शिवलिंग के 10 रहस्य, जानकर शर्तिया चौंक जाएंगे आप

अनिरुद्ध जोशी
शिवलिंग का शास्त्रों में अर्थ बताया गया है परम कल्याणकारी शुभ सृजन ज्योति। संपूर्ण ब्रह्मांड और हमारा शरीर इसी प्रकार है। भृकुटी के बीच स्थित हमारी आत्मा या कहें कि हम स्वयं भी इसी तरह हैं... बिंदु रूप। शिवलिंग का गलत अर्थ बताने वाले या तो अज्ञानी हैं या फिर वे जान-बूझकर ऐसा कर रहे हैं। खैर, आओ जानते हैं शिवलिंग के 10 अद्भुत रहस्य।
 
 
1.ब्रह्मांड का प्रतीक : संपूर्ण ब्रह्मांड उसी तरह है जिस तरह कि शिवलिंग का रूप है जिसमें जलाधारी और ऊपर से गिरता पानी है। शिवलिंग का आकार-प्रकार ब्रह्मांड में घूम रही हमारी आकाशगंगा और उन पिंडों की तरह है, जहां जीवन होने की संभावना है। वातावरण सहित घूमती धरती या सारे अनंत ब्रह्माण्ड (ब्रह्माण्ड गतिमान है) का अक्स/धुरी ही शिवलिंग है।
 
 
वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे सृष्टि प्रकट होती है उसे शिवलिंग कहते हैं। इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही शिवलिंग की प्रतीक है। वस्तुत: यह संपूर्ण सृष्टि बिंदु-नाद स्वरूप है। बिंदु शक्ति है और नाद शिव। यही सबका आधार है। बिंदु एवं नाद अर्थात ऊर्जा और ध्वनि। यही दो संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार है।
 
 
2.शिव का आदि और अनादी रूप : ईश्वर निराकार है। शिवलिंग उसी का प्रतीक है। यहां यह स्पष्ट करना जरूरी है कि भगवान शंकर या महादेव भी शिवलिंग का ही ध्यान करते हैं। शून्य, आकाश, अनंत, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे 'शिवलिंग' कहा गया है। स्कंद पुराण में कहा गया है कि आकाश स्वयंलिंग है। धरती उसकी पीठ या आधार है और सब अनंत शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे शिवलिंग कहा गया है। शिव पुराण में शिव को संसार की उत्पत्ति का कारण और परब्रह्म कहा गया है। इस पुराण के अनुसार भगवान शिव ही पूर्ण पुरुष और निराकार ब्रह्म हैं।
 
 
3.निराकार ज्योति का प्रतीक : पुराणों में शिवलिंग को कई अन्य नामों से भी संबोधित किया गया है, जैसे प्रकाश स्तंभलिंग, अग्नि स्तंभलिंग, ऊर्जा स्तंभलिंग, ब्रह्माण्डीय स्तंभलिंग आदि। ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति के संबंध में पुराणों में अनेक मान्यताएं प्रचलित हैं। वेदानुसार ज्योतिर्लिंग यानी 'व्यापक ब्रह्मात्मलिंग' जिसका अर्थ है 'व्यापक प्रकाश'। जो शिवलिंग के 12 खंड हैं। शिव पुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है।
 
 
4.कब से प्रारंभ हुई शिवलिंग की पूजा : भगवान शिव ने ब्रह्मा और विष्णु के बीच श्रेष्ठता को लेकर हुए विवाद को सुलझाने के लिए एक दिव्य लिंग (ज्योति) को प्रकट किया था। इस ज्योतिर्लिंग का आदि और अंत ढूंढते हुए ब्रह्मा और विष्णु को शिव के परब्रह्म स्वरूप का ज्ञान हुआ। इसी समय से शिव को परब्रह्म मानते हुए उनके प्रतीक रूप में ज्योतिर्लिंग की पूजा आरंभ हुई। हिन्दू धर्म में मूर्ति की पूजा नहीं होती, लेकिन शिवलिंग और शालिग्राम को भगवान शंकर और विष्णु का विग्रह रूप मानकर इसी की पूजा की जानी चाहिए।
 
 
5.आसमानी पत्थर : ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार विक्रम संवत् के कुछ सहस्राब्‍दी पूर्व संपूर्ण धरती पर उल्कापात का अधिक प्रकोप हुआ। आदिमानव को यह रुद्र (शिव) का आविर्भाव दिखा। जहां-जहां ये पिंड गिरे, वहां-वहां इन पवित्र पिंडों की सुरक्षा के लिए मंदिर बना दिए गए। इस तरह धरती पर हजारों शिव मंदिरों का निर्माण हो गया। उनमें से प्रमुख थे 108 ज्योतिर्लिंग, लेकिन अब केवल 12 ही बचे हैं। शिव पुराण के अनुसार उस समय आकाश से ज्‍योति पिंड पृथ्‍वी पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। इस तरह के अनेक उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे।
 
