कश्मीर का प्राचीन और पौराणिक इतिहास

अनिरुद्ध जोशी
जब हम कश्मीर बोलते हैं तो उसमें लद्दाख के हिस्से नहीं आते हैं। हम जम्मू और कश्मीर में से कश्मीर के प्राचीन और पौराणिक इतिहास की बात करेंगे, लेकिन इसके इतिहास के कुछ हिस्से जम्मू से भी जुड़ते हैं। कहते हैं कि कश्मीर भारत का सबसे प्राचीन जनपद रहा है या राज्य रहा है। जम्मू और कश्मीर का उल्‍लेख महाभारत में भी मिलता है। हाल में अखनूर से प्राप्‍त हड़प्‍पा कालीन अवशेषों तथा मौर्य, कुषाण और गुप्‍त काल की कलाकृतियों से जम्मू के प्राचीन इतिहास का पता चलता है।
 
इस संपूर्ण क्षेत्र पर सबसे पहले जम्बूद्वीप के राजा अग्निघ्र का राज ही था। कुछ विद्वान मानते हैं कि पहले इंद्र का ही राज था। हालांकि बाद में यहां पर सतयुग में कश्यप ऋषि का राज हो गया। त्रेतायुग में अर्थात भगवान राम के काल के हजारों वर्ष पूर्व प्रथम मनु स्वायंभुव मनु के पौत्र और प्रियव्रत के पुत्र ने इस भारतवर्ष को बसाया था, तब इसका नाम कुछ और था। उनके शासक के अंतर्गत कश्मीर एक जनपद था।
 
हालांकि पौराणिक मत के अनुसार माना जाता है कि कश्यप ऋषि के नाम पर ही कश्यप सागर (कैस्पियन सागर) और कश्मीर का प्राचीन नाम था। शोधकर्ताओं के अनुसार कैस्पियन सागर से लेकर कश्मीर तक ऋषि कश्यप के कुल के लोगों का राज फैला हुआ था। कश्यप ऋषि का इतिहास प्राचीन माना जाता है। कैलाश पर्वत के आसपास भगवान शिव के गणों की सत्ता थी। उक्त इलाके में ही दक्ष राजा का भी साम्राज्य भी था। 
 
कहते हैं कि कश्यप ऋषि कश्मीर के पहले राजा थे। कश्मीर को उन्होंने अपने सपनों का राज्य बनाया। उनकी एक पत्नी कद्रू के गर्भ से नागों की उत्पत्ति हुई जिनमें प्रमुख 8 नाग थे- अनंत (शेष), वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंख और कुलिक। इन्हीं से नागवंश की स्थापना हुई। आज भी कश्मीर में इन नागों के नाम पर ही स्थानों के नाम हैं। कश्मीर का अनंतनाग नागवंशियों की राजधानी थी।
 
राजतरंगिणी तथा नीलम पुराण की कथा के अनुसार कश्‍मीर की घाटी कभी बहुत बड़ी झील हुआ करती थी। कश्यप ऋषि ने यहां से पानी निकाल लिया और इसे मनोरम प्राकृतिक स्‍थल में बदल दिया। इस तरह कश्मीर की घाटी अस्तित्व में आई। हालांकि भूगर्भशास्त्रियों के अनुसार खदियानयार, बारामूला में पहाड़ों के धंसने से झील का पानी बहकर निकल गया और इस तरह कश्मीर में रहने लायक स्थान बने। राजतरंगिणी 1184 ईसा पूर्व के राजा गोनंद से लेकर राजा विजय सिम्हा (1129 ईसवी) तक के कश्मीर के प्राचीन राजवंशों और राजाओं का प्रमाणिक दस्तावेज है।
 
कश्मीर के प्राचीन स्थान-
कश्मीर में आज भी नागों के नाम पर जगहें हैं- जैसे अनंतनाग, कमरू, कोकरनाग, वेरीनाग, नारानाग, कौसरनाग आदि। इस तरह बारामूला का प्राचीन नाम वराह मूल था। यह प्राचीनकाल में वराह अवतार की उपासना का केंद्र था। वराहमूल का अर्थ होता है ‘सूअर दाढ़ या दांत। वराह भगवान ने अपने दांत से ही धरती उठा ली थी। इसी तरह कश्मीर के बड़गाम, पुलवामा, कुपवाड़ा, शोपियां, गंदरबल, बांडीपुरा, श्रीनगर और कुलगाम जिला के अपना अगल प्राचीन और पौराणिक इतिहास रहा है।
 
यह इतिहास कश्मीरी पंडितों से जुड़ा हुआ है। कश्मीरी पंडितों की संस्कृति लगभग 6000 साल से भी ज्यादा पुरानी है और वे ही कश्मीर के मूल निवासी हैं। इसलिए अगर कोई कहता है कि भारत ने कश्मीर पर कब्जा कर लिया है तो यह बिलकुल गलत है। कब्जा तो पाकिस्तान ने आधे कश्मीर पर कर रखा है जिसे पीओके कहते हैं।
 
