डायनासोर का वर्णन हिन्दू शास्त्रों में है या नहीं, जानिए...

Webdunia
गुरुवार, 27 अक्टूबर 2016 (14:37 IST)
अक्सर यह माना जाता है कि यदि हिन्दू धर्म और हिन्दू धर्म ग्रंथ दुनिया में सबसे प्राचीन है तो उन धर्म ग्रंथों में प्राचीन काल में हुए विशालकाय जानवर जैसे डायनारोर, उड़ने वाले विशालकाय पक्षी आदि का जिक्र क्यों नहीं है। जैसा कि विज्ञान कहता है कि कुछ हजार वर्ष पूर्व ही विशालकाय हाथी, जंगली भैसों और पक्षी हुआ कहते थे, जो जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदा के चलते लुप्त हो गए।
दरअसल, आज की भाषा और प्राचीन काल की भाषा में बहुत फर्क है। इसी तरह धर्म की भाषा और विज्ञान की भाषा में भी बहुत फर्क है। प्राचीनकाल में विशालकाय पशुओं और पक्षियों को असुर या दैत्य की संज्ञा दी गई थी। दैत्य का अर्थ विशालकाय डील डोलवाला और कुरूप या भद्दा होता था। इसी तरह मनुष्यों में जो विशालकाय, भद्दा, काला, विभत्स, दुराचारी और नीच होता था उसे असुर, राक्षस या दैत्य मान लिया जाता था। दैत्यों को देखकर लोग डर जाते थे।
 
अधिकतर जनता यह पूछती है कि विशालकाय जानवर का वर्णन हिन्दु शास्त्रों क्यों नहीं है? दरअसल, वेद, रामायण, भागवत और महाभारत को पढ़ने के बाद पता चलता है कि उक्त धर्म ग्रंथों में विशालकाय जानवरों और पक्षियों का जिक्र है। दरअस, पुराणकारों के इन विशालकाय जानवरों को असुर के समान कहा और इनकी कथा को मिथकीय रूप दिया। ऐसा नहीं माना जा सकता कि बकासुर रूप बदलने की क्षमता रखता था और वह कोई मनुष्य रूप में असुर ही था। वह एक पक्षी ही था, जिसका श्रीकृष्ण ने वध कर दिया था। चूंकि इतने बड़े पक्षी को मार देने की घटना उस काल में बहुत बड़ी मानी जाती थी इसलिए इसका वर्णन कई काल तक चला और अंत में इसने एक मिथकीरय रूप धारण कर लिया।
 
बकासुर : कंस द्वारा भेजा गया प्रशिक्षित बकासुर एक विशालकाय पक्षी था। जिसे भगवान कृष्ण ने मार दिया था। जीवाश्व वैज्ञानिक को जिस विशालकाय पक्षी के जीवाश्म मिले हैं उसका नाम उन्होंने aepyornis रखा। लोग इन्हें एलिफेंट बर्ड कहते हैं। इस पक्षी की लंबाई तीन मीटर और यह लगभग 500 किलोग्रम का होता था।

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अघासुर : कंस ने कृष्ण को हानि पहुंचाने के लिए बकासुर के पश्चात अघासुर को भेजा। यह एक विशालकाय अजगर था जिसे श्रीकृष्ण ने गाय चराने के दौरान वृंदावन के वन में मार गिराया था। जीवाश्म विज्ञानियों ने विशालकार्य सर्प के जीवाश्म को खोजा। इससे यह सिद्ध हुआ कि प्राचीनकाल में आज के पाए जाने वाले सर्पों की अपेक्षा कई गुना बड़े सर्प हुआ करते थे। वैज्ञानिको ने इसे titanoboa नाम दिया है।

titanoboa अब तक के पाए गए सांपों में सबसे बड़ा, सबसे भारी और लम्बा सांप हैं। यह जिस युग में पाया जाता था उसे पेलियोसिनी युग कहा जाता है। ये लगभग 600 लाख साल पहले डायनासोर के लुप्त होने के करीब 100 लाख साल बाद पेलियोसिनी युग में अस्तित्व में आए और लंबे काल तक अस्तित्व में रहे। इस सांप की लंबाई 13 मीटर और वजन लगभग 1135 किलोग्राम होता था। एनाकोंडा 25 फुट का होता है।
 
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सुरसा : सुरसा को हनुमानजी ने समुद्र में मार दिया था जो समुद्री डायनासोर के समान थी। मकर (मगर नहीं) जो वरुण का वाहन है। जल में ही रहता था जो कुछ-कुछ डायनासोर और मगर के बीच के जैसा लगता है। इसके बारे में अगले पन्ने पर पढ़ें। हालांकि पौराणिक मान्यता अनुसार सुरसा विशालकाय नागों की मां थी।

