सोमनाथ मंदिर का 'बाणस्तंभ' आज भी है रहस्य बरकरार

Webdunia
गुजरात में सोमनाथ के मंदिर में स्थित भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में एक और पहला ज्योतिर्लिंग है। आक्रमण के पहले सोमनाथ मंदिर का इतिहास बड़ा ही विलक्षण और गौरवशाली था।
 
कहते हैं कि इस मंदिर के प्रांगण में 'बाणस्तंभ' नाम से एक स्तंभ है। मंदिर तो नया है लेकिन स्तंभ बहुत ही प्राचीन है जिसका मंदिर के साथ-साथ जीर्णोद्धार किया गया है। लगभग 6ठी शताब्दी से इस स्तंभ का इतिहास में उल्लेख मिलता है। मतलब 1420 वर्ष पहले इस स्तंभ के होने उल्लेख मिलता है। इसका मतलब यह कि यह स्तंभ 6ठी सदी में पहले से ही विद्यमान था तभी तो उसका उस काल में उल्लेख हुआ। कहते हैं कि यह उससे भी सैकड़ों वर्ष पहले से यह विद्यमान था।
 
 
जानकारों के अनुसार यह एक दिशादर्शक स्तंभ है जिस पर समुद्र की ओर इंगित करता एक बाण है इसीलिए इसे बाणस्तंभ कहते हैं। इस बाणस्तंभ पर लिखा है- 'आसमुद्रांत दक्षिण ध्रुव पर्यंत, अबाधित ज्योर्तिमार्ग।'
 
अर्थात 'इस समुद्र के अंत तक से दक्षिण ध्रुव पर्यंत तक बिना अवरोध का ज्योतिर मार्ग है।' मतलब यह कि समुद्र के इस बिंदु से दक्षिण ध्रुव तक सीधी रेखा में एक भी अवरोध या बाधा नहीं है। इसका मतलब यह कि इस मार्ग में कोई भूखंड का टुकड़ा नहीं है। सरल अर्थ यह कि सोमनाथ मंदिर के उस बिंदु से लेकर दक्षिण ध्रुव तक (अर्थात अंटार्कटिका तक) एक सीधी रेखा खींची जाए तो बीच में एक भी भूखंड नहीं आता है। हालांकि श्लोक में भूखंड का उल्लेख नहीं है लेकिन अबाधित मार्ग का मतलब यह कि बीच में कोई भी पहाड़ का नहीं होना।

ALSO READ: सोमनाथ मंदिर का इतिहास, कितनी बार तोड़ा और कैसे फिर बना
लेकिन क्या यह सच है? जानकार लोग कहते हैं कि बिलकुल ही सीध में एक भी ऐसा बड़ा भूखंड नहीं है, जहां लोग रहते हों। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि जब यह स्तंभ लगाया गया था तब निश्‍चित ही छोटा या बड़ा किसी भी प्रकार का भूखंड न रहा हो लेकिन वक्त के साथ प्रकृति और भूगोल बदला है तो थोड़ा बहुत हेरफेर जरूर हुआ होगा। लेकिन फिर भी यह सबसे बड़ी बात है कि उस दौर के खगोलविदों को यह जानकारी जरूर थी कि दक्षिणी ध्रुव किधर है और धरती गोल है।
 
 
इसका अर्थ यह है कि 'बाणस्तंभ' के निर्माण काल में भारतीयों को 'पृथ्वी गोल है' इसका ज्ञान भी था। इतना ही नहीं, पृथ्वी का दक्षिण ध्रुव किस ओर है, इसका भी अच्छे से ज्ञान था। जब दक्षिणी ध्रुव का ज्ञान था तो निश्‍चित ही उत्तरी ध्रुव का भी ज्ञान होगा ही।
 
लेकिन यह कहना कि इस स्तंभ की सीध में एक भी भूखंड नहीं है, यह बड़ी बात है। क्योंकि यह ज्ञान तो किसी विमान में चढ़कर ही प्राप्त किया जा सकता है या आजकल ड्रोन कैमरे चले हैं तो वे भी यह बता सकते हैं। हां, सैटेलाइट से भी यह जाना जा सकता है। पृथ्वी का 'एरियल व्यू' इसे बता सकता है। आप गूगल मैप पर जाएं और खुद ही चेक कर लें।
इससे यह पता चलता है कि हमारे पूर्वज (भारतीय) नक्शा बनाने में निष्णात थे। लेकिन भारतीय ज्ञान का कोई सबूत न मिलने के कारण धरती का पहला नक्शा बनाने का श्रेय ग्रीक वैज्ञानिक 'एनेक्झिमेंडर' (611-546) को दिया गया। लेकिन यह नक्शा अपूर्ण था, क्योंकि उस नक्शे में उत्तर और दक्षिण ध्रुव नदारद थे। नक्शे में वही भूखंड दिखाया गया था, जहां मनुष्य की आबादी थी। बाकी भूखंड का क्या? वास्तविक नक्शा तो हेनरिक्स मार्टेलस ने 1490 के आसपास बनाया था।
 
 
प्राचीन सोमनाथ मंदिर के निर्माण काल में दक्षिण ध्रुव तक दिशादर्शन उस समय के भारतीयों को था, यह तो सभी समझते हैं लेकिन दक्षिण ध्रुव तक सीधी रेखा में समुद्र में कोई अवरोध नहीं हैं, ऐसा खोज लेना बहुत ही अद्भुत था जिसे आज हम गूगल मैप के माध्यम से हम स्पष्ट देख सकते हैं।
 
दक्षिण ध्रुव से भारत के पश्चिम तट पर बिना अवरोध के सीधी रेखा जहां मिलती है, वहां पहला ज्योतिर्लिंग स्थापित किया गया। लेकिन उस श्लोक की एक पंक्ति 'अबाधित ज्योर्तिमार्ग' अभी तक समझ से परे है। कोई बाधित मार्ग नहीं है लेकिन ज्योर्तिमार्ग होना खोज का विषय है। मार्ग समझ में आता है लेकिन यह ज्योर्तिमार्ग क्या है?

सम्बंधित जानकारी

Show comments

Samrat ashok jayanti 2024 : सम्राट अशोक महान के जीवन के 10 रहस्य

mahavir jayanti | महावीर जयंती कब है 2024 में?

Ram Navami 2024: रामनवमी के दिन ऐसे करें भगवान राम और हनुमान जी की पूजा

Vastu : किचन के ऊपर बेडरूम है तो होंगे 3 नुकसान, कारण और समाधान

प्रभु श्रीराम के जन्म समय के संबंध में मतभेद क्यों हैं?

Vipreet Raj Yog: विपरीत राज योग क्या होता है, रंक से बना देता है राजा

Gajkesari Yog : गजकेसरी योग क्या होता है, कुंडली का सबसे बलवान योग कैसे बदलता है भाग्य

कब है 2024 में गुरु तेग बहादुर जयंती, जानें 20 अनमोल कथन

Hanuman Jayanti 2023: हनुमान जन्मोत्सव पर उन्हें अर्पित करें 5 तरह के भोग

महावीर जयंती 2024 : जानें महावीर स्वामी के बारे में, जीवन परिचय

अगला लेख