पौराणिक कथा और तथ्य : ऐसे हुई थी जल प्रलय, डूब गई थी संपूर्ण धरती

अनिरुद्ध जोशी
मंगलवार, 4 फ़रवरी 2020 (13:54 IST)
हिन्दू पुराणों अनुसार एक समय ऐसा आया था जबकि धरती पर भयानक वर्षा हुई थी जिसके चलते संपूर्ण धरती जल में डूब गई थी, लेकिन सिर्फ कैलाश पर्वत की चोटी और ओंमकारेश्वर स्थित मार्केण्डेय ऋषि का आश्रम ही नहीं डूब पाया था। तौरात, इंजिल, बाइबिल और कुरआन और मत्स्य पुराण सहित जल प्रलय की यह कथा सभी देश की सभ्यताओं के स्मृतिलेखों में दर्ज है। आओ जानते हैं जल प्रलय की कथा और तथ्य।
 
 
पौराणिक कथा : द्रविड़ देश के राजर्षि सत्यव्रत ने देखा कि एक मछली जल से बाहर तड़फ रही है उन्होंने उसे अपने जल के पात्र में डाल दिया। कुछ देर बाद उक्त मछली का आकार बड़ा हो गया तो उन्होंने उसे उस पात्र से निकाल बड़े पात्र में छोड़ दिया, लेकिन उस मछली का आकार और बढ़ता गया तो उन्होंने उसे अपने महल के सबसे बड़े पात्र में छोड़ दिया, लेकिन मछली का आकार दुगनी गति से बढ़ने लगा। यह देखकर राजा मछली के समक्ष हाथ जोड़कर खड़े हो गए और उन्होंने कहा- आप मुझे कोई चमत्कारिक या मायावी मछली जान पड़ती हैं आप ही बताएं की आप कौन हैं।
 
 
तब राजर्षि सत्यव्रत के समक्ष भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में प्रकट होकर कहा कि हे राजन! आज से सातवें दिन भूमि जल प्रलय से समुद्र में डूब जाएगी। तब तक तुम एक नौका बनवा लो और समस्‍त प्राणियों के सूक्ष्‍म शरीर तथा सब प्रकार के बीज लेकर सप्‍तर्षियों के साथ उस नौका पर चढ़ जाना। प्रचंड आंधी के कारण जब नाव डगमगाने लगेगी तब मैं मत्स्य रूप में तुम सबको बचाऊंगा।
 
 
तुम लोग नाव को मेरे सींग से बांध देना। तब प्रलय के अंत तक मैं तुम्‍हारी नाव खींचता रहूंगा। उस समय भगवान मत्स्य ने नौका को हिमालय की चोटी से बांध दिया। उसे चोटी को ‘नौकाबंध’ कहा जाता है। भगवान ने प्रलय समाप्‍त होने पर राजा सत्यव्रत को वेद का ज्ञान वापस दिया। राजा सत्‍यव्रत ज्ञान-विज्ञान से युक्‍त हो वैवस्‍वत मनु कहलाए। उक्त नौका में जो बच गए थे उन्हीं से संसार में जीवन चला।
 
 
अन्य तथ्‍य : कहते हैं कि राजा बाली के लगभग 3500 वर्ष बाद धरती पर जल प्रलय हुआ। जल प्रलय के बाद धीरे-धीरे जल उतरने लगा और... त्रिविष्टप (तिब्बत) या देवलोक से वैवस्वत मनु (6673 ईसा पूर्व) के नेतृत्व में प्रथम पीढ़ी के मानवों (देवों) का मेरु प्रदेश में अवतरण हुआ। वे देव स्वर्ग से अथवा अम्बर (आकाश) से पवित्र वेद पुस्तक भी साथ लाए थे। इसी से श्रुति और स्मृति की परंपरा चलती रही। वैवस्वत मनु के समय ही भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार हुआ।
 
 
वैवस्वत मनु के 10 पुत्र थे। इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यंत, करुष, महाबली, शर्याति और पृषध पुत्र थे। वैवस्वत मनु के 10 पुत्र और इला नाम की कन्या थी। भागवत के अनुसार मनु वैवस्वत दक्षिण देश के राजा थे और उनका नाम सत्यव्रत था। वैवस्वत मनु को ही पृथ्वी का प्रथम राजा कहा जाता है। इला का विवाह बुध के साथ हुआ जिससे उसे पुरूरवा नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। यही पुरूरवा प्रख्यात ऐल या चंद्र वंश का संस्थापक था।
 
 
वैवस्वत मनु के काल के प्रमुख ऋषि:- वशिष्ठ, विश्वामित्र, अत्रि, कण्व, भारद्वाज, मार्कंडेय, अगस्त्य आदि।

 
वैवस्वत मनु की शासन व्यवस्था में देवों में 5 तरह के विभाजन थे- देव, दानव, यक्ष, किन्नर और गंधर्व। दरअसल ये 5 तरह की मानव जातियां थीं। प्रारंभ में ये सभी जातियां हिमालय से सटे क्षेत्रों में ही रहती थीं फिर धीरे-धीरे वहां से नीचे फैलने लगीं।

