मरने के बाद क्या आपके पितरों को मिल गया है मोक्ष?

अनिरुद्ध जोशी
योग चित्त वृत्ति निरोध:
 
जब शरीर छूटता है तो व्यक्ति के साथ क्या होता है यह सवाल सदियों पुराना है। कुछ लोग कहते हैं कि मरने वाला बता नहीं सकता और जिंदा आदमी जान नहीं सकता कि मरने के बाद क्या होता है। ऐसे में किसने यह जाना की मौत के बाद क्या होता है? हमारे प्राचीन ऋषि मुनियों ने इसका वर्णन किया है। उपनिषदों में इसका वर्णन मिलता है।
 
 
मुख्यत: तीन तरह के शरीर होते हैं- स्थूल, सूक्ष्म और कारण। व्यक्ति जब मरता है तो स्थूल शरीर छोड़कर पूर्णत: सूक्ष्म में ही विराजमान हो जाता है। सूक्ष्म शरीर के विस्मृत होने के बाद व्यक्ति दूसरा शरीर धारण कर लेता है, लेकिन कारण शरीर बीज रूप है जो अनंत जन्मों तक हमारे साथ रहता है।
 
आत्मा शरीर में रहकर चार स्तर से गुजरती है :
1. छांदोग्य उपनिषद (8-7) के अनुसार आत्मा चार स्तरों में स्वयं के होने का अनुभव करती है- 1.जागृत 2.स्वप्न 3.सुषुप्ति और 4.तुरीय अवस्था।
 
2. आत्मा के ऊपर विचार, पदार्थ और इंद्रियों के अनुभव की धुंध छाई रहती है। इसी के चलते वह जागृत, स्वप्न और सुषुप्ति अवस्था का अनुभव करता है। प्रतिपल व्यक्ति जाग्रत, स्वप्न और फिर सुषुप्ति अवस्था में जिता है।
 
3. तीन स्तरों का अनुभव प्रत्येक जन्म लिए हुए मनुष्य को अनुभव होता ही है, लेकिन चौथे स्तर में वही होता है जो आत्मवान हो गया है या जिसने मोक्ष पा लिया है। वह शुद्ध तुरीय अवस्था में होता है जहां न तो जाग्रति है, न स्वप्न, न सु‍षुप्ति ऐसे मनुष्य सिर्फ दृष्टा होते हैं- जिसे पूर्ण-जागरण की अवस्था भी कहा जाता है, जो ध्यान और तप से ही प्राप्त होती है। अधिकतर लोग सभी की तरह जीते हैं और मरकर पुन: जन्म ले लेते हैं। 
 
होश का स्तर तय करता गति : प्रथम तीनों अवस्थाओं के कई स्तर है। कोई जाग्रत रहकर भी स्वप्न जैसा जीवन जिता है, जैसे खयाली राम या कल्पना में ही जीने वाला। कोई चलते-फिरते भी नींद में रहता है, जैसे कोई नशे में धुत्त, चिंताओं से घिरा या फिर जिसे कहते हैं तामसिक।
 
हमारे आसपास जो पशु-पक्षी हैं वे भी जागृत हैं, लेकिन हम उनसे कुछ ज्यादा होश में हैं तभी तो हम मानव हैं। जब होश का स्तर गिरता है तब हम पशुवत हो जाते हैं। कहते भी हैं कि व्यक्ति नशे में व्यक्ति जानवर बन जाता है।  वेद में इसे जड़, प्राण, मन, विज्ञान और आनंद इस तरह पंचकोष में व्यक्त किया है।
 
पेड़-पौधे और भी गहरी बेहोशी में हैं। मरने के बाद व्यक्ति का जागरण, स्मृति कोष और भाव तय करता है कि इसे किस योनी में जन्म लेना चाहिए। इसीलिए वेद कहते हैं कि जागने का सतत अभ्यास करो। जागरण ही तुम्हें प्रकृति से मुक्त कर सकता है।
 
 
क्या होता है मरने के बाद : सामान्य व्यक्ति जैसे ही शरीर छोड़ता है, सर्वप्रथम तो उसकी आंखों के सामने गहरा अंधेरा छा जाता है, जहां उसे कुछ भी अनुभव नहीं होता। कुछ समय तक कुछ आवाजें सुनाई देती है कुछ दृश्य दिखाई देते हैं जैसा कि स्वप्न में होता है और फिर धीरे-धीरे वह गहरी सुषुप्ति में खो जाता है, जैसे कोई कोमा में चला जाता है। गहरी सुषुप्ति में कुछ लोग अनंतकाल के लिए खो जाते हैं, तो कुछ इस अवस्था में ही किसी दूसरे गर्भ में जन्म ले लेते हैं। प्रकृ‍ति उन्हें उनके भाव, विचार और जागरण की अवस्था अनुसार गर्भ उपलब्ध करा देती है। जिसकी जैसी योग्यता वैसा गर्भ या जिसकी जैसी गति वैसी सुगति या दुर्गति। गति का संबंध मति से होता है। सुमति तो सुगति।
 
