प्राचीन एवं पौराणिक हिन्दू शास्त्रों अनुसार समुद्र का रहस्य

अनिरुद्ध जोशी
शनिवार, 19 सितम्बर 2020 (15:14 IST)
भारत के प्राचीन और पौराणिक हिन्दू शास्त्रों में समुद्र का अद्भुत वर्णन मिलता है। समुद्र के रहस्यमयी लोक के बारे में समुद्र के कई तरह के रोचक और रोमां‍चक जीवों का वर्णन पढ़कर मन रोमांचित हो जाता है। आओ जानते हैं कि हिन्दू शास्त्रों में कैसे है समुद्र का वर्णन।
 
 
हिन्दू शास्त्रों में समुद्र को 7 भागों में बांटा गया है- लवण का सागर, इक्षुरस का सागर, सुरा का सागर, घृत का सागर, दधि का सागर, क्षीर का सागर और मीठे जल का सागर। दधि सागर का अर्थ दही का सागर नहीं सुरा सागर का अर्थ किसी मदिरा का सागर नहीं परंतु उस तरह की प्रकृति का सागर माना गया है।
 
समुद्र मंथन : हिन्दू पौराणिक कथाओं में समुद्र का वर्णन कई बार सुनने को मिलता है। समुद्र मंथन की कहानी बहुत प्रचलित है। देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था और उसमें से 14 प्रकार के रत्न निकले थे। उससे पहले वराह कल्प की शुरुआत में भगवान वराह ने धरती पर से समुद्र का जल हटाकर धरती को रहने लायक जगह बनाई थी।
 
समुद्र के जीव : दूसरी ओर हम सुनते और पौराणिक साहित्य में पढ़ते आए हैं कि समुद्र में जलपरियां होती हैं, हाथी और घोड़े भी होते हैं। शेषनाग भी समुद्र में ही रहता है। समुद्र में कहीं पर एक नागलोक भी हैं, जहां आधे मानव रूप में नाग रहते हैं। यह भी सुना है कि समुद्र में ही 7 पाताल लोक भी हैं।
 
सुरसा को हनुमानजी ने समुद्र में मार दिया था जो समुद्री डायनासोर के समान थी। मकर (मगर नहीं) जो वरुण का वाहन है। जल में ही रहता था जो कुछ-कुछ डायनासोर और मगर के बीच के जैसा लगता है। इसके बारे में अगले पन्ने पर पढ़ें। हालांकि पौराणिक मान्यता अनुसार सुरसा विशालकाय नागों की मां थी। श्रीमद भागवत के 12.9.16 में लिखा है। तिमिलिंग नामक एक विशालकाय मछली है समुद्र में। जीवाश्म विज्ञानियों ने विशालकाय मछली के जीवाश्म खोजे और उसे नाम दिया मेगालोडोन (megalodon)। यह प्रागैतिहासिक काल में रहने वाली एक विशाल हांगर थी। इसके विशालकाय दांत थे। वर्तमान में सबसे विशालकाय मछली व्हेल होती है।
 
एक होता है मगर जो वर्तमान में पाया जाता है जिसे सरीसृप गण क्रोकोडिलिया का सदस्य माना गया है। यह उभयचर प्राणी दिखने में छिपकली जैसा लगता है और मांसभक्षी होता है, जबकि एक होता है समुद्री मकर जिसे समुद्र का ड्रैगन कहा गया है। श्रीमद्भभागवत पुराण में इसका उल्लेख मिलता है जिसे समुद्री डायनासोर माना गया है। महाभारत में गहरे समुद्र के भीतर अन्य जीवों के साथ तिमिंगिला और मकर के होने का उल्लेख मिलता है। (महाभारत वनपर्व-168.3)। सुश्रुत संहिता के अनुसार तिमि, तिमिंलिगा, कुलिसा, पकामत्स्य, निरुलारु, नंदीवारलका, मकरा, गार्गराका, चंद्रका, महामिना और राजीवा आदि ने समुद्री मछली के परिवार का गठन किया है। -(सुश्रुत संहिता-अध्याय-45)
 
