जब धरती पर रहते थे...'देवता'

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
हिन्दू धर्म में जिसे देवता कहा जाता है, इस्ला‍म में उन्हें फरिश्ता कहा गया है। ईसाई धर्म में ऐन्जल कहते हैं।

हिस्ट्री चैनल की रिपोर्ट अनुसार वर्षों के वैज्ञानिक शोध से यह पता चला कि 12 हजार ईपू धरती पर देवता या दूसरे ग्रहों के लोग उतरे और उन्होंने पहले इंसानी कबीले के सरदारों को ज्ञान दिया और फिर बाद में उन्होंने राजाओं को अपना संदेशवाहक बनाया और अंतत: उन्होंने इस धरती पर कई प्रॉफेट पैदा कर दिए। हालांकि इसमें कितनी सचाई है यह हम नहीं जानते हैं। हम इसका समर्थन नहीं करते।

हिस्ट्री चैनल की एक सीरिज अनुसार ऐसा माना जा सकता है कि वे अलग-अलग काल में अलग-अलग धर्म और समाज की रचना कर धरती के देवता या कहें कि फरिश्ते बन बैठे। सचमुच इंसान उन्हें अपना देवता या फरिश्ता मानता है। वे आकाश से उतरे थे इसलिए सर्वप्रथम उन्हें आकाशदेव कहा गया। जानकारों ने उन्हें स्वर्गदूत कहा और धर्मवेत्ताओं ने उन्हें ईश्वर का दूत कहा।

आकाश से उतरे इन देवदूतों (धर्मग्रंथों और सभ्यताओं के टैक्स अनुसार वे स्वर्गदूत थे) ने जब यहां की स्त्रियों के प्रति आकर्षित होकर उनके साथ समागम करना शुरू किया तो उन्हें स्वर्ग से बहिष्कृत स्वर्गदूत कहा जाने लगा। लेकिन वे लोग जो उन्हें 'धरती को बिगाड़ने का दोषी' मानते थे उन्होंने उन्हें राक्षस या शैतान कहना शुरू कर दिया। हालांकि सभी बुरे नहीं थे, ज्यादातर अच्छे थे। बाइबल में इस युग को नेफिलीम युग कहा गया।

इन आकाशदेव के संबंध में बाद में लंबे काल तक इस बात को लेकर इंसानों में झगड़े चलते रहे। दो गुट बने- पहले वे जो आकाशदेव, स्वर्गदूत या ईशदूत के साथ थे और दूसरे वे जो उन्हें शैतान मानते थे। विरोधी लोग रक्त की शुद्धता बनाए रखने के लिए उनका विरोध करते थे।

प्राचीन सभ्यता के अनुसार : इजिप्ट और माया सभ्यता के कुछ लोग मानते थे कि अंतरिक्ष से हमारे जन्मदाता एक निश्चित समय पर पुन: लौट आएंगे। ओसाइशिरा (मिस्र का देवता) जल्द ही हमें लेने के लिए लौट आएगा। गिजावासी मरने के बाद खुद का ममीकरण इसीलिए करते थे ‍कि उनका 'आकाशदेव' उन्हें अं‍तरिक्ष में ले जाकर उन्हें फिर से जीवित कर देगा?

इजिप्ट के पिरामिडों के टैक्स से पता चला कि स्वर्ग से आए थे देवता और उन्होंने ही धरती पर जीवों की रचना की। इजिप्ट के राजा उन्हें अपना पूर्वज मानते थे। उन्होंने इजिप्टवासियों को कई तरह का ज्ञान दिया। उनकी कई पीढ़ियों ने यहां शासन किया। उनके सिर पीछे से लंबे होते थे।

अनुनाकी : सुमेरियन शब्द है जिसका प्रयोग स्वर्ग से निकाले गए लोगों के लिए होता था। अनुनाकी जिन्होंने दुनिया की पहली महान सुमेर सभ्यता को स्थापित और गतिशील किया। सुमेरियन भी मानते हैं कि अनुनाकी नाम का एक देवता धरती पर उतरा था और उसने यहां नगर बनाए और हमें सुरक्षा प्रदान की। हालांकि भारतीय धर्म के इतिहसकार मानते हैं कि यायाति के पांच पुत्रों में से एक अनु ने मध्य एशिया में सभ्यताओं का विकास किया था। प्राचीनकाल में हिन्दुकुश से लेकर अरुणाचल तक के हिमालयन क्षेत्र को स्वर्ग स्थान बाना जाता था।

