क्या देवी-देवता किसी की मन्नत पूरी कर सकते हैं?

Webdunia
ऊर्दू शब्द मन्नत या मुराद को अंग्रेजी में विश और हिन्दी में मनोरथ एवं कामना कहते हैं। मनोरथ, इच्छा, कामना मांगने का प्राचलन भारत में प्राचीन काल से ही रहा है। मन्नत मांगना जीवन को बेहतर बनाने की एक प्रक्रिया है। मन्नत के महत्व को समझना जरूरी है। मन्नत उसी की पूरी होती है जो ईश्वर, देवी या देवताओं के प्रति खुद को जिन्मेदार मानता है। वह यह मानता है कि ये सभी मेरे अच्छे या बुरे कर्मों को देख रहे हैं।
गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं:-
तेषामहं समुद्धर्ता मृत्युसंसारसागरात्‌ ।
भवामि नचिरात्पार्थ मय्यावेशितचेतसाम्‌ ॥
भावार्थ : हे अर्जुन! उन मुझमें चित्त लगाने वाले प्रेमी भक्तों का मैं शीघ्र ही मृत्यु रूप संसार-समुद्र से उद्धार करने वाला होता हूँ॥7॥
 
उत्तर : शास्त्रों में कर्मयोग, ज्ञानयोग के अलावा भक्तियोग का भी महत्व है। हमारे देश में मन्नतें मांगने और उनके पूरा होने के लिए जितने प्रयास और कयास लगाए जाते हैं, उतना किसी और देश में शायद ही कहीं होता होगा। तभी तो मंदिरों के साथ ही समाधि और दर्गाओं पर भी लोग माथा टेकने जाते हैं। अब सवाल उठता है कि क्या उनकी मन्नत पूरी होती है और क्या देवी-देवता किसी की मन्नत पूरी कर सकते हैं? इसका जवाब है कि निश्चित ही देवी और देवता लोगों की मन्नत पूरी करते हैं।
 
जो लोग यह कहते हैं कि देवी-देवता किसी को कुछ नहीं देते। जो कुछ मिलता है, वह अपने पुण्य से ही मिलता है वे कर्म और पुण्य के सिद्धांत के अलावा कुछ नहीं जानते। यह कहना की कोई भी शक्ति केवल निमित्त बन जाती है, कुछ हद तक सही हो सकता है, लेकिन यह कहना कि किसी को मुफ्त में ही श्रेय मिल जाता है यह गलत होगा।
 
निश्चित ही व्यक्ति का पुण्य और पुरुषार्थ बलवान है, लेकिन ईश्‍वर या उसके मन में अपने ईष्ट के प्रति की जा रही भक्ति भी बलवान होती है। इतिहास में ऐसे भी उदाहण मिल जाएंगे कि घोर संकट में उसके पुण्य काम नहीं आए लेकिन उसकी भक्ति काम आ गई। ईश्वर, देवी या देवता सबसे उपर हैं जो किसी भी नियम के विरूद्ध जाकर अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। हां यह सत्य है कि देवी या देवता किसी पापी की मदद नहीं करते, लेकिन कहीं-कहीं यह अपवाद स्वरूप भी देखा जा सकता है।
 
वैज्ञानिकों अनुसार मन्नत पूरी होने का एक विज्ञान भी है। दरअसल, आकर्षण के नियम अनुसार हम जीस चीज को चाहते हैं उसे अपनी ओर आकर्षित करते हैं। यदि आपकी चाहत कमजोर या उसके प्रति आपमें विश्वास नहीं है तो वह कभी नहीं मिलेगी। आपकी सोच पर भी यह निर्भर तरका है।

आकर्षण का नियम : नहीं मांगोगे तो नहीं मिलेगा। बच्चा भी जब रोता है तभी उसे दूध मिलता है। भगवान बुद्ध कहते हैं कि आज आप जो भी हैं, वह आपके पिछले विचारों का परिणाम है। विचार ही वस्तु बन जाते हैं। इसका सीधा-सा मतलब यह है कि हम जैसा सोचते हैं, वैसे ही भविष्य का निर्माण करते हैं। इसे आज का विज्ञान 'आकर्षण का नियम' कहता है।  संसार को हम पांचों इंद्रियों से ही जानते हैं और कोई दूसरा रास्ता नहीं। जो भी ग्रहण किया गया है, उसका मन और मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ता है।

उस प्रभाव से ही 'चित्त' निर्मित होता है और निरंतर परिवर्तित होने वाला होता है।   इस चित्त को समझने से ही आपके जीवन का खेल आपको समझ में आने लगेगा। अधिकतर लोग अब इसे समझकर अच्‍छे स्थान, माहौल और लोगों के बीच रहने लगे हैं। वे अपनी सोच को बदलने के लिए ध्यान या पॉजिटिव मोटिवेशन की क्लासेस भी जाने लगे हैं। मंदिर जाने से हमें एक सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। हमें विश्वास जागता है।
 
