क्यों करते हैं प्रसाद वितरण, जानिए

अनिरुद्ध जोशी
' पत्रं, पुष्पं, फलं, तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति
तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मन:।'

अर्थ : जो कोई भक्त मेरे लिए प्रेम से पत्र, पुष्प, फल, जल आदि अर्पण करता है, उस शुद्ध बुद्धि निष्काम प्रेमी का प्रेमपूर्वक अर्पण किया हुआ वह पत्र-पुष्पादि मैं सगुण रूप में प्रकट होकर प्रीति सहित खाता हूं। -श्रीकृष्ण

प्रासाद चढ़ावें को नैवेद्य, आहुति और हव्य से जोड़कर देखा जाता रहा है, लेकिन प्रसाद को प्राचीन काल से ही नैवेद्य कहते हैं जो कि शुद्ध और सात्विक अर्पण होता है। इसके संबंध किसी बलि आदि से नहीं होता। हवन की अग्नि को अर्पित किए गए भोजन को हव्य कहते हैं। यज्ञ को अर्पित किए गए भोजन को आहुति कहा जाता है। दोनों का अर्थ एक ही होता है। हवन किसी देवी-देवता के लिए और यज्ञ किसी खास मकसद के लिए।

प्राचीनकाल से ही प्रत्येक हिन्दू भोजन करते वक्त उसका कुछ हिस्सा देवी-देवताओं को समर्पित करते आया है। यज्ञ के अलावा वह घर-परिवार में भोजन का एक हिस्सा अग्नि को सपर्पित करता था। अग्नि उस हिस्से को देवताओं तक पहुंचा देता था। चढा़ए जाने के उपरांत नैवेद्य द्रव्य निर्माल्य कहलाता है।

यज्ञ, हवन, पूजा और अन्न ग्रहण करने से पहले भगवान को नैवेद्य एवं भोग अर्पण की शुरुआत वैदिक काल से ही रही है। ‘शतपत ब्राह्मण’ ग्रंथ में यज्ञ को साक्षात भगवान का स्वरूप कहा गया है। यज्ञ में यजमान सर्वश्रेष्ठ वस्तुएं हविरूप से अर्पण कर देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहता है।

शास्त्रों में विधान है कि यज्ञ में भोजन पहले दूसरों को खिलाकर यजमान करेंगे। वेदों के अनुसार यज्ञ में हृविष्यान्न और नैवेद्य समर्पित करने से व्यक्ति देव ऋण से मुक्त होता है। प्राचीन समय में यह नैवेद्य (भोग) अग्नि में आहुति रूप में ही दिया जाता था, लेकिन अब इसका स्वरूप थोड़ा-सा बदल गया है।

पूजा-पाठ या आरती के बाद तुलसीकृत जलामृत व पंचामृत के बाद बांटे जाने वाले पदार्थ को प्रसाद कहते हैं। पूजा के समय जब कोई खाद्य सामग्री देवी-देवताओं के समक्ष प्रस्तुत की जाती है तो वह सामग्री प्रसाद के रूप में वितरण होती है। इसे नैवेद्य भी कहते हैं।

 

कौन से देवता को कौन सा चढ़ता नैवेद्य...

 


प्रत्येक देवी या देवता का नैवेद्य अलग-अलग होता है। यह नैवेद्य या प्रसाद जब व्यक्ति भक्ति-भावना से ग्रहण करता है तो उसमें विद्यमान शक्ति से उसे लाभ मिलता है।

कौन से देवता को कौन सा नैवेद्य :
1. ब्रह्माजी को...
2. विष्णुजी को खीर या सूजी का हलवे का नैवेद्य बहुत पसंद है।
3. शिव को भांग और पंचामृत का नैवेद्य पसंद है।
4. सरस्वती को दूध, पंचामृत, दही, मक्खन, सफेद तिल के लड्डू तथा धान का लावा पसंद है।
5. लक्ष्मीजी को सफेद रंग के मिष्ठान्न, केसर भात बहुत पसंद होते हैं।
6. दुर्गाजी को खीर, मालपुए, पूरणपोली, केले, नारियल और मिष्ठान्न बहुत पसंद हैं।
7. गणेशजी को मोदक या लड्डू का नैवेद्य अच्छा लगता है।
8. श्रीरामजी को केसर भात, खीर, धनिए का प्रसाद आदि पसंद हैं।
9. हनुमानजी को हलुआ, पंच मेवा, गुड़ से बने लड्डू या रोठ, डंठल वाला पान और केसर भात बहुत पसंद है।
9. श्रीकृष्ण को माखन और मिश्री का नैवेद्य बहुत पसंद है।

अगले पन्ने पर कैसे चढ़ाएं नैवेद्य...