अनुनाकी के बाद तिहूकानो की सभ्यता का अस्तित्व रहा। जब उन्होंने एक छोटा गांव (तिहूनाको) बनाया तो उन्होंने उसकी दीवारों पर अपने लोगों के चित्र भी बनाए और उनके बारे में भी लिखा। तिहूनाको में काफी तादाद में जो पत्‍थरों की दीवारें हैं उनमें अलग-अलग तरह के मात्र गर्दन तक के सिर-मुंह बने हैं। ये सिर या स्टेचू स्थानीय निवासियों के नहीं हैं। तिहूनाको के आदिवासी पुमा पुंकु में घटी असाधारण घटना की याद में आज भी गीत गाते हैं। पुमा पुंका में आकाश से देवता उतरे थे।

भारतीय, मिस्र, ग्रीस, मैक्सिको, सुमेरू, बेबीलोनिया और माया सभ्यता के अनुसार वे कई प्रकार के थे, जैसे आधे मानव और आधे जानवर। इंसानी रूप में वे लंबे-पतले थे। उनका सिर पीछे से लंबा था। वे 8 से 10 फीट के थे। अर्धमानव रूप में वे सर्प, गरूड़ और वानर जैसे थे। आपने विष्णु के वाहन का चित्र देखा होगा। नागदेवता को कौन नहीं जानता?

दूसरे वे थे जो राक्षस थे, जो बहुत ही खतरनाक और लंबे-चौड़े थे। कुछ तो उनमें से पक्षी जैसे दिखते थे और कुछ वानर जैसे। उनमें से कुछ उड़ सकते थे और समुद्र में भीतर तल पर चल सकते थे। जब वे समुद्र के भीतर चलते थे तो उनके सिर समुद्र के ऊपर दिखाई देते थे। उनमें ऐसी शक्तियां थीं, जो आम इंसानों में नहीं थीं जैसे पानी पर चलना, उड़ना, गायब हो जाना आदि।

भारत में सर्प मानव, वानर मानव, पक्षी मानव और इसी तरह के अन्य मानवों की कथाएं मिलती हैं। चीन में पवित्र ड्रेगन को स्वर्गदूत माना जाता है, जो 4 हैं और ये चारों ही समुद्र के बीचोबीच भूमि के अंदर रहते हैं। भारतीय पुराणों अनुसार भगवान ब्रह्मा ने विशालकाय मानवों की रचना की थी जिनका उत्पाद बढ़ने के बाद भगवान शिव ने सभी को मार दिया था।

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बाइ‍बल के अनुसार : बाइबल में इस तरह के काल को 'नेफिलीम' का काल कहा गया है। बाइबल के अनुसार इस काल में देवताओं को स्वर्ग से बाहर कर दिया गया था और वे सभी धरती पर आकर रहने लगे थे। उन्होंने यहां की स्त्रियों के साथ संभोग कर उनको बिगाड़ा। वे स्वर्गदूतों के बच्चे थे। उनमें से एक शैतान था। परमेश्वर ने स्वर्गदूतों को स्वर्ग में रहने के लिए बनाया था, न कि धरती पर लेकिन वे सब धरती पर आ गए।

धरती पर वे इंसानों की औरतों की ओर आकर्षित होने लगे और फिर वे अपनी मनपसंद औरतों के साथ रहने लगे। फिर उनके भी बच्चे हुए और धीरे-धीरे उन्होंने धरती पर अपना साम्राज्य फैलाना शुरू किया। सामान्य मानव उन्हें या तो देवदूत कहता या राक्षस। इस तरह धरती पर एक नए तरह का युग शुरू हुआ और नए तरह का संघर्ष भी बढ़ने लगा और सभी तरफ एलियंस का ही साम्राज्य हो गया। लोग रक्तशुद्धता पर जोर देने लगे।