गांधार, कंबोज और कुरु जनपद के अंतर्गत रहा है कश्मीर:
महाभारत काल के पूर्व कश्मीर के हिस्से भारत के 16 महाजनपदों में से तीन गांधार, कंबोज और कुरु महाजनपद के अंतर्गत आते थे। गांधार- आज के पाकिस्तान का पश्चिमी तथा अफगानिस्तान का पूर्वी क्षेत्र उस काल में भारत का गंधार प्रदेश था। आधुनिक कंदहार इस क्षेत्र से कुछ दक्षिण में स्थित था। सिकन्दर के भारत पर आक्रमण के समय गंधार में कई छोटी-छोटी रियासतें थीं, जैसे अभिसार, तक्षशिला आदि। पुरुषपुर (आधुनिक पेशावर) तथा तक्षशिला इसकी राजधानी थी। इसका अस्तित्व 600 ईसा पूर्व से 11वीं सदी तक रहा। उल्लेखनीय है कि सभा पर्व महाभारत में अभिसारी नामक नगर का उल्लेख मिलता है जो चिनाब नदी के पश्चिम में पूंछ, राजौरी और भिंभर की पहाड़ियों में स्थित था।
 
कंबोज- कंबोज महाजनपद का विस्तार कश्मीर से हिन्दूकुश तक था। इसके दो प्रमुख नगर थे राजपुर और नंदीपुर। राजपुर को आजकल राजौरी कहा जाता है। पाकिस्तान का हजारा जिला भी कंबोज के अंतर्गत ही था।
 
वाल्मीकि रामायण के अनुसार कंबोज वाल्हीक और वनायु देश के पास स्थित है। आ‍धुनिक मान्यता के अनुसार कश्मीर के राजौरी से तजाकिस्तान तक का हिस्सा कंबोज था जिसमें आज का पामीर का पठार और बदख्शां भी हैं। बदख्शां अफगानिस्तान में हिन्दूकुश पर्वत का निकटवर्ती प्रदेश है और पामीर का पठार हिन्दूकुश और हिमालय की पहाड़ियों के बीच का स्थान है।
 
कनिंघम ने अपने सुप्रसिद्ध ग्रंथ 'एंशेंट जियोग्राफी ऑव इंडिया' में राजपुर का अभिज्ञान दक्षिण-पश्चिम कश्मीर के राजौरी नामक नगर (जिला पुंछ, कश्मीर) के साथ किया है। यहां नंदीनगर नामक एक और प्रसिद्ध नगर था। सिकंदर के आक्रमण के समय कंबोज प्रदेश की सीमा के अंतर्गत उरशा (पाकिस्तानी जिला हजारा) और अभिसार (कश्मीर का जिला पुंछ) नामक छोटे-छोटे राज्य बसे हुए थे।  
 
जिन स्थानों के नाम आजकल काबुल, कंधार, बल्ख, वाखान, बगराम, पामीर, बदख्शां, पेशावर, स्वात, चारसद्दा आदि हैं, उन्हें संस्कृत और प्राकृत-पालि साहित्य में क्रमश: कुंभा या कुहका, गंधार, बाल्हीक, वोक्काण, कपिशा, मेरू, कम्बोज, पुरुषपुर (पेशावर), सुवास्तु, पुष्कलावती आदि के नाम से जाना जाता था।
 
कुरु- महाभारत काल के पूर्व दक्षिण कुरुओं का राज्य हिन्दुकुश के आगे से कश्मीर तक था। बाद में पांचालों पर आक्रमण करके उन्होंने अपना क्षेत्र विस्तार किया। महाभारत काल में कुरुओं का क्षेत्र था मेरठ और थानेश्वर के आसपास था क्षेत्र और राजधानी थी पहले ‍हस्तिनापुर और बाद में इन्द्रप्रस्थ। बौद्ध कल में यह संपूर्ण क्षेत्र कुषाणों के अधीन हो चला था।
 
कॉपीराइट वेबदुनिया

सम्बंधित जानकारी

Show comments

Chaitra Navratri 2024 : चैत्र नवरात्रि इन 3 राशियों के लिए रहेगी बहुत ही खास, मिलेगा मां का आशीर्वाद

Cheti chand festival : चेटी चंड 2024 की तारीख व शुभ मुहूर्त

Hindu nav varsh 2024 : 30 साल बाद दुर्लभ संयोग और राजयोग में होगी हिंदू नववर्ष की शुरुआत

Chaitra Navratri 2024 : चैत्र नवरात्रि में किस पर सवार होकर आ रही हैं मां दुर्गा, जानें भविष्यफल

Surya grahan 2024: 8 अप्रैल का खग्रास सूर्य ग्रहण किन देशों में नहीं दिखाई देगा?

Weekly Calendar 08 to 14 April 2024 : जानें नए सप्ताह के सर्वश्रेष्ठ शुभ मुहूर्त

Aaj Ka Rashifal: 12 राशियों का दैनिक राशिफल, जानें 07 अप्रैल 2024 के खास उपाय

07 अप्रैल 2024 : आपका जन्मदिन

07 अप्रैल 2024, रविवार के शुभ मुहूर्त

कुंडली में कोटिपति योग क्या है, कैसा बनता है जातक करोड़पति

अगला लेख