अनुभूति के चार स्तर

जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति और तुरीय

अनिरुद्ध जोशी
वेद और वेदांत के अनुसार आत्मा के होश के कुछ स्तर और उप स्तर बताए गए हैं। पंचकोश या पंचतत्व से बंधी हुई आत्मा स्वयं को मूलत: त्रिस्तरों में पाती है। यहां वेद के इस गहन गंभीर ज्ञान को सरल भाषा में प्रस्तुत करना का प्रयास किया गया है।
 
छांदोग्य उपनिषद (8-7) के अनुसार आत्मा चार स्तरों में स्वयं के होने का अनुभव करती है- (1) जाग्रत, (2) स्वप्न, (3) सुषुप्ति और (4) तुरीय अवस्था। जो व्यक्ति अपनी जाग्रत अवस्था में स्वप्न या सु‍षुप्ति को गहराता है वही मनुष्य योनि को छोड़कर अन्य निचले स्तर में गिरता जाता है।
 
यह क्रम इस प्रकार चलता है- जागा हुआ व्यक्ति जब पलंग पर सोता है तो पहले स्वप्निक अवस्था में चला जाता है फिर जब नींद गहरी होती है तो वह सुषुप्ति अवस्था में होता है। इसी के उल्टे क्रम में वह सवेरा होने पर पुन: जाग्रत हो जाता है। व्यक्ति एक ही समय में उक्त तीनों अवस्था में भी रहता है। कुछ लोग जागते हुए भी स्पप्न देख लेते हैं अर्थात वे गहरी कल्पना में चले जाते हैं। 
 
वेद कहते हैं कि ठीक इसी तरह जन्म एक जाग्रति है और जीवन एक स्वप्न तथा मृत्यु एक गहरी सुषुप्ति अवस्था में चले जाना है, लेकिन जिन लोगों ने जीवन में नियमित 'ध्यान' किया है उन्हें मृत्यु मार नहीं सकती। ध्यान की एक विशेष दशा में व्यक्ति तुरीय अवस्था में चला जाता है। तुरीय अवस्था को हम समझने की दृष्टि से पूर्ण जागरण की अवस्था कह सकते हैं, लेकिन यह उससे कहीं अधिक बड़ी बात है।
 
उक्त चारों स्तरों के उपस्तर भी होते हैं जैसे कोई व्यक्ति जागा हुआ होकर भी सोया-सोया-सा दिखाई देता है। आँखें खुली है किंतु कई लोग बेहोशी में जीते रहते हैं। जीवन कब गुजर गया उन्हें पता ही नहीं चलता तब जन्म और मृत्यु का क्या भान रखेंगे।
 
जब आत्मा गर्भ में प्रवेश करती है तब वह गहरी सुषुप्ति अवस्था में होती है। जन्म से पूर्व भी वह इसी अवस्था में ही रहती है। गर्भ से बाहर आकर उसकी चेतना पर से सुषुप्ति छँटने लगती है तब वह स्वप्निक अवस्था में प्रवेश कर जाता है। लगभग 7 वर्ष की आयु तक यही अवस्था रहने के बाद वह होश संभालने लगता है। कुछ बच्चे इससे पूर्व ही होश संभालने लग जाते हैं।
 
जैसे सुबह उठकर हम कुछ सपने भूल जाते हैं और कुछ हमें याद रहते हैं उसी तरह शैशवकाल की कुछ यादें ही शेष रह जाती है वह भी धुंधली-सी।
 
जिस तरह सुषुप्ति से स्वप्न और स्वप्न से हम जाग्रति में जाते हैं उसी तरह मृत्युकाल में हम जाग्रति से स्वप्न और स्वप्न से सु‍षुप्ति में चले जाते हैं फिर सुषुप्ति से गहन सुषुप्ति में।
 
मृत्युकाल में 'यम' नामक वायु में कुछ काल तक आत्मा स्थिर रहने के बाद पुन: गर्भधारण करती है। यह क्रम चलता रहता है। यह चक्र चलता रहता है। यह तो बात हुई जन्म और मृत्यु के चक्र की अब देंखे कि यही क्रम हमारे साथ जीवनभर दिन और रात में चलता रहता है। इस चक्र से छुटकारा पाने का एक ही उपाय है ध्यान द्वारा मोक्ष को उपलब्ध हो जाना। दूसरा कोई उपाय नहीं है।
 
एक तो होता है यह प्राकृतिक चक्र और दूसरा यह कि हम किस तरह से जीते हैं यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम दिन में भी जाग्रत रहकर भी जाग्रत हैं कि नहीं या फिर स्वप्नवत जी रहे हैं। वेदों को छोड़कर जो अन्य बातों में रमते हैं उनका जीवन सच्चे ज्ञान के अभाव में स्वप्नवत बीत जाता है और मृत्यु दरवाजे पर आकर खड़ी हो जाती है।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

लाल किताब के अनुसार मंगल दोष से बचने के 10 अचूक उपाय, फिर निश्चिंत होकर करें विवाह

क्या आप जानते हैं चातुर्मास के समय क्यों योग निद्रा में चले जाते हैं भगवान विष्णु, नहीं होते मांगलिक कार्य

क्या फिर कहर बरपाएगा कोरोना, क्या है जापानी बाबा वेंगा की भविष्यवाणी

शीघ्र विवाह बंधन में बंधना चाहते हैं आजमाएं ये 5 प्रभावी उपाय

मांगलिक दोष शुभ या अशुभ, जानें इसके फायदे और ज्योतिषीय उपाय

सभी देखें

धर्म संसार

15 जून 2025 : आपका जन्मदिन

एयर इंडिया विमान हादसे का क्या कनेक्शन है जगन्नाथ मंदिर और अच्युतानंद महाराज की गादी से

मन सच्चा, कर्म अच्छा और बाकी सब महादेव की इच्छा... पढ़ें शिव जी पर लेटेस्ट कोट्स

15 जून 2025, रविवार के शुभ मुहूर्त

कामाख्या मंदिर जहां राजा रघुवंशी को लेकर गई थी पत्नी सोनम माना जाता है तांत्रिकों और अघोरियों का गढ़, जानिए मंदिर के रहस्य

अगला लेख