बाइबल के अनुसार प्रधान स्वर्गदूत मीकाएल (या मीकाईल) जिबराइल हैं। प्रकाशित वाक्य की किताब में, वह इब्लीस और उसकी दुष्टात्माओं के साथ युद्ध लड़ रहा है। मीकाएल नाम का मतलब है : 'परमेश्वर जैसा कौन है?'। -(यहूदा 9)

बाइबल के अनुसार स्वर्गदूत व्यक्तिगत आत्माएं होती हैं, जो बुद्वि, भावनाएं और स्वेच्छा रखती हैं। भले और बुरे (दुष्टात्मा) दोनों प्रकार के स्वर्गदूत ऐसे होते हैं। बाइबल कहती है : ‘मीकाईल और उसके स्वर्गदूत, अजगर और उसके दूतों से लड़े।’ (प्रकाशित वाक्य 12:​7)

स्वर्गदूत मनुष्यों से बिलकुल अलग स्तर के प्राणी हैं। मनुष्य मरने के बाद स्वर्गदूत नहीं बन जाते हैं। स्वर्गदूत भी कभी मनुष्य नहीं बनेंगे और न कभी मनुष्य थे। परमेश्वर ने ही स्वर्गदूत की सृष्टि की, जैसे कि उसने मानव जाति को बनाया।

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इस्लाम में देवता : इस्लाम में देवता, स्वर्गदूत या एन्जेल को फरिश्ता कहा गया है। हिन्दू धर्म की तरह ही इस्लाम के अनुसार भी अल्लाह तआला (ब्रह्म) ने फरिश्तों को नूर से बनाया है और उनके अलग-अलग कार्य नियुक्ति किए हैं। कोई अल्लाह का संदेश लाने वाला है तो कोई वर्षादि प्राकृतिक कार्यों के संचालन के लिए नियुक्त है। कोई स्वर्ग का दरोगा है तो कोई जहन्नम का कोतवाल।

फरिश्ते एक बड़ी मख्लूक हैं और उनके अनेक कार्य हैं और उनके बहुत सारे गिरोह हैं जिन्हें केवल अल्लाह ही जानता है। उनमें से कुछ अर्श के उठाने वाले हैं : 'अर्श के उठाने वाले और उसके आसपास के फरिश्ते अपने रब की तस्बीह तारीफ के साथ-साथ करते हैं और उस पर ईमान रखते हैं और ईमान वालों के लिए इस्तिगफार करते हैं।' -(सूरतुल मोमिन : 7)

और उन्हीं में से कुछ पैगंबरों पर वह्य लेकर उतरते हैं और वह जिबरील अलैहिस्सलाम हैं, जो मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर कु़रआन लेकर उतरे : 'इसे अमानतदार फरिश्ता (यानी जिबरील अलैहिस्सलाम) लेकर आया है। आपके दिल पर (नाजिल हुआ है) कि आप सावधान (आगाह) कर देने वालों में से हो जाएं।' (सूरतुश्शुअरा :193-194)

उन्हीं में से मीकाईल अलैहिस्सलाम हैं, जो वर्षा बरसाने और खेती उगाने पर नियुक्त (आदिष्ट) हैं। उन्हीं में से एक इस्राफील हैं, जो कियामत कायम होने के समय सूर फूंकने पर नियुक्त हैं।

और उन्हीं में से कुछ सभी अच्छे और बुरे कार्यों के लिखने पर नियुक्त हैं : 'जिस समय दो लेने वाले जो लेते हैं, एक दाईं तरफ और दूसरा बाईं तरफ बैठा हुआ है। (इंसान) मुंह से कोई शब्द निकाल नहीं पाता लेकिन उसके पास रक्षक (पहरेदार) तैयार हैं।' (सूरत काफ : 17-18)

