हिन्दू इतिहास : नील वराह काल

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
वराह कल्प में हिन्दू धर्म की शुरुआत का इतिहास धरती पर भूमि की तलाश और भूमि को रहने लायक बनाने का इतिहास था। इस काल के 3 भेद हैं और तीनों में विष्णु ने अलग-अलग अवतार लिए हैं। पुराणों के कुछ विद्वान मानते हैं कि यह वह काल था जबकि हिमयुग शुरू होने वाला था। लगभग 14 हजार विक्रम संवत पूर्व अर्थात आज से 15,921 वर्ष पूर्व भगवान नील वराह ने अवतार लिया था। लेकिन यह तारीखें कितनी सही है यह हम नहीं जानते। 
माना जाता है कि इस काल में ब्रह्मा, विष्णु और महेष सहित सभी देवी और देवता धरती पर रहते थे। शिव का स्थान जहां कैलाश पवर्त था तो विष्णु हिंद महासागर के तटवर्ती इलाके में और ब्रह्मा व उनके पुत्रों ने ईरान से लेकर कश्मीर तक अपनी सत्ता कायम कर रखी थी। हालांकि उस काल में धरती पर रहने लायक जगह बहुत ही कम थी।

1. नील वराह काल। 2. आदि वराह काल। 3. श्वेत वराह काल।

1. नील वराह काल : पाद्मकल्प के अंत के बाद महाप्रलय हुई। सूर्य के भीषण ताप के चलते धरती के सभी वन-जंगल आदि सूख गए। समुद्र का जल भी जल गया। ज्वालामुखी फूट पड़े। सघन ताप के कारण सूखा हुआ जल वाष्प बनकर आकाश में मेघों के रूप में स्थिर होता गया। अंत में न रुकने वाली जलप्रलय का सिलसिला शुरू हुआ। चक्रवात उठने लगे और देखते ही देखते समस्त धरती जल में डूब गई।

यह देख ब्रह्मा को चिंता होने लगी, तब उन्होंने जल में निवास करने वाले विष्णु का स्मरण किया और फिर विष्णु ने नील वराह रूप में प्रकट होकर इस धरती के कुछ हिस्से को जल से मुक्त किया।

पुराणकार कहते हैं कि इस काल में महामानव नील वराह देव ने अपनी पत्नी नयनादेवी के साथ अपनी संपूर्ण वराही सेना को प्रकट किया और धरती को जल से बचाने के लिए तीक्ष्ण दरातों, पाद प्रहारों, फावड़ों और कुदालियों और गैतियों द्वारा धरती को समतल किया। इसके लिए उन्होंने पर्वतों का छेदन तथा गर्तों के पूरण हेतु मृत्तिका के टीलों को जल में डालकर भूमि को बड़े श्रम के साथ समतल करने का प्रयास किया।

यह एक प्रकार का यज्ञ ही था इसलिए नील वराह को यज्ञ वराह भी कहा गया। नील वराह के इस कार्य को आकाश के सभी देवदूत देख रहे थे। प्रलयकाल का जल उतर जाने के बाद भगवान के प्रयत्नों से अनेक सुगंधित वन और पुष्कर-पुष्करिणी सरोवर निर्मित हुए, वृक्ष, लताएं उग आईं और धरती पर फिर से हरियाली छा गई। संभवत: इसी काल में मधु और कैटभ का वध किया गया था।-aj
संदर्भ : वराह पुराण
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