कौन हैं शनिदेव, जानिए उनका रहस्य....

Webdunia
।।ॐ शं शनैश्चराय नमः।।
 
शनि ग्रह का भगवान शनिदेव से क्या संबंध है यह जानना जरूरी है। पहली बात तो यह जानना भी जरूरी है कि शनिग्रह और शनिदेव दो अलग-अलग है। शनिग्रह को शनिदेव नहीं कहते हैं। शनि ग्रह के अधिपति देव भगवान भैरव हैं।
आकाश में शनि ग्रह वायव्य दिशा में दिखाई देते हैं। वायव्य दिशा के स्वामी भगवान पवनदेव हैं। हमारे सौर्य मंडल में सूर्य सहित जितने भी ग्रह हैं वे किसी भी प्रकार के देवी या देवता नहीं है जैसाकि उनके बारे में ज्योतिष प्रचारित करते हैं। हां, देवताओं के नाम पर ही उक्त ग्रहों के नाम रखे गए हैं। ग्रहों की पूजा करना मूर्खता है। ग्रहों का असर आपके शरीर आपके घर और आपके आसपास के वातावरण पर होता है। इनके बुरे असर से बचने के लिए किसी वस्तुशास्त्री और ज्योतिष के अच्छे जानकार से मिलना चाहिए।
 
वैज्ञानिक दृष्टिकोण : खगोल विज्ञान के अनुसार शनि का व्यास 120500 किमी, 10 किमी प्रति सेकंड की औसत गति से यह सूर्य से औसतन डेढ़ अरब किमी. की दूरी पर रहकर यह ग्रह 29 वर्षों में सूर्य का चक्कर पूरा करता है। गुरु शक्ति पृथ्‍वी से 95 गुना अधिक और आकार में बृहस्पती के बाद इसी का नंबर आता है। माना जाता है कि अपनी धूरी पर घूमने में यह ग्रह नौ घंटे लगाता है।
 
अगले पन्ने पर पढ़े भगवान शनिदेव का पहला रहस्य...
 

पुराणों अनुसार : शनिदेव के सिर पर स्वर्णमुकुट, गले में माला तथा शरीर पर नीले रंग के वस्त्र और शरीर भी इंद्रनीलमणि के समान। यह गिद्ध पर सवार रहते हैं। इनके हाथों में धनुष, बाण, त्रिशूल रहते हैं। शनि को 33 देवताओं में से एक भगवान सूर्य का पुत्र माना गया है। उनकी बहन का नाम देवी यमुना है। यमुना के नाम पर ही एक नदी का नाम यमुना रखा गया है। 
पुराणों में वैसे तो शनि के संबंध में कई विरोधाभासिक कथाएं मिलती है। ब्रह्मपुराण के अनुसार इनके पिता ने चित्ररथ की कन्या से इनका विवाह कर दिया। इनकी पत्नी परम तेजस्विनी थी। एक रात वे पुत्र-प्राप्ति की इच्छा से इनके पास पहुंचीं, पर ये विष्णु के ध्यान में निमग्न थे। पत्नी प्रतीक्षा करके थक गई। उनका ऋतुकाल निष्फल हो गया। 
 
इसलिए पत्नी ने क्रुद्ध होकर शनिदेव को शाप दे दिया कि आज से जिसे तुम देख लोगे, वह नष्ट हो जाएगा। लेकिन बाद में पत्नी को अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ, किंतु शाप के प्रतीकार की शक्ति उसमें न थी, तभी से शनि देवता अपना सिर नीचा करके रहने लगे। क्योंकि ये नहीं चाहते थे कि इनके द्वारा किसी का अनिष्ट हो।
 
हालांकि शनि की दृष्टी एक बार शिव पर पड़ी तो उनको बैल बनकर जंगल-जंगल भटकना पड़ा। रावण पर पड़ी तो उनको भी असहाय बनकर मौत की शरण में जाना पड़ा। यदि भगवान शनि किसी को क्रूध होकर देख लें तो समझों उसका बंटा ढाल। मात्र हनुमानजी ही एक ऐसे देवता हैं जिन पर शनि का कोई असर नहीं होता और वे अपने भक्तों को भी उनके असर से बचा लेते हैं।
 
अगले पन्ने पर पढ़े भगवान शनि का दूसरा रहस्य...
 