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एक हजार वर्ष पूर्व रूस में था हिन्दू धर्म? : एक हजार वर्ष पहले रूस ने ईसाई धर्म स्वीकार किया। इससे पहले यहां असंगठित रूप से हिन्दू धर्म प्राचलित था। असंगठन और वैदिक धर्म का पतन होने के कारण यहां मनमानी पूजा और पुजारियों का बोलबाला था। यही कारण था कि दसवीं शताब्दी के अन्त में रूस की कियेव रियासत के राजा व्लदीमिर चाहते थे कि उनकी रियासत के लोग तरह तरह के देवी-देवताओं को मानना छोड़कर किसी एक ही ईश्वर की पूजा करें।

प्राचीन काल के रूस में लोग जिन शक्तियों की पूजा करते थे, उन्हें तथाकथित विद्वान लोग अब प्रकृति-पूजा कहकर पुकारते हैं। प्रकृति-पूजकों के लिए तो सूरज भी ईश्वर था और वायु भी ईश्वर थी और प्रकृति में होने वाला हर परिवर्तन, प्रकृति की हर ताकत को वे ईश्वर की हरकत ही समझते थे।

वे अग्नि, सूर्य, पर्वत, वायु या पवित्र पेड़ों की पूजा किया करते थे जैसा कि आज भारत में हिन्दू करता है। हालांकि वे प्रकृति को सम्मान देने के अलावा यह भी मानते थे कि कोई एक ईश्‍वर है जिसके कारण संपूर्ण संसार संचालित हो रहा है।

सबसे प्रमुख देवता थे- विद्युत देवता या बिजली देवता। आसमान में चमकने वाले इस वज्र-देवता का नाम पेरून था। कोई भी सन्धि या समझौता करते हुए इन पेरून देवता की ही कसमें खाई जाती थीं और उन्हीं की पूजा मुख्य पूजा मानी जाती थी। विद्वानों का कहना है कि प्राचीनकाल में रूसियों द्वारा की जाने वाली प्रकृति की यह पूजा बहुत कुछ हिन्दू धर्म के रीति-रिवाजों और रस्मों से मिलती-जुलती थी।

प्राचीनकाल में रूस के दो और देवताओं के नाम थे- रोग और स्वारोग। सूर्य देवता के उस समय के जो नाम हमें मालूम हैं, वे हैं- होर्स, यारीला और दाझबोग।

सूर्य के अलावा प्राचीन कालीन रूस में कुछ मशहूर देवियां भी थीं, जिनके नाम हैं- बिरिगिन्या, दीवा, जीवा, लादा, मकोश और मरेना। प्राचीनकालीन रूस की यह मरेना नाम की देवी जाड़ों की देवी थी और उसे मौत की देवी भी माना जाता था। हिन्दी का शब्द मरना कहीं इसी मरेना देवी के नाम से तो पैदा नहीं हुआ। हो सकता है न? इसी तरह रूस का यह जीवा देवता कहीं हिन्दी का ‘जीव’ ही तो नहीं? ‘जीव’ यानी हर जीवन्त आत्मा। रूस में यह जीवन की देवी थी।

रूस में आज भी पुरातत्त्ववेताओं को कभी-कभी खुदाई करते हुए प्राचीन रूसी देवी-देवताओं की लकड़ी या पत्थर की बनी मूर्त्तियाँ मिल जाती हैं। कुछ मूर्त्तियों में दुर्गा की तरह अनेक सिर और कई-कई हाथ बने होते हैं। रूस के प्राचीन देवताओं और हिन्दू देवी-देवताओं के बीच बहुत ज़्यादा समानता है। यह हो सकता है कि रूस में भी पहले लोग हिन्दू ही होंगे। लेकिन बाद में वे ईसाई और मुसलमान हो गए। लेकिन रूस के प्राचीन धर्म के बहुत से निशान अभी भी रूसी संस्कृति में बाकी रह गए हैं। रूस के विद्वान अक्सर इस बारे में लिखते हैं और इस ओर इशारा करते हैं कि रूस का पुराना धर्म और हिन्दू धर्म करीब-करीब एक जैसे हैं।

