सहस्रबाहु जयंती : सहस्रबाहु कौन थे? जानिए 10 तथ्य

Webdunia
शुक्रवार, 28 अक्टूबर 2022 (16:23 IST)
Sahastrabahu jayanti 2022 : कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी को सहस्त्रबाहु की जयंती मनाई जाती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 31 अक्टूबर को यह जयंती मनाई जाती है। सहस्त्रबाहु कौन थे? क्या है पौराणिक तथ्य? किस काल में हुए थे वे और क्या है उनकी कहानी? आओ जानते हैं कि राजा सहस्रबाहु के बारे में 10 खास बातें।
 
1. कई नाम : इनके सहस्रबाहु, कार्तवीर्य अर्जुन के हैहयाधिपति, दषग्रीविजयी, सुदशेन, चक्रावतार, सप्तद्रवीपाधि, कृतवीर्यनंदन, राजेश्वर आदि कई नाम होने का वर्णन मिलता है।
 
2. युद्ध : सहस्रबाहु अर्जुन ने अपने जीवन में यूं तो बहुतों से युद्ध लड़े लेकिन उनमें दो लोगों से लड़े गए युद्ध की चर्चा बहुत होती है। पहला लंकाधिपति रावण से युद्ध और दूसरा भगवान परशुराम से युद्ध। रावण से युद्ध में जीत गए और श्री परशुरामजी से हार गए थे। नर्मदा नदी के तट पर महिष्मती (महेश्वर) नरेश हजार बाहों वाले सहस्रबाहु अर्जुन और दस सिर वाले लंकापति रावण के बीच एक बार भयानक युद्ध हुआ। इस युद्ध में रावण हार गया था और उसे बंदी बना लिया गया था। बाद में रावण के पितामह महर्षि पुलत्स्य के आग्रह पर उसे छोड़ा गया। अंत में रावण ने उसे अपना मित्र बना लिया था।
 
3. संपूर्ण धरती पर राज : कहते हैं की इस चंद्रवंशी राजा का धरती के संपूर्ण द्वीपों पर राज था। मत्स्य पुराण में इसका उल्लेख भी मिलता है। भागवत पुराण में सहस्रबाहु महाराज की उत्पत्ति की जन्मकथा का वर्णन मिलता है। उन्होंने भगवान विष्णु की कठोर तपस्या करके 10 वरदान प्राप्त किए और चक्रवर्ती सम्राट की उपाधि धारण की थी।
 
4. सहस्रबाहु का जन्म : सहस्रबाहु का जन्म महाराज हैहय की 10वीं पीढ़ी में माता पद्मिनी के गर्भ से हुआ था। उनका जन्म नाम एकवीर था। चन्द्रवंश के महाराजा कृतवीर्य के पुत्र होने के कारण उन्हें कार्तवीर्य-अर्जुन कहा जाता है। कृतवीर्य के पुत्र अर्जुन थे। कृतवीर्य के पुत्र होने के कारण उन्हें कार्त्तवीर्यार्जुन भी कहा गया।
 
5. दत्तात्रेय के शिष्य : कार्त्तवीर्यार्जुन ने अपनी अराधना से भगवान दत्तात्रेय को प्रसन्न किया था। भगवान दत्तात्रेय ने युद्ध के समय कार्त्तवीर्याजुन को हजार हाथों का बल प्राप्त करने का वरदान दिया था, जिसके कारण उन्हें सहस्त्रार्जुन कहा जाने लगा। इन्हें ही सहस्रबाहु अर्जुन कहा गया।
 
6. महेश्वर थी राज्य की राजधानी : इन्ही के पूर्वज थे महिष्मन्त, जिन्होंने नर्मदा के किनारे महिष्मति (आधुनिक महेश्वर) नामक नगर बसाया। इन्हीं के कुल में आगे चलकर दुर्दुम के उपरांत कनक के चार पुत्रों में सबसे बड़े कृतवीर्य ने महिष्मती के सिंहासन को संभाला। 
7. भार्गवों से शत्रुता : भार्गववंशी ब्राह्मण इनके राज पुरोहित थे। भार्गव प्रमुख जमदग्नि ॠषि (परशुराम के पिता) से कृतवीर्य के मधुर संबंध थे। परशुराम का जिन क्षत्रिय राजाओं से युद्ध हुआ उनमें से हैहयवंशी राजा सहस्त्रार्जुन इनके सगे मौसा थे। जिनके साथ इनके पिता जमदग्नि ॠषि का इनकी माता रेणुका और कपिला कामधेनु गाय को लेकर विवाद हो गया था। इसी के चलते भगवान पराशुराम ने सहस्त्रार्जुन का वध कर दिया था। पराशुरामजी का हैहयवंशी राजाओं से लगभग 36 बार युद्ध हुआ था। क्रोधवश उन्होंने हैहयवंशीय क्षत्रियों की वंश-बेल का विनाश करने की कसम खाई। इसी कसम के तहत उन्होंने इस वंश के लोगों से 36 बार युद्ध कर उनका समूल नाश कर दिया था। तभी से यह भ्रम फैल गया कि परशुराम ने धरती पर से 36 बार क्षत्रियों का नाश कर दिया था।
 
8. माता दुर्गा है कुलदेवी : हैहयवंशी राजाओं की कुल देवी माता दुर्गा है। इनकी कुलदेवी मां दुर्गा जी, देवता शिवजी, वेद यजुर्वेद, शाखा वाजसनेयी, सूत्र परस्कारग्रहसूत्र, गढ़ खडीचा, नदी नर्मदा तथा ध्वज नील, शस्त्र-पूजन कटार और वृक्ष पीपल है।
 
9. जयंती पर दीपोत्सव : सहस्त्रबाहु की जयंती पर इनके अनुयायी इनकी पूजा करते हैं। इस दिन दीपावली की तरह दीये जलाकर दीपोत्सव मनाया जाता है और उनकी महिमा का गुणगाण किया जाता है।
 
10. मंदिर : मध्यप्रदेश में इंदौर के पास महेश्वर नामक स्थान पर सहस्त्रबाहु का प्राचीन मंदिर है, जो कि नर्मदा तट पर बसा है। इस मंदिर के ठीक विपरीत नर्मदा के तट के दूसरे छोर पर नावदा टीला स्थान है जो कि प्राचीन अवशेष के रूप में विख्‍यात है।

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