भारत के 11 सबसे पवित्र पर्वत, जानिए उनका रहस्य...

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
वैसे तो भारत में सबसे ऊंची चोटियों की बात करें तो कंचनजंघा, सारेर कांगड़ी, घेंट कांगड़ी और अबी गमीन के नाम लिए जा सकते हैं। कैलाश पर्वत का नाम हम इसलिए नहीं लेते, क्योंकि वह भारत में नहीं है।
हिमालय, अरावली, विंध्य, सह्माद्रि, मलयगिरि, नीलगिरि, महेंद्राचल, शुक्तिमान, ऋक्ष, चित्रकूट आदि ये सभी पर्वत नहीं हैं, पर्वतमालाएं हैं जिनमें कई पवित्र या ऊंचे पर्वत विद्यमान हैं।
 
हम यहां न तो सबसे ऊंचे पर्वतों की बात कर रहे हैं और न ही पर्वतमालाओं की। हम बात कर रहे हैं धार्मिक दृष्टि से सबसे पवित्र कहे जाने वाले पर्वतों की। तो आओ जानते हैं 11 सबसे पवित्र पर्वतों के बारे में संक्षिप्त जानकारी।
 
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1. कैलाश पर्वत : यह पर्वत हिन्दुओं के लिए सबसे पवित्र पर्वत माना गया है। यहां साक्षात शिव विराजमान हैं। इसी पर्वत के पास मानसरोवर स्थित है। कैलाश पर्वत समुद्र सतह से 22,068 फुट ऊंचा है तथा हिमालय से उत्तरी क्षेत्र में तिब्बत में स्थित है। चूंकि तिब्बत चीन के अधीन है अतः कैलाश चीन में आता है।
मानसरोवर झील से घिरा होना कैलाश पर्वत की धार्मिक महत्ता को और अधिक बढ़ाता है। प्राचीनकाल से ही विभिन्न धर्मों के लिए इस स्थान का विशेष महत्व है। इस स्थान से जुड़े विभिन्न मत और लोककथाएं केवल एक ही सत्य को प्रदर्शित करती हैं, जो यह है कि ईश्वर ही सत्य है और सत्य ही शिव है।
 
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2. नंदादेवी पर्वत : मां नंदादेवी के नाम से जाने जाना वाला यह पर्वत भारत का दूसरा और विश्‍व का 23वां सबसे ऊंचा पर्वत है। इससे ऊंचा पर्वत भारत में कंचनजंघा  का पर्वत है, जो 8,586 मीटर में फैला और 8,450 फीट ऊंचा है। नंदादेवी का पर्वत भारत और नेपाल की सीमा क्षेत्र में फैला है। जब पश्चिमी सर्वेयर ने 1808 इसे खोजा तो यह धौलागिरि के नाम से दुनिया में जाना जाता था। यह पर्वत 7,824 मीटर (25,663 फीट) की ऊंचाई पर लंबा खड़ा है। 
 
नंदादेवी पर्वत भारत के उत्तराखंड राज्य के अंतर्गत गढ़वाल जिले में स्थित है। यह पर्वत हिमालय के दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र का प्रसिद्ध पर्वत शिखर है जिसकी चमोली से दूरी 32 मील पूर्व है। भगवान शंकर की पत्नी नंदा इसी पर्वत पर निवास करती हैं। यहां माता का भव्य मंदिर बना हुआ है।
 
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3. माउंट आबू : माउंट आबू पर्वत राजस्थान और गुजरात सीमा पर स्थित है। यह नीलगिरि पहाड़ी श्रृंखला की सबसे ऊंची जोटी है, जो राजस्थान के सिरोही जिले में स्थित है। यह समुद्र तल से 1,220 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। माउंट आबू हिन्दू और जैन धर्म का प्रमुख तीर्थस्थल है।
 
माउंट आबू प्राचीनकाल से ही साधु-संतों का निवास स्थान रहा है। जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर भी यहां आए थे। माउंट आबू में ही दुनिया का इकलौता ऐसा मंदिर है, जहां शिवजी के पैर के अंगूठे की पूजा होती है।
 
