमी में प्रवेश पाने वाले वे पहले 40 कैडेटों में से एक थे। 1934 में वे भारतीय थलसेना में कमीशन प्राप्त कर गए।

जब दिल लगा : बात 1937 की है, एक कार्यक्रम में सैम की मुलाकात सिलू बोड से हुई। दोनों में प्रेम हो गया। सिलू बॉम्बे के एलफिंस्टन कॉलेज से ग्रेजुएट थीं और पेंटिंग उनका शौक था। कुदरत की इस चित्रकारी पर फौजी का दिल आ गया और दोनों ने 22 अप्रैल 1939 को शादी कर ली।

फौजी का फौलाद : बात दूसरे विश्वयुद्ध की है, तब सॅम ने जापानी सेना से टक्कर ले ली थी। बर्मा के भीतरी इलाके में सितांग नदी के आसपास कैप्टन के रूप में वे अपने कुछ जवानों के साथ थाईलैंड की ओर से रंगून पर धावा बोलने आ रही जापानी सेना से भिड़ लिए। दुश्मन की मशीनगनों से निकली सात गोलियाँ शरीर में और लड़ने का जबर्दस्त जज्बा। जब हाथ जमीन पर टिका, तब तक बहादुरी के चर्चे परचम फहरा चुके थे और बदले में मिला सर्वोच्च सैनिक सम्मान 'मिलिट्री क्रॉस'।

8 जून 1969 को थलसेना अध्यक्ष बनने वाले वे पहले भारतीय कमीशन प्राप्त अधिकारी थे। उनके पहले सभी फौजी अफसर सैंडहर्स्ट में प्रशिक्षित किंग्स कमीशन प्राप्त थे।

... तो शायद सूरत और होती : बात 29 अप्रैल 1971 की है। तत्कालीन प्रधानमंत्री
  मानेकशॉ की कार्यशैली चूँकि फील्ड मार्शल मान्टगोमरी के समान ही थी, इसलिए सत्ता के आसपास के कुछ लोग अपने समय में उन्हें मॉन्टी भी कहते थे      
श्रीमती इंदिरा गाँधी ने ताबड़तोड़ मंत्रिमंडल की बैठक बुलाई। बैठक में रक्षामंत्री जगजीवनराम, कृषि मंत्री फखरुद्दीन अली अहमद, वित्तमंत्री वायबी चव्हाण, विदेश मंत्री सरदार स्वर्ण सिंह और विशेष आमंत्रित सेना प्रमुख जनरल सैम मानेकशॉ थे। पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे ने पूर्वी पाकिस्तान से आए शरणार्थियों की रपट को टेबल पर फेंकते हुए जनरल मानेकशॉ की ओर देखा और कहा-

* इंदिराजी- मैं पूर्वी पाकिस्तान में प्रवेश चाहती हूँ।
* मानेकशॉ- इसका अर्थ है युद्ध।
* इंदिराजी- भले ही वह लड़ाई हो।
* मानेकशॉ- क्या आपने बाइबल पढ़ी है।
* सरदार स्वर्णसिंह- इसका बाइबल से क्या लेना-देना है।

* मानेकशॉ- शुरू में अँधेरा था और ईश्वर के कहने के बाद ही प्रकाश हुआ। मेरे पास केवल 30 टैंक और दो सशस्त्र डिवीजन है। हिमालय के दर्रे कभी भी इस गर्मी में खुल सकते हैं। और ऐसे में यदि चीन ने कुछ हरकत की तो क्या? इस समय में पूर्वी पाकिस्तान में बारिश भी शुरू हो जाती है। वहाँ की बारिश में नदियाँ समंदर बनती हैं और ऐसे में हार 100 फीसदी पक्की है।

उनके ही बस की बात : वे जनरल मानेकशॉ ही थे, जिन्होंने असमय पूर्वी पाकिस्तान पर एकदम हमले की बात को नकार दिया, जबकि मंत्रिमंडल में किसी ने भी शायद इंदिराजी की बात का विरोध नहीं किया था। यह बैठक अपराह्न 4 बजे खत्म हुई और कमरे से अंत में निकलने वाले जनरल मानेकशॉ ने इंदिराजी से यह भी पूछा था कि क्या मैं अपने स्वास्थ्य को आधार बनाकर अपना इस्तीफा भेज दूँ।

परंतु श्रीमती गाँधी ने देश के इस निर्भीक फौजी अफसर को रणनीति बनाने का समय दिया और सात माह 4 दिन बाद यानी 3 अगस्त पाकिस्तान ने ही बौखलाकर भारतीय सैनिकों पर हमला कर दिया था। मानेकशॉ की कार्यशैली चूँकि फील्ड मार्शल मान्टगोमरी के समान ही थी, इसलिए सत्ता के आसपास के कुछ लोग अपने समय में उन्हें मॉन्टी भी कहते थे।

दिलचस्प वाकया : भारत से पाकिस्तान जब अलग हुआ, तब सॅम मानेकशॉ गोरखा राइफल्स के प्रमुख मिलिट्री ऑपरेशन डायरेक्टोरेट में मेजर जनरल याह्या खाँ के साथ काम कर रहे थे और 23 साल बाद ये दोनों फौजी अफसर जंग में आमने-सामने थे। 1971 के भारत-पाक युद्ध में दोनों को अपनी ताकत दिखाना थी। फर्क इतना था कि याह्या खाँ तब पाकिस्तान के राष्ट्रपति थे।

उधार बांग्लादेश देकर चुकाया : जिन दिनों सॅम मानेकशॉ और याह्या खाँ एक ही साथ काम करते थे, तब मानेकशॉ के पास एक जेम्स मोटरसाइकल हुआ करती थी। तब उन्होंने इसे 1400 रु. में खरीदी थी। मानेकशॉ बताते थे कि याह्या खाँ इस पर फिदा थे। 13 अगस्त 1947 की बात है, याह्या खाँ ने कहा- मैं इसके 1000 रु. दूँगा, चलेगा। मानेकशॉ बोले- ठीक है। तब खाँ बोले- मैं पैसे भिजवा दूँगा, जो शायद कभी नहीं आए, परंतु पूर्वी पाकिस्तान फतह करने के बाद ऐसा लगा, हजार रुपए के उधार चुकता कर दिए हों।

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