न्यायाधीश है शनि : शरीर में सभी नौ ग्रहों के तत्व मौजूद हैं। ग्रह और देव में फर्क होता है, लेकिन देवी या देवता ग्रहों के गृहपति माने गए हैं। इसीलिए प्राचीनकाल में सभी के कार्य नियुक्त कर दिए गए थे।
 
मान्यता है कि सूर्य राजा, बुध मंत्री, मंगल सेनापति, शनि न्यायाधीश और राहु-केतु प्रशासक हैं। इसी प्रकार गुरु अच्छे मार्ग के प्रदर्शक, चंद्र माता और मन का प्रदर्शक, शुक्र है- पति के लिए पत्नी और पत्नी के लिए पति तथा वीर्य बल।
जब समाज में कोई व्यक्ति अपराध करता है तो शनि के आदेश के तहत राहु और केतु उसे दंड देने के लिए सक्रिय हो जाते हैं। शनि की कोर्ट में दंड पहले दिया जाता है, बाद में मुकदमा इस बात के लिए चलता है कि आगे यदि इस व्यक्ति के चाल-चलन ठीक रहे तो दंड की अवधि बीतने के बाद इसे फिर से खुशहाल कर दिया जाए या नहीं।
 
अगले पन्ने पर भगवान शनिदेव का तीसरा रहस्य...
 

शनि को यह पसंद नहीं : शनि को पसंद नहीं है जुआ-सट्टा खेलना, शराब पीना, ब्याजखोरी करना, परस्त्री गमन करना, अप्राकृतिक रूप से संभोग करना, झूठी गवाही देना, निर्दोष लोगों को सताना।
शनि को पसंद नहीं है किसी के पीठ पीछे उसके खिलाफ कोई कार्य करना, चाचा-चाची, माता-पिता, सेवकों और गुरु का अपमान करना, ईश्वर के खिलाफ होना, दांतों को गंदा रखना, तहखाने की कैद हवा को मुक्त करना, भैंस या भैसों को मारना, सांप, कुत्ते और कौवों को सताना आदि।
 
शनि के मूल मंदिर जाने से पूर्व उक्त बातों पर प्रतिबंध लगाना जरूरी अन्यथा अपराधी को उसके अपराध की सजा अवश्य मिलती है।
 
अगले पन्ने पर चौथा रहस्य....
 

अशुभ की निशानी : शनि ग्रह (शनिदेव नहीं) के अशुभ प्रभाव के कारण मकान या मकान का हिस्सा गिर जाता है या क्षति ग्रस्त हो जाता है, नहीं तो कर्ज या लड़ाई-झगड़े के कारण मकान बिक जाता है। अचानक आग लग सकती है। धन, संपत्ति का किसी भी तरह नाश होता है। शनि ग्रह के बुरे असर के कारण दृष्टि, बाल, भवें, कनपटी आदि में खराबी हो जाती है। अंगों के बाल तेजी से झड़ जाते हैं। नजर कमजोर हो जाती है। समय पूर्व दांत और आंख की कमजोरी। पेट में हर दम कब्ज और गैस बनी रहती है।
शुभ की निशानी : शनि ग्रह का आपके शरीर पर यदि अच्छा प्रभाव पड़ रहा है तो व्यक्ति हर क्षेत्र में प्रगति करता है। उसके जीवन में किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होता। बाल और नाखून मजबूत होते हैं। ऐसा व्यक्ति न्यायप्रिय होता है और समाज में मान-सम्मान खूब रहता हैं।
 
