अस्तोभं अनवद्यं च सूत्रं सूत्र विदो विदुः॥- वायु पुराण
अर्थात कम अक्षरों वाला, संदेहरहित, सारस्वरूप, निरन्तरता लिये हुए तथा त्रुटिहीन (कथन) को सूत्रविद सूत्र कहते हैं।
वेदांग-युगान्तर में वैदिक अध्ययन के लिए छः विधाओं की शाखाओं का जन्म हुआ जिन्हें ‘वेदांग’ कहते हैं। वेदांग का शाब्दिक अर्थ है वेदों का अंग, तथापि इस साहित्य के पौरूषेय होने के कारण श्रुति साहित्य से पृथक ही गिना जाता है। वे ये हैं- शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरूक्त, छन्दशास्त्र तथा ज्योतिष। वैदिक शाखाओं के अन्तर्गत ही उनका पृथकृ-पृथक वर्ग स्थापित हुआ और इन्हीं वर्गों के पाठ्य ग्रन्थों के रूप में सूत्रों का निर्माण हुआ। हिन्दू जीवन के समस्त कर्म, क्रिया, संस्कृति, अनुष्ठानादि समझाने के एक मात्र अवलंब ये सूत्र ही हैं।
वेदांग सूत्र के रूप में, अर्थात सघन गद्य के रूप में याद किए जाने के लिए है। हालांकि सूत्रों को वैदिक ग्रथों का अंग नहीं माना जाता, पर इनसे वैदिक साहित्य को समझने में सहायता मिलती है। सभी सूत्र ग्रंथों में हमें सिर्फ कल्पसूत्र मिला है जिसके चार वर्ग हैं: 1.श्रौत सूत्र, 2.गृह्म सूत्र एवं 3.धर्म सूत्र।
1.श्रौत सूत्र:- पहला श्रौत्र सूत्र अग्नि, सोम एवं महायज्ञों से संबंध हैं। ऋग्वेद के सांख्यायन और आश्वलायन नाम के श्रौत-सूत्र हैं। सामवेद के मशक, कात्यायन और द्राह्यायन के श्रौतसूत्र हैं। शुक्ल यजुर्वेद का कात्यायन श्रौतसूत्र और कृष्ण यजुर्वेद के आपस्तम्ब, हिरण्यकेशी, बोधायन, भारद्वाज आदि के 6 श्रौतसूत्र हैं। अथर्ववेद का वैतान सूत्र है।
2.गृह्य सूत्र:- दूसरा गृहस्थों द्वारा उत्सवों तथा सामान्य यज्ञों से संबंध हैं। इनमें गृहस्थों के आन्हिक कृत्य एवं संस्कार तथा वैसी ही दूसरी धार्मिक बातें बताई गई है। गृह्य सूत्रों में सांख्यायन, शाम्बव्य तथा आश्वलायन के गृह्य सूत्र ऋग्वेद के हैं। सामवेद के गोभिल और खदिर गृह्य सूत्र हैं। शुक्ल यजुर्वेद का पारस्कर गृह्य सूत्र है और कृष्ण यजुर्वेद के 7 गृह्य सूत्र हैं जो उसके श्रौत सूत्रकारों के ही नाम पर हैं। अथर्ववेद का कौशिक गृह्य सूत्र है।
3.धर्म सूत्र:- यह सूत्र आम जनता के कानूनों रहन-सहन तथा रीति रिवाजों से संबद्ध है। इसके अलावा आश्रम, भोज्याभोज्य, विवाह, दाय एवं अपराध आदि विषयों का वर्णन किया गया है। यह सूत्र मनु स्मृति का आधार है। धर्मसूत्रकारों में आपस्तम्ब, हिरण्यकेशी, बोधायन, गौतम, वशिष्ठ आदि मुख्य हैं।
4.शुल्व सूत्र : श्रौत सूत्र से शुल्व सूत्र संबद्ध हैं, जो भारतीय ज्यामिति का सर्वाधिक प्राचीन ग्रंथ हैं। इसमें वैदिक अग्दिवेदियों तथा यज्ञ क्षेत्र संबंधी निर्माण के माप के निर्देश हैं।
सूत्रग्रंथों की व्याख्या के पांच भेद बताए गए हैं:- वृत्ति, भाष्य, वार्तिक, टीका और टिप्पणी। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को ध्यान में रखते हुए उपरोक्त चार श्रेणियों के अंतर्गत कई ऋषियों ने सूत्र ग्रंथ लिखे हैं।