श्रीमद भागवत के 12.9.16 में लिखा है। तिमिलिंग नामक एक विशालकाय मछली है समुद्र में। जीवाश्म विज्ञानियों ने विशालकाय मछली के जीवाश्म खोजे और उसे नाम दिया मेगालोडोन (megalodon)। यह प्रागैतिहासिक काल में रहने वाली एक विशाल हांगर थी। इसके विशालकाय दांत थे। वर्तमान में सबसे विशालकाय मछली व्हेल होती है।
 
श्रीमद्भागवत अनुसार कुछ राजा और कुछ सैनिक गिद्ध, उकाब, बाज, बत्तख आदि की पीठ पर बैठकर लड़ते थे। कुछ तिमिलिंगा की पीठ पर बैठकर जो विशालकाय व्हेल की तरह था, कुछ सराभा की पीठ पर बैठकर, कुछ भैंसे की पीठ पर, कुछ गैंडे की, कुछ गाय और कुछ बैल की पीठ पर बैठकर लड़ते थे। दूसरे विशालकाय गीदड़ों, चूहों, छिपकली, खरगोश, बकरी, काले हिरण, हंस और सुअरों पर बैठकर लड़ते थे। जीवाश्व वैज्ञानिकों के अनुसार प्राचीनकाल में विशालकाय चुहे और छीपकलियां हुआ करती थी।

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विशालकाय मकर : एक होता है मगर जो वर्तमान में पाया जाता है जिसे सरीसृप गण क्रोकोडिलिया का सदस्य माना गया है। यह उभयचर प्राणी दिखने में छिपकली जैसा लगता है और मांसभक्षी होता है, जबकि एक होता है समुद्री मकर जिसे समुद्र का ड्रैगन कहा गया है। श्रीमद्भभागवत पुराण में इसका उल्लेख मिलता है जिसे समुद्री डायनासोर माना गया है। 
हिन्दी में डायनासोर शब्द का अनुवाद भीमसरट है जिसका संस्कृत में अर्थ भयानक छिपकली है। भारत में जैसलमेर, गंगा और नर्मदा घाटी आदि जगहों पर डायनासोर के होने के पुख्ता सबूत वैज्ञानिकों को मिले हैं। भूगर्भ में दफ्न जैविक इतिहास की परतें उघाड़ते हुए खोजकर्ताओं के एक समूह ने मध्यप्रदेश की नर्मदा घाटी में शार्क मछली के दांतों के दुर्लभ जीवाश्म ढूंढ निकाले हैं। ये जीवाश्म 6.50 से 10 करोड़ साल पुराने हैं और 3 अलग-अलग कालखंडों से ताल्लुक रखते हैं।
 
वैज्ञानिकों के अनुसार नर्मदा घाटी में लगभग 7 करोड़ वर्ष पहले डायनासोर होते थे। नेशनल ज्यॉग्राफिकल जर्नल की टीम ने गुजरात के नर्मदा नदी के इलाके में व्यापक खोज अभियान चलाया था और इस दौरान उन्हें कुछ जीवाश्म हाथ लगे थे। इस अभियान में अमेरिका के मिशिगन विश्वविद्यालय और पंजाब विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ शामिल थे। खैर...।
 
भारत, जापान, चाइना, वियतनाम, इंडोनेशिया, मलेशिया, कंबोडिया, थाईलैंड, श्रीलंका, नेपाल, भूटान आदि पूर्वी देशों की प्राचीन संस्कृति में इस विलक्षण प्राणी के चित्र और मूर्तियां पाई जाती हैं। इसे देखने से यह लगता है कि ये वर्तमान में पाए जाने वाले मगरमच्‍छों से कुछ अलग और विलक्षण हैं, जो कुछ-कुछ ड्रेगन और कुछ मगरमच्छों का मिला-जुला रूप है।
 
हिन्दू शास्त्रों में इसे मकर कहा गया है। संस्कृत में मकर का अर्थ समुद्र का दानव या ड्रेगन। भागवत पुराण के अनुसार इस मगरमच्छ को समुद्र का ड्रेगन कहा गया है। बौद्ध धर्म में भी एक समुद्री ड्रेगन की चर्चा की गई है जिसे चीन की परंपरा में उच्च दर्जा प्राप्त है।
 
मकर के बारे में हिन्दू पौराणिक कथाओं में बहुत विस्तार से जिक्र मिलता है। गंगा और नर्मदा नदी का वाहन भी मकर ही है। वरुणदेव का वाहन भी मकर है। कामदेव का चिह्न मकर ही है। उनके झंडे पर मकर का चिह्न दर्शाया गया है इसीलिए उनके झंडे को मकरध्वज कहा जाता है। मकर नाम से एक राशि और एक जाति भी है। मकरध्वज नामक वानर हनुमानजी के पुत्र थे। मकर संक्रांति नाम से एक पर्व भी है। भगवान विष्णु ने एक मगरमच्छ को मारकर हाथी की रक्षा की थी। इसका वर्णन श्रीमद् भागवत में भी मिलता है।
 
