कैसे थे प्राचीन अस्त्र-शस्त्र और कौन से, जानिए...

अनिरुद्ध जोशी
प्राचीन वैदिक काल में आज के सभी तरह के आधुनिक अस्त्र-शस्त्र थे। इसका उल्लेख वेदों में मिलता है। उस काल की तकनीक आज के काल से भिन्न थी लेकिन अस्त्रों की मारक क्षमता उतनी ही थी जितनी कि आज के काल के अस्त्रों की है। हालांकि ये किस तकनीक से संचालित होते थे, यह शोध का विषय है। उस काल में युद्ध के दौरान शरीर के विभिन्न अंगों की रक्षा का उल्लेख भी मिलता है। उदाहरणार्थ शरीर के लिए चर्म तथा कवच का, सिर के लिए शिरस्त्राण और गले के लिए कंठत्राण इत्यादि का।


अस्त्र-शस्त्र की परिभाषा : 'अस्त्र' उसे कहते थे, जो किसी मंत्र या किसी यंत्र द्वारा संचालित होते थे और 'शस्त्र' उसे कहते थे, जो हाथों से चलाए जाते थे। अस्त्रों को मंत्रों द्वारा दूरी से फेंकते थे, जैसे पाशुपतास्त्र, ब्रह्मास्त्र, गरूड़ास्त्र आदि।

अस्त्र के सामान्य भाग :
1. हाथ से फेंके जाने वाले अस्त्र, जैसे भाला।
2. वे अस्त्र जो यंत्र द्वारा फेंके जाते हैं, जैसे बाण, गुलेल आदि।
3. वे अस्त्र जो मंत्र या तंत्र द्वारा फेंके जाते हैं, जैसे नारायाणास्त्र, पा‍शुपत ब्रह्मास्त्र आदि।

शस्त्र : शस्त्रों को हाथों से संचालित किया जाता था। ये भी खतरनाक होते थे। शस्त्रों को हाथ से भी चलाया जाता था और किसी छोटे से यंत्र से भी, जैसे तलवार, वज्र, खंजर, खप्पर, खड्ग, परशु, बरछा, त्रिशूल आदि।

शस्त्र के सामान्य भाग:
1. काटने वाले शस्त्र, जैसे तलवार, परशु आदि।
2. भोंकने वाले शस्त्र, जैसे बरछा, त्रिशूल आदि।
3. कुंद शस्त्र, जैसे गदा, लट्ठ आदि।

 

अगले पन्ने पर वेदों में उक्त भागों को क्या कहते हैं...


वेदों में 18 युद्ध कलाओं के विषयों पर मौलिक ज्ञान अर्जित है। उपवेद ‘धनुर्वेद’ पूर्णतया धनुर्विद्या को समर्पित है। हालांकि वेदों में अस्त्र-शस्त्रों का वर्णन मिलता है लेकिन धनुर्वेद, धनुष-चन्द्रोदय और धनुष-प्रदीप इन 3 प्राचीन ग्रंथों का अक्सर जिक्र होता है। अग्नि पुराण में धनुर्वेद के विषय में उल्लेख किया गया है कि उसमें अस्त्रों के प्रमुख 4 भाग हैं- 1. अमुक्ता, 2. मुक्ता, 3. मुक्तामुक्त और 4. मुक्तसंनिवृत्ती।

*अमुक्ता : अमुक्ता को शस्त्रों की श्रेणी में रखा गया है। ये वे शस्त्र होते थे, जो फेंके नहीं जा सकते थे।

अमुक्ता के 2 प्रकार हैं- 1. हस्त-शस्त्र : हाथ में पकड़कर आघात करने वाले हथियार जैसे तलवार, गदा आदि। 2. बाहू-युद्ध : नि:शस्त्र होकर युद्ध करना।

*मुक्ता : मुक्ता को अस्त्रों की श्रेणी में रखा गया, जो फेंके जा सकते थे।

मुक्ता के 2 प्रकार हैं:- 1. पाणिमुक्ता : अर्थात हाथ से फेंके जाने वाले अस्त्र जैसे भाला और 2. यंत्रमुक्ता : अर्थात यंत्र द्वारा फेंके जाने वाले अस्त्र जैसे बाण, जो धनुष से फेंका जाता है।

*मुक्तामुक्त : हाथ में पकड़कर किंतु अस्त्र की तरह प्रहार करने वाले शस्त्र जैसे कि बर्छी, त्रिशूल आदि। अर्थात वे शस्त्र जो फेंककर या बिना फेंके दोनों प्रकार से प्रयोग किए जाते थे।

*मुक्तसंनिवृत्ती : वे शस्त्र जो फेंककर लौटाए जा सकते थे, जैसे चक्र आदि।

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अस्त्रों के प्रमुख प्रकार : 1. दिव्यास्त्र और 2. यांत्रिकास्त्र।

1. दिव्यास्त्र : वे अस्त्र जो मंत्रों से चलाए जाते थे, उन्हें दिव्यास्त्र कहते हैं। प्रत्येक अस्त्र पर भिन्न-भिन्न देव या देवी का अधिकार होता है और मंत्र-तंत्र द्वारा उसका संचालन होता है। वस्तुत: इन्हें दिव्य तथा मांत्रिक-अस्त्र कहते हैं।

दिव्यास्त्रों के नाम : 1. आग्नेयास्त्र, 2. पर्जन्य, 3. वायव्य, 4. पन्नग, 5. गरूड़, 6. नारायणास्त्र, 7. पाशुपत, 8. ब्रह्मशिरा, 9. एकागिन्न 10. अमोघास्त्र और 11. ब्रह्मास्त्र। इसके अलावा कुछ ऐसे भयानक अस्त्र थे जो यंत्र या तंत्र से संचालित होते थे।

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शस्त्र के प्रमुख 2 प्रकार हैं- 1. यांत्रिक और 2. हस्त।

1. यांत्रिक : इन शस्त्रों को किसी यंत्र द्वारा चलाया जाता था, जैसे शक्ति, तोमर, पाश, बाण सायक, शण, तीर, परिघ, भिन्दिपाल, नाराच आदि।

2. हस्त : ऋष्टि, गदा, चक्र, वज्र, त्रिशूल, असि, खड्ग, चन्द्रहास, फरसा, मुशल, परशु, कुण्टा, शंकु, पट्टिश, वशि, तलवार, बरछी, कुल्हाड़ा, चाकू, भुशुण्डी आदि।
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