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त्रिदेव : जिस तरह ईसाई धर्म और इस्लाम में 3 फरिश्ते महत्वपूर्ण हैं- मीकाईल, जिबराइल और इस्राफील उसी तरह हिन्दू धर्म में सर्वप्रथम त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश महत्वपूर्ण हैं। उक्त त्रिदेव के जनक हैं सदाशिव और दुर्गा। उक्त त्रिदेव की पत्नियां हैं- सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती। पार्वती अपने पूर्व जन्म में सती थीं। उल्लेखनीय है कि राम, कृष्ण और बुद्ध आदि को देवता नहीं, भगवान विष्णु का अवतार कहा गया है।

प्रारंभिक काल में धरती पर आया-जाया करते थे देवी और देवता। उनका मनुष्यों से गहरा संपर्क था। वे मनुष्यों की इच्छा के अनुसार उनकी स्‍त्रियों से संपर्क पर उनको पुत्र लाभ देते थे। देवताओं से उत्पन्न पुत्रों को भी देवता ही माना जाता था, जैसे पवनपुत्र हनुमान और भीम। देवताओं से उत्पन्न पुत्रों में अपार शक्तियां होती थीं। वैसे प्रारंभिक काल में मुख्यत: 33 ही देवता थे। सभी देवताओं के अलग-अलग कार्य नियुक्त किए गए थे जिनके नाम नीचे दिए जा रहे हैं। ब्रह्मा के पौत्र कश्यप से ही देवता और दैत्यों के कुल का निर्माण हुआ। ऋषि कश्यप ब्रह्माजी के मानस-पुत्र मरीची के विद्वान पुत्र थे। इनकी माता 'कला' कर्दम ऋषि की पुत्री और कपिल देव की बहन थीं।

ऋषि कश्यप का कुल

त्रिदेव : ब्रह्मा, विष्णु और महेश।
त्रिदेवी : सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती।

पार्वती ही पिछले जन्म में सती थीं। सती के ही 10 रूप 10 महाविद्या के नाम से विख्यात हुए और उन्हीं को 9 दुर्गा कहा गया है। आदिशक्ति मां दुर्गा और पार्वती अलग-अलग हैं। दुर्गा सर्वोच्च शक्ति हैं।

ये 33 देवता हैं- 12 आदित्य, 8 वसु, 11 रुद्र और इन्द्र व प्रजापति को मिलाकर कुल 33 देवता होते हैं। कुछ विद्वान इन्द्र और प्रजापति की जगह 2 अश्विनी कुमारों को रखते हैं। प्रजापति ही ब्रह्मा हैं।

12 आदित्य : 1. अंशुमान, 2. अर्यमन, 3. इन्द्र, 4. त्वष्टा, 5. धातु, 6. पर्जन्य, 7. पूषा, 8. भग, 9. मित्र, 10. वरुण, 11. विवस्वान और 12. विष्णु।

8 वसु : 1. आप, 2. ध्रुव, 3. सोम, 4. धर, 5. अनिल, 6. अनल, 7. प्रत्युष और 8. प्रभाष।

11 रुद्र : 1. शम्भू, 2. पिनाकी, 3. गिरीश, 4. स्थाणु, 5. भर्ग, 6. भव, 7. सदाशिव, 8. शिव, 9. हर, 10. शर्व और 11. कपाली।

अन्य पुराणों में इनके नाम अलग है- मनु, मन्यु, शिव, महत, ऋतुध्वज, महिनस, उम्रतेरस, काल, वामदेव, भव और धृत-ध्वज ये 11 रुद्र देव हैं। इनके पुराणों में अलग-अलग नाम मिलते हैं।

2 अश्विनी कुमार : 1. नासत्य और 2. दस्त्र। अश्विनीकुमार त्वष्टा की पुत्री प्रभा नाम की स्त्री से उत्पन्न सूर्य के 2 पुत्र हैं। ये आयुर्वेद के आदि आचार्य माने जाते हैं।

अन्य देवी और देवता : इसके अलावा 49 मरुदगण, अर्यमा, नाग, हनुमान, भैरव, भैरवी, गणेश, कार्तिकेय, पवन, अग्निदेव, कामदेव, चंद्र, विश्‍वदेव, चित्रगुप्त, यम, यमी, शनि, प्रजापति, सोम, त्वष्टा, ऋभुः, द्यौः, पृथ्वी, सूर्य, बृहस्पति, वाक, काल, अन्न, वनस्पति, पर्वत, पर्जन्य, धेनु, पूषा, आपः सविता, उषा, औषधि, अरण्य, ऋतु त्वष्टा, सावित्री, गायत्री, श्री, भूदेवी, श्रद्धा, शचि, दिति, अदिति, सनकादि, गरूड़, अनंत (शेष), वासुकी, तक्षक, कार्कोटक, पिंगला आदि।