6.प्राचीन सभ्यता में शिवलिंग : पुरातात्विक निष्कर्षों के अनुसार प्राचीन शहर मेसोपोटेमिया और बेबीलोन में भी शिवलिंग की पूजा किए जाने के सबूत मिले हैं। इसके अलावा मोहन-जो-दड़ो और हड़प्पा की विकसित संस्कृति में भी शिवलिंग की पूजा किए जाने के पुरातात्विक अवशेष मिले हैं। सभ्यता के आरंभ में लोगों का जीवन पशुओं और प्रकृति पर निर्भर था इसलिए वह पशुओं के संरक्षक देवता के रूप में भी पशुपति की पूजा करते थे। सैंधव सभ्यता से प्राप्त एक सील पर 3 मुंह वाले एक पुरुष को दिखाया गया है जिसके आस-पास कई पशु हैं। इसे भगवान शिव का पशुपति रूप माना जाता है।
 
 
7.औषधि और सोने का रहस्य : शिवलिंग में एक पत्थर की आकृति होती है। जलाधारी पीतल की होती है और नाग या सर्प तांबे का होता है। शिवलिंग पर बेलपत्र और धतूरे या आंकड़े के फूल चढ़ते हैं। शिवलिंग पर जल गिरता रहता है। कहते हैं कि ऋषि-मुनियों ने प्रतीक रूप से या प्राचीन विद्या को बचाने के लिए शिवलिंग की रचना इस तरह की है कि कोई उसके गूढ़ रहस्य को समझकर उसका लाभ उठा सकता है, जैसे शिवलिंग अर्थात पारा, जलाधारी अर्थात पीतल की धातु, नाग अर्थात तांबे की धातु आदि को बेलपत्र, धतूरे और आंकड़े के साथ मिलाकर कुछ भी औ‍षधि, चांदी या सोना बनाया जा सकता है।
 
8.शिवलिंग का विन्यास : शिवलिंग के 3 हिस्से होते हैं। पहला हिस्सा जो नीचे चारों ओर भूमिगत रहता है। मध्य भाग में आठों ओर एक समान पीतल बैठक बनी होती है। अंत में इसका शीर्ष भाग, जो कि अंडाकार होता है जिसकी कि पूजा की जाती है। इस शिवलिंग की ऊंचाई संपूर्ण मंडल या परिधि की एक तिहाई होती है।
 
ये 3 भाग ब्रह्मा (नीचे), विष्णु (मध्य) और शिव (शीर्ष) के प्रतीक हैं। शीर्ष पर जल डाला जाता है, जो नीचे बैठक से बहते हुए बनाए गए एक मार्ग से निकल जाता है। प्राचीन ऋषि और मुनियों द्वारा ब्रह्मांड के वैज्ञानिक रहस्य को समझकर इस सत्य को प्रकट करने के लिए विविध रूपों में इसका स्पष्टीकरण दिया गया है।
 
9.शिवलिंग के प्रकार : प्रमुख रूप से शिवलिंग 2 प्रकार के होते हैं- पहला आकाशीय या उल्का शिवलिंग और दूसरा पारद शिवलिंग। पहला उल्कापिंड की तरह काला अंडाकार लिए हुए। ऐसे शिवलिंग को ही भारत में ज्योतिर्लिंग कहते हैं। दूसरा मानव द्वारा निर्मित पारे से बना शिवलिंग होता है। पारद विज्ञान प्राचीन वैदिक विज्ञान है। इसके अलावा पुराणों के अनुसार शिवलिंग के प्रमुख 6 प्रकार होते हैं- देवलिंग, असुरलिंग, अर्शलिंग, पुराणलिंग, मनुष्यलिंग और स्वयंभू लिंग।
 
10.देश के प्रमुख शिवलिंग : सोमनाथ (गुजरात), मल्लिकार्जुन (आंध्रप्रदेश), महाकाल (मध्यप्रदेश), ममलेश्वर (मध्यप्रदेश), बैद्यनाथ (झारखंड), भीमाशंकर (महाराष्ट्र), केदारनाथ (उत्तराखंड), विश्वनाथ (उत्तरप्रदेश), त्र्यम्बकेश्वर (महाराष्ट्र), नागेश्वर (गुजरात), रामेश्वरम् (तमिलनाडु), घृश्णेश्वर (महाराष्ट्र), अमरनाथ (जम्मू-कश्मीर), पशुपतिनाथ (नेपाल), कालेश्वर (तेलंगाना), श्रीकालाहस्ती (आंध्रप्रदेश), एकम्बरेश्वर (तमिलनाडु), अरुणाचल (तमिलनाडु), तिलई नटराज मंदिर (तमिलनाडु), लिंगराज (ओडिशा), मुरुदेश्वर शिव मंदिर (कर्नाटक), शोर मंदिर, महाबलीपुरम् (तमिलनाडु), कैलाश मंदिर एलोरा (महाराष्ट्र), कुम्भेश्वर मंदिर (तमिलनाडु), बादामी मंदिर (कर्नाटक) आदि सैकड़ों प्राचीन और चमत्कारिक मंदिर हैं।

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