मंत्र साधना और जप के चमत्कारिक लाभ, जानिए...

अनिरुद्ध जोशी
हिन्दू धर्म में मंत्र जपने का बहुत महत्व है। मन को एक तंत्र में लाना ही मंत्र होता है। उदाहरणार्थ यदि आपके मन में एक साथ एक हजार विचार चल रहे हैं तो उन सभी को समाप्त करके मात्र एक विचार को ही स्थापित करना ही मंत्र का लक्ष्य होता है। यह लक्ष्य प्राप्त करने के बाद आपका दिमाग एक आयामी और सही दिशा में गति करने वाला होगा।
जब ऐसा हो जाता है तो कहते हैं कि मंत्र सिद्ध हो गया। ऐसा मंत्र को लगातार जपते रहने से होता है। यदि आपका ध्यान इधर, उधर भटक रहा है तो फिर मंत्र को सिद्ध होने में भी विलंब होगा। कहते हैं कि 'करत-करत अभ्यास से जडमति होत सुजान। रसरी आवत-जात से सिल पर पड़त निसान॥'
 
इसी तरह लगातार जप का अभ्यास करते रहने से आपके चित्त में वह मंत्र इस कदर जम जाता है कि फिर नींद में भी वह चलता रहता है और अंतत: एक दिन वह मंत्र सिद्ध हो जाता है। दरअसल, मन जब मंत्र के अधीन हो जाता है तब वह सिद्ध होने लगता है। अब सवाल यह उठता है कि सिद्ध होने के बाद क्या होता है या कि उसका क्या लाभ? आओ अगले पन्नों पर इसे जानते हैं।

मंत्र से क्या होता है : मं‍त्र से किसी देवी या देवता को साधा जाता है, मंत्र से किसी भूत या पिशाच को भी साधा जाता है और मं‍त्र से किसी यक्षिणी और यक्ष को भी साधा जाता है।  'मंत्र साधना' भौतिक बाधाओं का आध्यात्मिक उपचार है। यदि आपके जीवन में किसी भी प्रकार की समस्या या बाधा है तो उस समस्या को मंत्र जप के माध्यम से हल कर सकते हैं।
मंत्र के द्वारा हम खुद के मन या मस्तिष्क को बुरे विचारों से दूर रखकर उसे नए और अच्छे विचारों में बदल सकते हैं। लगातार अच्‍ची भावना और विचारों में रत रहने से जीवन में हो रही बुरी घटनाएं रुक जाती है और अच्छी घटनाएं होने लगती है। यदि आप सात्विक रूप से निश्चित समय और निश्चित स्थान पर बैठक मंत्र प्रतिदिन मंत्र का जप करते हैं तो आपके मन में आत्मविश्वास बढ़ता है साथ ही आपमें आशावादी दृष्टिकोण भी विकसित होता है जो कि जीवन के लिए जरूरी है।
 
 

माला जपना क्या है?
किसी मंत्र, भगवान का नाम या किसी श्लोक का जप करना हिन्दू धर्म में वैदिक काल से ही प्रचलित रहा है। जप-साधना में मंत्रों की निश्चित संख्या होती है अत: जप में गणना आवश्यक है। जप गणना के लिए माला का प्रयोग किया जाता है। हिन्दू शास्त्रों में जप करने के तरीके और महत्व को बताया गया है। कहते हैं कि बौद्ध धर्म के कारण यह परंपरा अरब और यूनान में प्रचलित हो गई। अंगिरा ऋषि के अनुसार- 'असंख्या तु यज्ज्प्तं, तत्सर्वं निष्फलं भवेत'यानी बिना माला के संख्याहीन जप का कोई फल नहीं मिलता है।
माला नियम : जप करते वक्त माला फेरी जाती है जिससे जप संख्या का पता चलता है। यह माला 108 मनकों की होती है। जिस माला से जाप करें, उसे दाहिने हाथ में रखना चाहिए। जप करते समय माला का भूमि पर स्पर्श नहीं होना चाहिए। 

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माला के प्रकार : रक्त चंदन, लाल चंदन, मूंगा, स्फटिक, रुद्राक्ष, काठ, तुलसी, मोती, कीमती पत्थर एवं कमल गट्टे आदि प्रकार की माला होती है।

मुख्यत: 3 प्रकार के मंत्र होते हैं- 1.वैदिक मंत्र, 2.तांत्रिक मंत्र और 3.शाबर मंत्र। 
मंत्र जप के भेद- 1.वाचिक जप, 2. मानस जप और 3. उपाशु जप।
 
वाचिक जप में ऊंचे स्वर में स्पष्ट शब्दों में मंत्र का उच्चारण किया जाता है। मानस जप का अर्थ मन ही मन जप करना। उपांशु जप का अर्थ जिसमें जप करने वाले की जीभ या ओष्ठ हिलते हुए दिखाई देते हैं लेकिन आवाज नहीं सुनाई देती। बिलकुल धीमी गति में जप करना ही उपांशु जप है।
मंत्र नियम : मंत्र-साधना में विशेष ध्यान देने वाली बात है- मंत्र का सही उच्चारण। दूसरी बात जिस मंत्र का जप अथवा अनुष्ठान करना है, उसका अर्घ्य पहले से लेना चाहिए। मंत्र सिद्धि के लिए आवश्यक है कि मंत्र को गुप्त रखा जाए। प्रतिदिन के जप से ही सिद्धि होती है।
 
किसी विशिष्ट सिद्धि के लिए सूर्य अथवा चंद्रग्रहण के समय किसी भी नदी में खड़े होकर जप करना चाहिए। इसमें किया गया जप शीघ्र लाभदायक होता है। जप का दशांश हवन करना चाहिए और ब्राह्मणों या गरीबों को भोजन कराना चाहिए।

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