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4. गोवर्धन पर्वत : उत्तरप्रदेश के मथुरा जिले में स्थित इस पर्वत गोवर्धन के बारे में कहा जाता है कि यह एक शाप के चलते धीरे-धीरे घटता जा रहा है। भगवान कृष्ण के काल में यह बहुत ऊंचा हुआ करता था, लेकिन अब यह घटकर इतना रह गया है कि इस पर आसानी से चढ़ा जा सकता है।
परंपरा के अनुसार गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा लगाने का प्रचलन है। दूर-दूर से भक्तजन गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने आते हैं। यह परिक्रमा लगभग 21 किलोमीटर की है। परिक्रमा जहां से शुरू होती है वहीं एक प्रसिद्ध मंदिर भी है जिसे दानघाटी मंदिर कहा जाता है। परिक्रमा मार्ग में कई प्राच‍ीन और धार्मिक स्थल आते हैं जिसमें से एक वह स्थान भी है, जहां से भगवान कृष्‍ण ने इस पर्वत को उठा लिया था।
 
दरअसल, यह पर्वत भगवान श्रीकृष्ण की लीलास्थली है। भगवान श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में ब्रजवासियों को इन्द्र के प्रकोप से बचाने के लिए इसी गोवर्धन पर्वत को अपनी तर्जनी अंगुली पर उठा लिया था। गोवर्धन पर्वत को 'गिरिराज पर्वत' भी कहते हैं। 
 
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5. गिरनार पर्वत : गुजरात में जूनागढ़ के निकट गिरनार पर्वत है। एशियाई सिंहों के लिए विख्यात 'गिर वन राष्ट्रीय उद्यान' इसी पर्वत के जंगल क्षेत्र में स्थित है। गिरनार का प्राचीन नाम 'गिरिनगर' था।
 
गिरनार मुख्यत: जैन मतावलं‍बियों का पवित्र तीर्थ स्थान है। यहां मल्लिनाथ और नेमिनाथ के मंदिर बने हुए हैं। यहीं पर सम्राट अशोक का एक स्तंभ भी है। महाभारत में अनुसार रेवतक पर्वत की क्रोड़ में बसा हुआ प्राचीन तीर्थ स्थल है।
 
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6. गब्बर पर्वत : भारतीय राज्य गुजरात के बनासकांठा जिले में एक छोटा-सा पहाड़ है जिसे गब्बर पर्वत कहा जाता है, जो प्रसिद्ध तीर्थ अम्बाजी से 5 किलोमीटर दूर है। यहीं से अरासुर पर्वत पर पवित्र वैदिक नदी सरस्वती का उद्गम भी होता है।
 
यह स्थान यह प्राचीन पौराणिक 51 शक्तिपीठों में से एक गिना जाता है। पुराणों के अनुसार यहां सती का हृदय भाग गिरा था। इसका वर्णन तंत्र चूड़ामणि में भी मिलता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए पहाड़ी पर 999 सीढिय़ां चढ़नी पड़ती हैं।
 
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7. चामुंडा पहाड़ी : मैसूर से लगभग 13 किमी दक्षिण में चामुंडा पहाड़ी स्थित है। इस पहाड़ी की चोटी पर चामुंडेश्वरी मंदिर है, जो देवी दुर्गा को समर्पित है। यह मंदिर देवी दुर्गा की राक्षस महिषासुर पर विजय का प्रतीक है। मंदिर मुख्य गर्भगृह में स्थापित देवी की प्रतिमा शुद्ध सोने की बनी हुई है। इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में किया गया था।
 
मंदिर की इमारत 8 मंजिला है जिसकी ऊंचाई 40 मी. है। मुख्य मंदिर के पीछे महाबलेश्वर को समर्पित एक छोटा-सा मंदिर भी है, जो 1,000 साल से भी ज्यादा पुराना है। पहाड़ की चोटी से मैसूर का मनोरम दृश्य दिखाई पड़ता है। मंदिर के पास ही महिषासुर की विशाल प्रतिमा रखी हुई है।
 
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8. त्रिकूट पर्वत : भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य के जम्मू के कटरा जिले में स्थित त्रिकूट पर्वत पर पवित्र तीर्थस्थल है, जहां मातारानी वैष्‍णोदेवी विराजमान हैं। माता के साथ यहां हनुमानजी और भैरवनाथजी भी विराजमान हैं। यह हिन्दुओं का सबसे पवित्र स्थल माना गया है।
हसीन वादियों में त्रिकूट पर्वत पर गुफा में विराजित माता वैष्णोदेवी के यहां जो भी एक बार जाता है उसकी मनोकामना पूर्ण होती है। कहते हैं कि माता का बुलावा आने पर ही भक्त किसी न किसी बहाने से उसके दरबार पहुंच जाता है।
 
अगले पन्ने पर नौवां पवित्र पर्वत...
 