 
आज संपूर्ण एशिया में वैवस्वत मनु और गुफा, पहाड़ी आदि पर बच गए ऋषि-मुनियों के वंशज ही निवास करते हैं। यहां से निकला मानव इराक, ईरान, तुर्की, अरब, यरुशलम, मिस्र जैसे मध्य और पश्चिम एशिया के इलाकों तक फैल गया, जिसका प्रमाण इनके ऐतिहासिक व धार्मिक लेख तो देते ही हैं, साथ ही साथ समान लंबाई, बालों का काला रंग तथा बनावट, एक जैसी मूछें-दाढ़ी, चमड़ी का रंग, अंगुलियों की बनावट, उन्नत ललाट आदि सभी एक ही हैं। इसके अलावा नए शोध से पता चला कि सभी के डीएनए की संरचना भी एक है।

 
जहां तक सवाल यूरोपीय, चीन और अफ्रीकी मूल के लोगों का है कि इनकी सभी के रूप, रंग और शारीरिक संरचना भिन्न है। लेकिन भारत, बांग्लादेश, श्रीलंका, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, तिब्बत, अफगानिस्तान, ईरान, इराक, अरब, इसराइल आदि और उसके आसपास के देशों के लोग एक ही मूल से निकले हैं।

 
तब हिमालय से सिंधु, सरस्वती नदी और ब्रह्मपु‍त्र निकलती थी जिसकी कई सहायक नदियां होती थीं, जो संपूर्ण अखंड भारत को उर्वर प्रदेश बनाती थीं। यमुना उस काल में सरस्वती की सहायक नदी थी। गंगा का अवतरण भागिरथ के काल में हुआ। मानव प्रारंभ में इन नदियों के आसपास ही रहा, फिर उसके कुछ समूह ने पश्चिम एशिया की ओर कदम बढ़ाकर अरब, मिश्र, इराक और इसराइल में अपना नया ‍ठिकाना बनाया।

 
कैस्पियन सागर से लेकर ब्रह्मपुत्र के समुद्र में मिलने तक के स्थान पर वैवस्वत मनु की संतानें फैल चुकी थीं और कुछ खास जगहों पर उन्होंने नगर बसाए थे। जलप्रलय से जैसे-जैसे धरती प्रकट होती गई, वैसे-वैसे इस क्षेत्र के मानव ने फिर से आबादी को बढ़ाया। यह शोध का विषय है कि जलप्रलय से अफ्रीकी और यूरोपीय लोग प्रभावित हुए थे ये नहीं। हालांकि जल के कैलाश पर्वत तक चढ़ जाने का मतलब तो यही है कि संपूर्ण धरती ही जलमग्न हो गई होगी।

 
वैवस्वत मनु के ‍कुल के लोग जब धरती पर फैल गए, तब उन्होंने अपने-अपने अलग- अलग कुल की शुरुआत की और उनमें से कुछ लोग अपने मूल धर्म और संस्कृति को छोड़कर मनमाने देव और देवता निर्मित करने लगे और अपने अलग पुरोहित नियुक्त करने लगे। तब पहली बार मानवों में धर्म के आधार पर विभाजन शुरू हुआ।

 
वे लोग जो खुद को वैदिक धर्म का मानते थे उन्होंने खुद को आर्य कहना शुरू कर दिया, तब स्वाभाविक ही दूसरे अनार्य घोषित हो गए। यह वैदिक और स्थानीय संस्कृति व परंपरा की लड़ाई की शुरुआत थी। इस लड़ाई के चलते ही बना आर्यावर्त, ब्रह्मदेश और भारत बंटने लगा जनपदों में। लेकिन इस बंटवारे और लड़ाई को ऋषियों ने अच्छी तरह से संचालित किया। लड़ाई के और भी कई कारण होते थे। युद्ध नहीं होता तो अन्य दर्शन, धर्म और विज्ञान की उत्पत्ति नहीं होती। उस काल में गुरु वशिष्ठ और विश्वामित्र के विचारों की लड़ाई दशराज्ञ युद्ध में बदल गई और इससे दो तरह की सभ्यताओं का जन्म हुआ। एक वह जो लोकतंत्र में विश्वास रखती थी और दूसरी वह जो एकतंत्र में विश्‍वास रखती थी। लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करने वाले विश्‍वामित्र इस युद्ध में हार गए।
 

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Bhai dooj katha: भाई दूज की पौराणिक कथा

Govardhan Puja 2024: गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त और पूजन सामग्री सहित सरल विधि

Diwali Laxmi Pujan Timing: दिवाली पर लक्ष्मी पूजा के शुभ मुहूर्त और चौघड़िया

Narak chaturdashi 2024: नरक चतुर्दशी पर हनुमानजी की पूजा क्यों करते हैं, क्या है इसका खास महत्व?

दिवाली के पांच दिनी उत्सव में किस दिन क्या करते हैं, जानिए इंफोग्राफिक्स में

सभी देखें

धर्म संसार

Aaj Ka Rashifal: भाई दूज के दिन किन राशियों पर होगी ईश्वर की विशेष कृपा, पढ़ें 03 नवंबर का राशिफल

03 नवंबर 2024 : आपका जन्मदिन

03 नवंबर 2024, रविवार के शुभ मुहूर्त

Chhath Puja 2024: छठ पर सूर्य देव और छठी मैया की पूजा की सामग्री एवं पूजन विधि

Chhath Puja katha: छठ पूजा की 4 पौराणिक कथाएं

अगला लेख