देवी-देवता की भक्ति का नियम : हम जिस दृश्यमान जगत को देख रहे हैं उससे कई गुना बड़ा है सूक्ष्म या अदृश्य जगत। सूक्ष्म जगत में करोड़ों आत्माएं विचरण कर रही है। उनमें से कुछ अच्छी है और कुछ बुरी। दोनों से भिन्न देवी और देवता होते हैं। देवी या देवता उस मनुष्य पर ही ध्यान दे पाते हैं जो उनके संपर्क में किसी न किसी माध्यम से रहता है। भक्ति, पूजा, प्रार्थना, ध्यान या अन्य किसी माध्यम से जो भी व्यक्ति देवी या देवताओं से मदद मांगता है तो निश्चित ही उसे वहां से मदद मिलती है।

वे लोग जो अविश्वास से भरे हैं उन्हें यह कभी अहसास नहीं होता है कि कोई ऐसी भी शक्ति है जो मदद कर सकती है। वह लोग जो शराब पीते हैं, प्रतिदिन क्रोध में ही रहते हैं, दिन भर गाली-गलोच करते रहते हैं या हर वक्त किसी न किसी के बारे में कटु वचन ही कहते रहते हैं, ऐसे लोगों की देवता कभी मदद नहीं करते हैं।
 
अंत में गीता के नवम अध्याय के कुछ श्लोक पढ़ें...
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते ।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्‌ ॥
'क्षेम' है) मैं स्वयं प्राप्त कर देता हूँ॥22॥
येऽप्यन्यदेवता भक्ता यजन्ते श्रद्धयान्विताः ।
तेऽपि मामेव कौन्तेय यजन्त्यविधिपूर्वकम्‌ ॥
अविधिपूर्वक अर्थात्‌ अज्ञानपूर्वक है॥23॥
अहं हि सर्वयज्ञानां भोक्ता च प्रभुरेव च ।
न तु मामभिजानन्ति तत्त्वेनातश्च्यवन्ति ते ॥
यान्ति देवव्रता देवान्पितृन्यान्ति पितृव्रताः ।
भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम्‌ ॥
भावार्थ : जो अनन्यप्रेमी भक्तजन मुझ परमेश्वर को निरंतर चिंतन करते हुए निष्कामभाव से भजते हैं, उन नित्य-निरंतर मेरा चिंतन करने वाले पुरुषों का योगक्षेम (भगवत्‌स्वरूप की प्राप्ति का नाम 'योग' है और भगवत्‌प्राप्ति के निमित्त किए हुए साधन की रक्षा का नाम का नाम 'क्षेम' है) मैं स्वयं प्राप्त कर देता हूँ।।...हे अर्जुन! यद्यपि श्रद्धा से युक्त जो सकाम भक्त दूसरे देवताओं को पूजते हैं, वे भी मुझको ही पूजते हैं, किंतु उनका वह पूजन भावार्थ : क्योंकि संपूर्ण यज्ञों का भोक्ता और स्वामी भी मैं ही हूँ, परंतु वे मुझ परमेश्वर को तत्त्व से नहीं जानते, इसी से गिरते हैं अर्थात्‌ पुनर्जन्म को प्राप्त होते हैं।।
 
देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं, भूतों को पूजने वाले भूतों को प्राप्त होते हैं और मेरा पूजन करने वाले भक्त मुझको ही प्राप्त होते हैं। इसीलिए मेरे भक्तों का पुनर्जन्म नहीं होता (गीता अध्याय 8 श्लोक 16 में देखना चाहिए)॥

संकलन : अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Tula Rashi Varshik rashifal 2025 in hindi: तुला राशि 2025 राशिफल: कैसा रहेगा नया साल, जानिए भविष्‍यफल और अचूक उपाय

Job and business Horoscope 2025: वर्ष 2025 में 12 राशियों के लिए करियर और पेशा का वार्षिक राशिफल

मार्गशीर्ष माह की अमावस्या का महत्व, इस दिन क्या करें और क्या नहीं करना चाहिए?

क्या आप नहीं कर पाते अपने गुस्से पर काबू, ये रत्न धारण करने से मिलेगा चिंता और तनाव से छुटकारा

Solar eclipse 2025:वर्ष 2025 में कब लगेगा सूर्य ग्रहण, जानिए कहां नजर आएगा और कहां नहीं

सभी देखें

धर्म संसार

27 नवंबर 2024 : आपका जन्मदिन

27 नवंबर 2024, बुधवार के शुभ मुहूर्त

Family Life rashifal 2025: वर्ष 2025 में 12 राशियों की गृहस्थी का हाल, जानिए उपाय के साथ

Health rashifal 2025: वर्ष 2025 में 12 राशियों की सेहत का हाल, जानिए उपाय के साथ

मार्गशीर्ष माह के हिंदू व्रत और त्योहारों की लिस्ट

अगला लेख