उपाय : सर्वप्रथम भगवान भैरव की उपासना करें। शनि की शांति के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप भी कर सकते हैं। तिल, उड़द, भैंस, लोहा, तेल, काला वस्त्र, काली गौ, और जूता दान देना चाहिए। कौवे को प्रतिदिन रोटी खिलावे। छायादान करें, अर्थात कटोरी में थोड़ा-सा सरसो का तेल लेकर अपना चेहरा देखकर शनि मंदिर में अपने पापो की क्षमा माँगते हुए रख आएं। दांत साफ रखें। नशा न करें। पेट साफ रखें। अंधे-अपंगों, सेवकों और सफाईकर्मियों से अच्छा व्यवहार रखें। 
 
सावधानी : कुंडली के प्रथम भाव यानी लग्न में हो तो भिखारी को तांबा या तांबे का सिक्का कभी दान न करें अन्यथा पुत्र को कष्ट होगा। यदि आयु भाव में स्थित हो तो धर्मशाला का निर्माण न कराएं। अष्टम भाव में हो तो मकान न बनाएं, न खरीदें। उपरोक्त उपाय भी लाल किताब के जानकार व्यक्ति से पूछकर ही करें।
 
अगले पन्ने पर पांचवां रहस्य...
 

शनि ग्रह के देवता: भैरवजी
शनिवेद का गोत्र: कश्यप
शनिदेव की जाति: क्षत्रिय
शनिदेव का रंग: श्याम, नीला
शनिदेव का वाहन: गीद्ध, भैंसा
शनिदेव के अन्य नाम : यमाग्रज, छायात्मज, नीलकाय, क्रुर कुशांग, कपिलाक्ष, अकैसुबन, असितसौरी और पंगु इत्यादि। 
अब जानिए शनि ग्रह की बातें.....
 
शनि ग्रह की दिशा: वायव्य 
शनि ग्रह की वस्तु: लोहा, फौलाद
शनि ग्रह की पोशाक: जुराब, जूता
शनि ग्रह का पशु: भैंस या भैंसा
शनि ग्रह का वृक्ष: कीकर, आक, खजूर का वृक्ष
शनि ग्रह की राशि: बु.शु.रा.। सू, चं.मं.। बृह.
शनि ग्रह का भ्रमण: अढ़ाई वर्ष
शनि ग्रह का शरीर के अंग: दृष्टि, बाल, भवें, कनपटी
शनि ग्रह संबंधी पेशा: लुहार, तरखान, मोची और मशीनमेन।
शनि ग्रह के असर की सिफत: मुर्ख, अक्खड़, कारिगर
शनि ग्रह के असर का गुण: देखना, भालना, चालाकी, मौत, बीमारी।
शनि ग्रह के असर की शक्ति: जादूमंत्र देखने दिखाने की शक्ति, मंगल के साथ हो तो सर्वाधिक बलशाली।
शनि की राशि: मकर और कुम्भ का स्वामी। तुला में उच्च का और मेष में नीच का माना गया है। ग्यारहवां भाव पक्का घर।
 
अंतत: शनिदेव और शनि ग्रह में फर्क करना सीखें... 

Vrishabha Sankranti 2024: सूर्य के वृषभ राशि में प्रवेश से क्या होगा 12 राशियों पर इसका प्रभाव

Khatu Syam Baba : श्याम बाबा को क्यों कहते हैं- 'हारे का सहारा खाटू श्याम हमारा'

Maa lakshmi : मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए तुलसी पर चढ़ाएं ये 5 चीज़

Shukra Gochar : शुक्र करेंगे अपनी ही राशि में प्रवेश, 5 राशियों के लोग होने वाले हैं मालामाल

Guru Gochar 2025 : 3 गुना अतिचारी हुए बृहस्पति, 3 राशियों पर छा जाएंगे संकट के बादल

19 मई 2024 : आपका जन्मदिन

19 मई 2024, रविवार के शुभ मुहूर्त

Chinnamasta jayanti 2024: क्यों मनाई जाती है छिन्नमस्ता जयंती, कब है और जानिए महत्व

Narasimha jayanti 2024: भगवान नरसिंह जयन्ती पर जानें पूजा के शुभ मुहूर्त और पूजन विधि

Vaishakha Purnima 2024: वैशाख पूर्णिमा के दिन करें ये 5 अचूक उपाय, धन की होगी वर्षा