गणेशजी की पूजा के 4 खास दिन

अनिरुद्ध जोशी
पार्वती के पुत्र गजानन गणेश के भक्तों के समूह को ही गाणपत्य संप्रदाय का माना जाता है, जो गूढ़ हिंदू संप्रदाय के सदस्य हैं। इस संप्रदाय का प्रचलन महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में था। भगवान गणेश की प्रतिमा और उनकी पूजा दुनियाभर की प्राचीन सभ्यताओं प्रचलित थी। वैसे तो हर मांगलिक कार्य या पूजा के पूर्व गणेशजी की पूजा का प्रचलन है फिर भी आओ जानते हैं गणेशजी की पूजा के खास 4 दिन।
 
 
चतुर्थी के दिन करें पूजा : प्रत्येक माह में दो चतुर्थी होती है। इस तरह 24 चतुर्थी और प्रत्येक तीन वर्ष बाद अधिमास की मिलाकर 26 चतुर्थी होती है। सभी चतुर्थी की महिमा और महत्व अलग-अलग है। इस दिन भगवान गणेशजी की पूजा का विशेष फल मिलता है।
 
बुधवार को करें पूजा : बुधवार का दिन गणेशजी का दिन माना गया है। इस दिन भगवान गणेशजी की विधिवत पूजा और आराधना करना चाहिए।
 
विशेष चतुर्थी को पूजा :
 
1. विनायक चतुर्थी : चतुर्थी (चौथ) के देवता हैं शिवपुत्र गणेश। इस तिथि में भगवान गणेश का पूजन से सभी विघ्नों का नाश हो जाता है। भाद्र माह की चतुर्थी को गणेशजी का जन्म हुआ था, जिसे विनायक चतुर्थी कहते हैं। कई स्थानों पर विनायक चतुर्थी को 'वरद विनायक चतुर्थी' और 'गणेश चतुर्थी' के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान गणेश की आराधना सुख-सौभाग्य की दृष्टि से श्रेष्ठ है।
 
2. संकष्टी चतुर्थी : माघ मास के कृष्ण पक्ष को आने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी, माघी चतुर्थी या तिल चौथ कहा जाता है। बारह माह के अनुक्रम में यह सबसे बड़ी चतुर्थी मानी गई है। चतुर्थी के व्रतों के पालन से संकट से मुक्ति मिलती है और आर्थिक लाभ प्राप्त होता है।
 
3. अनंत चतुर्दशी : अनंत चतुर्दशी भाद्रपद के शुक्ल पक्ष में आती है। डोल ग्यारस के बाद अनंत चतुर्दशी और उसके बाद पूर्णिमा। इस दिन 10 दिननी गणेश उत्सव के बाद भगवान गणेश की प्रतिमा का विसर्जन होता है।  गणेश चतुर्थी से लेकर दस दिनों तक गणेशजी का पूजन किया जाता है और ग्याहरवें दिन पूरे विधि-विधान के साथ विसर्जन किया जाता है।
 
4. दिवाली के दिन : दीपावली के दिन महालक्ष्मी की पूजा के दौरान भगवान गणेश की पूजा का भी प्रचलिन है। 
 
5. बुधवार की चतुर्थी : यह खला तिथि हैं। तिथि 'रिक्ता संज्ञक' कहलाती है। अतः इसमें शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। यदि चतुर्थी गुरुवार को हो तो मृत्युदा होती है और शनिवार की चतुर्थी सिद्धिदा होती है और चतुर्थी के 'रिक्ता' होने का दोष उस विशेष स्थिति में लगभग समाप्त हो जाता है। चतुर्थी तिथि की दिशा नैऋत्य है। अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं और पूर्णिमा के बाद कृष्ण पक्ष में आने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं।

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