लेकिन यदि व्यक्ति स्मृतिवान (चाहे अच्छा हो या बुरा) है तो सु‍षुप्ति में जागकर चीजों को समझने का प्रयास करता है। फिर भी वह जाग्रत और स्वप्न अवस्था में भेद नहीं कर पाता है। वह कुछ-कुछ जागा हुआ और कुछ-कुछ सोया हुआ सा रहता है, लेकिन उसे उसके मरने की खबर रहती है। ऐसा व्यक्ति तब तक जन्म नहीं ले सकता जब तक की उसकी इस जन्म की स्मृतियों का नाश नहीं हो जाता। कुछ अपवाद स्वरूप जन्म ले लेते हैं जिन्हें पूर्व जन्म का ज्ञान हो जाता है। लेकिन जो व्यक्ति बहुत ही ज्यादा स्मृतिवान, जाग्रत या ध्यानी है उसके लिए दूसरा जन्म लेने में कठिनाइयां खड़ी हो जाता है, क्योंकि प्राकृतिक प्रोसेस अनुसार दूसरे जन्म के लिए बेहोश और स्मृतिहीन रहना जरूरी है।
 
इनमें से कुछ लोग जो सिर्फ स्मृतिवान हैं वे भूत, प्रेत या पितर योनी में रहते हैं और जो जाग्रत हैं वे कुछ काल तक अच्छे गर्भ की तलाश का इंतजार करते हैं। लेकिन जो सिर्फ ध्यानी है या जिन्होंने गहरा ध्यान किया है वे अपनी इच्छा अनुसार कहीं भी और कभी भी जन्म लेने के लिए स्वतंत्र हैं। यह प्राथमिक तौर पर किए गए तीन तरह के विभाजन है। विभाजन और भी होते हैं जिनका वेदों में उल्लेख मिलता है।
 
जब हम गति की बात करते हैं तो तीन तरह की गति होती है। सामान्य गति, सद्गगति और दुर्गति। तामसिक प्रवृत्ति व कर्म से दुर्गति ही प्राप्त होती है, अर्थात इसकी कोई ग्यारंटी नहीं है कि व्यक्ति कब, कहां और कैसी योनी में जन्म ले। यह चेतना में डिमोशन जैसा है, लेकिन कभी-कभी व्यक्ति की किस्मत भी काम कर जाती है।
 
सचमुच प्रकृति में किसी भी प्रकार का कोई नियम काम नहीं करता क्योंकि कभी-कभी व्यक्ति की योग्यता भी असफलता का द्वार खोल देती है और अयोग्य व्यक्ति यदि अच्छी चाहत और सकारात्म विचारों वाला है तो सद्गति को प्राप्त हो जाता है। प्रकृति को चाहिए जागरण, समर्पण और संकल्प। तो संकल्प लें की आज से हम विचार और भाव के जाल को काटकर सिर्फ दृष्टा होने का अभ्यास करेंगे।
 
चित्त वृत्ति निरोध करने से ही मोक्ष मिलता है। चित्त वृत्तियों का निरोध सिर्फ ध्यान करने से ही होता है। अब यह चित्त क्या होता है इसके लिए हमारे सनातन धर्म का योग चैनल देखें।

सम्बंधित जानकारी

Show comments

Vasumati Yog: कुंडली में है यदि वसुमति योग तो धनवान बनने से कोई नहीं रोक सकता

Parshuram jayanti 2024 : भगवान परशुराम जयंती पर कैसे करें उनकी पूजा?

मांगलिक लड़की या लड़के का विवाह गैर मांगलिक से कैसे करें?

Parshuram jayanti 2024 : भगवान परशुराम का श्रीकृष्ण से क्या है कनेक्शन?

Akshaya-tritiya 2024: अक्षय तृतीया के दिन क्या करते हैं?

Aaj Ka Rashifal: पारिवारिक सहयोग और सुख-शांति भरा रहेगा 08 मई का दिन, पढ़ें 12 राशियां

vaishkh amavasya 2024: वैशाख अमावस्या पर कर लें मात्र 3 उपाय, मां लक्ष्मी हो जाएंगी प्रसन्न

08 मई 2024 : आपका जन्मदिन

08 मई 2024, बुधवार के शुभ मुहूर्त

Akshaya tritiya : अक्षय तृतीया का है खास महत्व, जानें 6 महत्वपूर्ण बातें

अगला लेख