9. तिरुमाला पर्वत : यहां पर प्रसिद्ध तिरुपति बालाजी भगवान व्यंकटेश स्वामी का मंदिर है। यह हिन्दुओं के लिए सबसे पवित्र स्थलों में से एक है। यह स्थल दक्षिण भारत के तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई से 130 किलोमीटर दूर स्थित है।
हर साल यहां लाखों की संख्या में लोग तिरुपति बालाजी के दर्शन करने के लिए आते हैं। ऐसा माना जाता है कि यहां भगवान विष्णु ने कुछ समय गुजारा था। इस मंदिर का ज्ञात इतिहास 9वीं सदी से शुरू होता है। कांचीपुरम के पल्लव शासकों ने इस स्‍थल पर अपना आधिपत्य कायम किया था। 11वीं सदी में संत रामानुज यहां आए थे और यहीं उनको भगवान ने दर्शन दिए थे।
 
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10. मनसादेवी पहाड़ी मंदिर : शिवालिक की पहाड़ियों के बीच स्थित मां मनसादेवी का प्रसिद्ध मंदिर है। यह पहाड़ी क्षेत्र उत्तरप्रदेश के हरिद्वार में स्थित है। ऊंची पहाड़ी पर होने की वजह से मंदिर में पहुंचने के लिए रोप-वे का इस्तेमाल होता है।
 
'मनसा' का अर्थ होता है मन की मनोकामना पूर्ण करने वाली देवी। मनसादेवी को भगवान शिव की मानस पुत्री के रूप में पूजा जाता है। इनका प्रादुर्भाव मस्तक से हुआ है इस कारण इनका नाम मनसा पड़ा। इनके पति जगत्कारु तथा पुत्र आस्तिकजी हैं। ये नागराज वासुकि की बहन हैं। ये मूलत: आदिवासियों की देवी हैं। 

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पावागढ़ की पहाड़ी : पुराणों के अनुसार पिता दक्ष के यज्ञ में अपमानित हुई सती ने योगबल द्वारा अपने प्राण त्याग दिए थे। सती की मृत्यु से व्यथित शिवशंकर उनके मृत शरीर को लेकर तांडव करते हुए में भटकते रहे। उस समय मां के अंग जहां-जहां गिरे ववां शक्तिपीठ बन गए। माना जाता है कि पावागढ़ में मां के वक्षस्थल गिरे थे।
पावागढ़ माहाकाली माता का जाग्रत स्थान है। यहां लाखों भक्त माता के दरबार में हाजरी लगाने आते हैं। जिसकी अर्जी स्वीकार कर ली जाती है उसकी मनोकामना किसी चमत्कार की तरह पूर्ण हो जाती है।
 
इस पहाड़ी को गुरु विश्वामित्र से भी जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि गुरु विश्वामित्र ने यहां काली मां की तपस्या की थी। यह भी माना जाता है कि काली मां की मूर्ति को विश्वामित्र ने ही प्रतिष्ठित किया था। यहां बहने वाली नदी का नामाकरण भी उन्हीं के नाम पर ‘विश्वामित्री’ किया गया है।
 
यह मंदिर गुजरात की प्राचीन राजधानी चंपारण के पास स्थित है, जो वडोदरा शहर से लगभग 50 किलोमीटर दूर है। पावागढ़ मंदिर ऊंची पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। काफी ऊंचाई पर बने इस दुर्गम मंदिर की चढ़ाई बेहद कठिन है। अब सरकार ने यहां रोप-वे सुविधा उपलब्ध करवा दी है, जिसके जरिये आप पहाड़ी तक आसानी से पहुंच सकते हैं। यह सुविधा माछी से शुरू होती है। यहां से रोप-वे लेकर श्रद्धालु पावागढ़ पहाड़ी के ऊपरी हिस्से तक पहुंचते हैं। रोप-वे से उतरने के बाद आपको लगभग 250 सीढ़ियां चढ़ना होंगी, तब जाकर आप मंदिर के मुख्य द्वार तक पहुंचेंगे। 
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