समुद्री देव : समुद्र के एक तो वरुणदेव और दूसरे समुद्रदेव। अदिति के पुत्र वरुण देव को समुद्र का देवता माना गया है। ऋग्वेद के अनुसार वरुण देव सागर के सभी मार्गों के ज्ञाता हैं।
 
समुद्रा का इतिहास : भारत में नौवहन की कला और नौवहन का जन्‍म 6,000 वर्ष पहले सिंध नदी में हुआ था। ऋग्वेद में नौका द्वारा समुद्र पार करने के कई उल्लेख मिलते हैं। एक सौ नाविकों द्वारा बड़े जहाज को खेने का उल्लेख भी मिलता है। ऋग्वेद में सागर मार्ग से व्यापार के साथ-साथ भारत के दोनों महासागरों (पूर्वी तथा पश्चिमी) का उल्लेख है जिन्हें आज बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर कहा जाता है। अथर्ववेद में ऐसी नौकाओं का उल्लेख है जो सुरक्षित, विस्तारित तथा आरामदायक भी थीं। ऋग्वेद में सरस्वती नदी को ‘हिरण्यवर्तनी’ (सु्वर्ण मार्ग) तथा सिन्धु नदी को ‘हिरण्यमयी’ (स्वर्णमयी) कहा गया है। सरस्वती क्षेत्र से सुवर्ण धातु निकाला जाता था और उस का निर्यात होता था। इसके अतिरिक्त अन्य वस्तुओं का निर्यात भी होता था। भारत के लोग समुद्र के मार्ग से मिस्र के साथ इराक के माध्यम से व्यापार करते थे। तीसरी शताब्दी में भारतीय मलय देशों (मलाया) तथा हिन्द चीनी देशों को घोड़ों का निर्यात भी समुद्री मार्ग से करते थे।
 
संस्कृत ग्रंथ ‘युक्तिकल्पत्रु’ में नौका निर्माण का ज्ञान है। इसी का चित्रण अजन्ता गुफाओं में भी विध्यमान है। इस ग्रंथ में नौका निर्माण की विस्तृत जानकारी मिलती है। जैसे, किस प्रकार की लकड़ी का प्रयोग किया जाए, उन का आकार और डिजाइन कैसा हो, उसको किस प्रकार सजाया जाए ताकि यात्रियों को अत्याधिक आराम हो। युक्तिकल्पत्रु में जलवाहनों की वर्गीकृत श्रेणियां भी निर्धारित की गई हैं।
 
जहाज का आविष्कार : कुछ विद्वानों का मत है कि भारत और शत्तेल अरब की खाड़ी तथा फरात (Euphrates) नदी पर बसे प्राचीन खल्द (Chaldea) देश के बीच ईसा से 3,000 वर्ष पूर्व जहाजों से आवागमन होता था। भारत के प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद में जहाज और समुद्रयात्रा के अनेक उल्लेख है (ऋक् 1. 25. 7, 1. 48. 3, 1. 56. 2, 7. 88. 3-4 इत्यादि)। याज्ञवल्क्य सहिता, मार्कंडेय तथा अन्य पुराणों में भी अनेक स्थलों पर जहाजों तथा समुद्रयात्रा संबंधित कथाएं और वार्ताएं हैं। मनुसंहिता में जहाज के यात्रियों से संबंधित नियमों का वर्णन है।
 
पहली बार भारत ने ही नदी में नाव और समुद्र में जहाजों को उतारा था। रामायण के अनुसार रावण के पास वायुयानों के साथ ही कई समुद्र जलपोत भी थे। रामायण में केवट प्रसंग आता है। राम को जब वनवास हुआ तो वाल्मीकि रामायण और शोधकर्ताओं के अनुसार वे सबसे पहले तमसा नदी पहुंचे, जो अयोध्या से 20 किमी दूर है। इसके बाद उन्होंने गोमती नदी पार की और प्रयागराज (इलाहाबाद) से 20-22 किलोमीटर दूर वे श्रृंगवेरपुर पहुंचे, जो निषादराज गुह का राज्य था। यहीं पर गंगा के तट पर उन्होंने केवट से गंगा पार करने को कहा था। भगवान श्रीकृष्ण का अपने सखा और बलराम के साथ सरस्वती नदी में नौका के माध्यम से मथुरा से द्वारिका पहुंचने का उल्लेख मिलता है।

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