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ब्रह्मा : ब्रह्मा को जन्म देने वाला कहा गया है।
विष्णु : विष्णु को पालन करने वाला कहा गया है।
महेश : महेश को संसार से ले जाने वाला कहा गया है।
इंद्र : बारिश और जंगलों को संचालित करते हैं।
अर्यमा : देव छोड़ चुकी आत्माओं के अधिपति।
यम : देह छोड़ चुकी आत्माओं को दंड या न्याय देने वाले।
अपांनपात : धर्म की आलोचना करने वालों को दंड देने वाले।

10 दिशा के 10 दिग्पाल : ऊर्ध्व के ब्रह्मा, ईशान के शिव व ईश, पूर्व के इंद्र, आग्नेय के अग्नि या वह्रि, दक्षिण के यम, नैऋत्य के नऋति, पश्चिम के वरुण, वायव्य के वायु और मारुत, उत्तर के कुबेर और अधो के अनंत। उक्त सभी दिशाओं के दिशाशूल, वास्तु की जानकारी के साथ जानिए धन, समृद्धि और शांति बढ़ाने के उपाय।

1. स्व: (स्वर्ग) लोक के देवता- सूर्य, वरुण, मित्र
2. भूव: (अंतरिक्ष) लोक के देवता- पर्जन्य, वायु, इंद्र और मरुत
3. भू: (धरती) लोक- पृथ्वी, उषा, अग्नि और सोम आदि।

1. आकाश के देवता अर्थात स्व: (स्वर्ग)- सूर्य, वरुण, मित्र, पूषन, विष्णु, उषा, अपांनपात, सविता, त्रिप, विंवस्वत, आदित्यगण, अश्विनद्वय आदि।

2. अंतरिक्ष के देवता अर्थात भूव: (अंतरिक्ष)- पर्जन्य, वायु, इंद्र, मरुत, रुद्र, मातरिश्वन्, त्रिप्रआप्त्य, अज एकपाद, आप, अहितर्बुध्न्य।

3. पृथ्वी के देवता अर्थात भू: (धरती)- पृथ्वी, ऊषा, अग्नि, सोम, बृहस्पति, नद‍ियां आदि।

4. पाताल लोक के देवता- उक्त 3 लोक के अलावा पितृलोक और पाताल के भी देवता नियुक्त हैं। पितृलोक के श्रेष्ठ पितरों को न्यायदात्री समिति का सदस्य माना जाता है। पितरों के देवता अर्यमा हैं। पाताल के देवाता शेष और वासुकि हैं।

5. पितृलोक के देवता- दिव्य पितर की जमात के सदस्यगण : अग्रिष्वात्त, बर्हिषद आज्यप, सोमेप, रश्मिप, उपदूत, आयन्तुन, श्राद्धभुक व नान्दीमुख ये 9 दिव्य पितर बताए गए हैं। आदित्य, वसु, रुद्र तथा दोनों अश्विनी कुमार भी केवल नांदीमुख पितरों को छोड़कर शेष सभी को तृप्त करते हैं। पुराण के अनुसार दिव्य पितरों के अधिपति अर्यमा का उत्तरा-फाल्गुनी नक्षत्र निवास लोक है।

नक्षत्र के अधिपति : चैत्र मास में धाता, वैशाख में अर्यमा, ज्येष्ठ में- मित्र, आषाढ़ में वरुण, श्रावण में- इंद्र, भाद्रपद में- विवस्वान, आश्विन में पूषा, कार्तिक-पर्जन्य, मार्गशीर्ष में- अंशु, पौष में- भग, माघ में- त्वष्टा एवं फाल्गुन में विष्णु। इन नामों का स्मरण करते हुए सूर्य को अर्घ्य देने का विधान है।

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