कुछ शोधों से पता चलता है कि प्राचीनकाल में यह अजीब प्राणी बहुत ही प्रसिद्ध था, लेकिन वर्तमान में इसे पौराणिक माना जाता है। चित्रों में इस विलक्षण मगर का सिर तो मगर की तरह है लेकिन उसके सिर पर बकरी के सींगों जैसे सींग हैं, मृग और सांप जैसा शरीर, मछली या मोर जैसी पूंछ और पैंथर जैसे पैर दर्शाए गए हैं।
 
गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि एकमात्र वरुण ही इस मकर को नियंत्रित कर सकते हैं ‍जिन्हें डर नहीं है। कुछ अंग्रेजी अनुवादक गीता का अनुवाद करते समय इस पौराणिक मकर को शार्क लिखते हैं, लेकिन यह सही नहीं है। 
 
वैदिक साहित्य में अक्सर तिमिंगिला और मकर का साथ-साथ जिक्र होता है। तिमिंगिला को एक राक्षसी शार्क के रूप में दर्शाया गया है। महाभारत के अनुसार तिमिंगिला और मकर गहरे समुद्र में रहते हैं।
 
सा तं भागीरथी गंगा प्रमत्तं कुणपाश्रितम्।
समुद्रमभिसारेति अगती यत्र पक्षिणाम्।।
मकरा (तिमि) तिमिंगिला बालं नं वधित्वान खादति।
 
महाभारत में गहरे समुद्र के भीतर अन्य जीवों के साथ तिमिंगिला और मकर के होने का उल्लेख मिलता है। (महाभारत वनपर्व-168.3)।
 
6ठी शताब्दी ईसा पूर्व के आयुर्वेदिक ग्रंथ सुश्रुत संहिता में भयंकर जलीय जीवन की प्रजातियों के बीच तिमिंलिगा और मकरा के संबंध को दर्शाया गया है। 
 
सुश्रुत संहिता के अनुसार तिमि, तिमिंलिगा, कुलिसा, पकामत्स्य, निरुलारु, नंदीवारलका, मकरा, गार्गराका, चंद्रका, महामिना और राजीवा आदि ने समुद्री मछली के परिवार का गठन किया है। -(सुश्रुत संहिता-अध्याय-45)
 
श्रीमद भग्वदगीता अनुसार भूखे और प्यासे मकर और तिमिंलिगा ने एक समय मर्केन्डेय ऋषि पर हमला कर दिया था। (12.9.16)‍। एक जगह पर श्रीकृष्ण कहते हैं, 'शुद्धता में मैं हवा हूं, शस्त्रधारियों में मैं राम हूं। तैराकों के बीच में मकर हूं और नदियों में मैं गंगा हूं।'- (31-10)
 
वैदिक साहित्य अनुसार जानवर की शक्ल में आक्रमक जलीय राक्षस जो गहरे समुद्र में रहता है जो मगरमच्छ की तरह दिखाई देता है लेकिन जिसका शरीर मछली की तरह और पूंछ किसी मोर की तरह तथा पंजे तेंदुएं की तरह नजर आते हैं।
 
परंपरागत रूप से मकर को एक जलीय प्राणी माना गया है और कुछ पारंपरिक कथाओं में इसे मगरमच्छ से जोड़ा गया है, जबकि कुछ अन्य कथाओं मे इसे एक सूंस (डॉल्फिन) माना गया है। कुछ स्थानों पर इसका चित्रण एक ऐसे जीव के रूप में किया गया है जिसका शरीर तो मीन का है किंतु सिर एक हाथी की तरह है।
 
अब सवाल यह उठता है कि मकर एक पौराणिक जंतु है या कि सचमुच में ही यह प्राचीन काल में रहा होगा? जिस तरह प्राचीनकाल की कई प्राजातियां लुप्त हो गई उसी तरह क्या यह भी लुप्त हो गया? वैज्ञानिकों अनुसार 1500 ईसा पूर्व तक यह जलचर जानवर धरती पर रहता था। भारत, कंबोडिया और वियतनाम के समुद्र में यह पाया जाता था। पूर्व एशिया की नदियों में भी यह पाया जाता था। यह दरअसल यह एक बड़े गिरगिट की तरह होता था। हाल ही पुरातात्विक खोज अनुसार 2003-2008 के बीच हुई खुदाई में इंग्लैंड के डोर्सेट में इससे संबंधित कुछ जीवाश्म पाए गए हैं जो लगभग 155 मीलियन पुराने हैं। संकलन : अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
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