श्रावण माह में नहीं रखेंगे व्रत तो पछताएंगे

अनिरुद्ध जोशी
हिन्दू धर्म के 10 प्रमुख नियम है:- 1.ईश्वर प्राणिधान, 2.संध्योपासना, 3.व्रत, 4.तीर्थ, 5.त्योहार, 6.दान, 7.यज्ञ, 8.संस्कार, 9.सेवा और 10.धर्म प्रचार। ईश्वर प्राणिधान का अर्थ ब्रह्म की सत्य है उसी के प्रति समर्पित रहें, संध्या वंदन एक विशेष प्रार्थना है तो आठ प्रहर में से दो प्रहर की खास होती है, व्रतों में श्रावण के पूरे माह उपवास रखना जरूरी, तीथों में चार धाम और काशी की यात्रा का ही पुण्य है, दान में अन्नदान श्रेष्ठ, त्योहार-पर्व में मकर संक्रांति और कुंभ पर्व ही श्रेष्ठ है, यज्ञों में पंचयज्ञ का ही का महत्व है, सेवा कार्य में अनाथ, गरीब, समाज और देश की सेवा, 16 संस्कार के अनुरूप ही वैदिक नियम से जीवन के महत्वपूर्ण कार्य संपन्न करना जरूरी है और अत में खुद के धर्म का प्रचार प्रसार करें। उपरोक्त में से व्रत के संबंध में जानिए..
 
सप्ताह के व्रतों में गुरुवार श्रेष्ठ, पक्ष के व्रतों में एकादशी और प्रदोष ही श्रेष्ठ, वर्ष के व्रतों में चतुर्मास श्रेष्ठ और चतुर्मास में सबसे श्रेष्ठ श्रावण का महीना है। श्रावण माह में उपाकर्म व्रत का महत्व ज्यादा है। इसे श्रावणी भी कहते हैं।
 
संपूर्ण माह रखें व्रत : श्रावण मास में व्रत रखना सबसे श्रेष्ठ माना गया है। यह पाप को मिटाने वाला और मनोकामना की पूर्ति करने वाला माह है। श्रावण माह से प्रेरित होकर ही सभी धर्मों में विशेष माह में व्रत रखने के प्रचलन की शुरुआत हुई। जिस तरह गुड फ्राइडे के पहले ईसाइयों में 40 दिन के उपवास चलते हैं और जिस तरह इस्लाम में रमजान माह में रोजे (उपवास) रखे जाते हैं उसी तरह हिन्दू धर्म में श्रावण मास को पवित्र और व्रत रखने वाला माह माना गया है। पूरे श्रावण माह में निराहारी या फलाहारी रहने की हिदायत दी गई है। इस माह में शास्त्र अनुसार ही व्रतों का पालन करना चाहिए। मन से या मनमानों व्रतों से दूर रहना चाहिए।
 
व्रत ही तप है। यही उपवास है। इन व्रतों को कैसे और कब किया जाए, इसका अलग नियम है। नियम से हटकर जो मनमाने व्रत या उपवास करते हैं उनका कोई धार्मिक महत्व नहीं। व्रत से जीवन में किसी भी प्रकार का रोग और शोक नहीं रहता। व्रत से ही मोक्ष प्राप्त किया जाता है। श्रावण माह को व्रत के लिए नियुक्त किया गया है।
 
सिर्फ सोमवार को ही न रखें व्रत : चातुर्मास 4 महीने की अवधि होता है, जो आषाढ़ शुक्ल एकादशी से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चलता है। यह चार माह उन लोगों के लिए व्रतों का होता है जो ध्यान, साधना या उपासना कर रहे हैं, लेकिन श्रावण माह में व्रत रखना प्रत्येक हिंदू का कर्तव्य होता है। इस माह में अधिकतर हिन्दू बस सोमवार को ही व्रत रखकर समझता है कि उसने श्रावण के व्रत रख लिए, जबकि ऐसा नहीं है संपूर्ण माह व्रत रखने से ही व्रत का लाभ मिलता है।
 
उक्त 4 माह को व्रतों का माह इसलिए कहा गया है कि उक्त 4 माह में जहां हमारी पाचनशक्ति कमजोर पड़ती है वहीं भोजन और जल में बैक्टीरिया की तादाद भी बढ़ जाती है। उक्त 4 माह हैं- श्रावण, भाद्रपद, आश्‍विन और कार्तिक। चातुर्मास के प्रारंभ को 'देवशयनी एकादशी' कहा जाता है और अंत को 'देवोत्थान एकादशी'।
 
उक्त 4 माह में से श्रावण माह तो सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। इस संपूर्ण माह व्यक्ति को व्रत का पालन करना चाहिए। ऐसा नहीं कि सिर्फ सोमवार को ही उपवास किया और बाकी वार खूब खाया। उपवास में भी ऐसे नहीं कि साबूदाने की खिचड़ी खा ली और खूब मजे से दिन बिता लिया। शास्त्रों में जो लिखा है उसी का पालन करना चाहिए। इस संपूर्ण माह फलाहार ही किया जाता है या फिर सिर्फ जल पीकर ही समय गुजारना होता है। उक्त 4 माह में क्या खाएं, इसकी जानकारी नीचे दी जा रही है।
 
ये नियम पालें : इस दौरान फर्श पर सोना और सूर्योदय से पहले उठना बहुत शुभ माना जाता है। उठने के बाद अच्छे से स्नान करना और अधिकतर समय मौन रहना चाहिए। वैसे साधुओं के नियम कड़े होते हैं। दिन में केवल एक ही बार भोजन करना चाहिए।
 
वर्जित कार्य : उक्त 4 माह में विवाह संस्कार, जातकर्म संस्कार, गृह प्रवेश आदि सभी मंगल कार्य निषेध माने गए हैं।
 
इस व्रत में दूध, शकर, दही, तेल, बैंगन, पत्तेदार सब्जियां, नमकीन या मसालेदार भोजन, मिठाई, सुपारी, मांस और मदिरा का सेवन नहीं किया जाता। श्रावण में पत्तेदार सब्जियां यथा पालक, साग इत्यादि, भाद्रपद में दही, आश्विन में दूध, कार्तिक में प्याज, लहसुन और उड़द की दाल आदि का त्याग कर दिया जाता है।
 
पछताएंगे : यदि आप श्रावण माह में व्रत के नियमों का पालन नहीं करते हैं तो आप पछताएंगे। यह माह आपको सेहत और मानसिक रूप से मजबूत करता है और पापों का नाश भी करता है। यदि आप इस माह नियम विरूद्ध अन्न ग्रहण करते हैं, ब्रह्मचर्य का पालन नहीं करते हैं तो निश्चित ही आप गंभीर रोग या किसी भी प्रकार के शोक से ग्रस्त हो सकते हैं। आप पर शिव के अपमान का पाप भी लग सकता है।
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