नैवेद्य चढ़ाए जाने के नियम :
* नमक, मिर्च और तेल का प्रयोग नैवेद्य में नहीं किया जाता है।
* नैवेद्य में नमक की जगह मिष्ठान्न रखे जाते हैं।
* प्रत्येक पकवान पर तुलसी का एक पत्ता रखा जाता है।
* नैवेद्य की थाली तुरंत भगवान के आगे से हटाना नहीं चाहिए।
* शिवजी के नैवेद्य में तुलसी की जगह बेल और गणेशजी के नैवेद्य में दूर्वा रखते हैं।
* नैवेद्य देवता के दक्षिण भाग में रखना चाहिए।
* कुछ ग्रंथों का मत है कि पक्व नैवेद्य देवता के बाईं तरफ तथा कच्चा दाहिनी तरफ रखना चाहिए।
* भोग लगाने के लिए भोजन एवं जल पहले अग्नि के समक्ष रखें। फिर देवों का आह्वान करने के लिए जल छिड़कें।
* तैयार सभी व्यंजनों से थोड़ा-थोड़ा हिस्सा अग्निदेव को मंत्रोच्चार के साथ स्मरण कर समर्पित करें। अंत में देव आचमन के लिए मंत्रोच्चार से पुन: जल छिड़कें और हाथ जोड़कर नमन करें।
* भोजन के अंत में भोग का यह अंश गाय, कुत्ते और कौए को दिया जाना चाहिए।
* पीतल की थाली या केले के पत्ते पर ही नैवेद्य परोसा जाए।
* देवता को निवेदित करना ही नैवेद्य है। सभी प्रकार के प्रसाद में निम्न प्रदार्थ प्रमुख रूप से रखे जाते हैं- दूध-शकर, मिश्री, शकर-नारियल, गुड़-नारियल, फल, खीर, भोजन इत्यादि पदार्थ।

आखिर क्या फायदा होगा नैवेद्य अर्पित कर उसे खाने से...


* मन और मस्तिष्क को स्वच्छ, निर्मल और सकारात्मक बनाने के लिए हिन्दू धर्म में कई रीति-रिवाज, परंपरा और उपाय निर्मित किए गए हैं। सकारात्मक भाव से मन शांतचित्त रहता है। शांतचित्त मन से ही व्यक्ति के जीवन के संताप और दुख मिटते हैं।

* लगातार प्रसाद वितरण करते रहने के कारण लोगों के मन में भी आपके प्रति अच्छे भावों का विकास होता है। इससे किसी के भी मन में आपके प्रति राग-द्वेष नहीं पनपता और आपके मन में भी उसके प्रति प्रेम रहता है।

* लगातार भगवान से जुड़े रहने से चित्त की दशा और दिशा बदल जाती है। इससे दिव्यता का अनुभव होता है और जीवन के संकटों में आत्मबल प्राप्त होता है। देवी और देवता भी संकटों के समय साथ खड़े रहते हैं।

* भजन, कीर्तन, नैवेद्य आदि धार्मिक कर्म करने से जहां भगवान के प्रति आस्था बढ़ती है वहीं शांति और सकारात्मक भाव का अनुभव होता रहता है। इससे इस जीवन के बाद भगवान के उस धाम में भगवान की सेवा की प्राप्ति होती है और अगला जीवन और भी अच्छे से शांति व समृद्धिपूर्वक व्यतीत होता है।

* श्रीमद् भगवद् गीता (7/23) के अनुसार अंत में हमें उन्हीं देवी-देवताओं के स्वर्ग, इत्यादि धामों में वास मिलता है जिसकी हम आराधना करते रहते हैं।

श्रीमद् भगवद् गीता में भगवान श्रीकृष्ण, अर्जुन के माध्यम से हमें यह भी बताते हैं कि देवी-देवताओं के धाम जाने के बाद फिर पुनर्जन्म होता है अर्थात देवी-देवताओं का भजन करने से, उनका प्रसाद खाने से व उनके धाम तक पहुंचने पर भी जन्म-मृत्यु का चक्र खत्म नहीं होता है। (श्रीगीता 8/16)।

सम्बंधित जानकारी

Show comments

Vrishabha Sankranti 2024: सूर्य के वृषभ राशि में प्रवेश से क्या होगा 12 राशियों पर इसका प्रभाव

Khatu Syam Baba : श्याम बाबा को क्यों कहते हैं- 'हारे का सहारा खाटू श्याम हमारा'

Maa lakshmi : मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए तुलसी पर चढ़ाएं ये 5 चीज़

Shukra Gochar : शुक्र करेंगे अपनी ही राशि में प्रवेश, 5 राशियों के लोग होने वाले हैं मालामाल

Guru Gochar 2025 : 3 गुना अतिचारी हुए बृहस्पति, 3 राशियों पर छा जाएंगे संकट के बादल

19 मई 2024 : आपका जन्मदिन

19 मई 2024, रविवार के शुभ मुहूर्त

Chinnamasta jayanti 2024: क्यों मनाई जाती है छिन्नमस्ता जयंती, कब है और जानिए महत्व

Narasimha jayanti 2024: भगवान नरसिंह जयन्ती पर जानें पूजा के शुभ मुहूर्त और पूजन विधि

Vaishakha Purnima 2024: वैशाख पूर्णिमा के दिन करें ये 5 अचूक उपाय, धन की होगी वर्षा