सुपर मून : जानिए शरद पूर्णिमा का क्या कहता है साइंस

Webdunia
शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2022 (14:17 IST)
9 अक्टूबर 2022 को शरद पूर्णिमा का व्रत रखा जाएगा। वर्ष में 24 पूर्णिमाएं होती हैं जिसमें से शरद पूर्णिमा का चंद्रमा अन्य पूर्णिमा के चंद्रमाओं से बड़ा और भिन्न दिखाई देता है। यह पूर्णिमा अश्विन मास में आती है। इसका चांद्र नीला दिखाई देता है। आओ जानते हैं कि आखिर शरद पूनम के चंद्रमा का क्या है सांइस।
 
1. सबसे बड़ा दिखाई देता है चंद्रमा : शरद पूर्णिमा के चंद्र अन्य पूर्णिमा के चंद्रमा से थोड़ा बड़ा नज़र आता है। कहते हैं कि शरद पूर्णिमा की रात को चांद आम दिनों की अपेक्षा आकार में 14 फीसद बड़ा और चमकदार दिखाई देता है।
 
2. वर्ष में एक बार ही दिखता है ब्लू मून : कहते हैं कि नीला चांद वर्ष में एक बार ही दिखाई देता है। परंतु विज्ञान की सृष्‍टि में नीले चांद के अलग मायने हैं। हालांकि शरद पूर्णिमा पर भी चांद नीला ही दिखाई देता है। एक शताब्दी में लगभग 41 बार ब्लू मून दिखता है जबकि हर तीन साल में 13 बार फूल मून होता है। 
 
3. ब्लू मून की घटना : वर्ष 2018 में दो बार ऐसा अवसर आया जब ब्लू मून की घटना हुई। उस दौरान पहला ब्लू मून 31 जनवरी जबकि दूसरा 31 मार्च को हुआ। इसी साल शनिवार शरद पूर्णिमा की रात को आसमान में ब्लू मून अफ्रीका, अमेरिका, यूरोप समेत एशिया के कई देशों में दिखाई दिया। इसके बाद अगला ब्लू मून 31 अगस्त 2023 को दिखाई देगा। इसके बाद अगला 'ब्लू मून' साल 2028 और 2037 में देखने को मिलेगा। 
 
4. क्यों दिखाई देता है नीला : चांद प्रकाश के लिए सूर्य पर निर्भर करता है। उसका खुद का कोई प्रकाश नहीं होती। चंद्रमा की सतह से टकराकर लौटने वाली किरणों से ही चांद धरती पर लोगों को दिख पाता है। धरती के कारण सूर्य का पूरा प्रकाश चांद पर नहीं पड़ता जिसके कारण चांद के रंगों में बदलाव आ जाता है। चांद से टकराकर जब रोशनी धरती पर आती है तो उसके रंगों में बदलाव देखने को मिलता है। इसीलिए कभी लाल, नाररंगी, पिंक, नीला, सफेद चमकीला और कभी गुलाबी नजर आता है। कई बार धरती के प्रदूषण के कारण चांद का रंग पीला या नारंगी  भी नजर आता है तो कई बार मौसम में हो रहे बदलावा के कारण।
5. चंद्र मास : उल्लेखनीय है चंद्र मास की अवधि 29 दिन, 12 घंटे, 44 मिनट और 38 सेकेंड की होती है, इसलिए एक ही महीने में दो बार पूर्णिमा होने के लिए पहली पूर्णिमा उस महीने की पहली या दूसरी तारीख को होनी चाहिए।
 
6. सोलह कलाओं से पूर्ण चांद : पौराणिक मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात को चांद पूरी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है। इस दिन चांदनी सबसे तेज प्रकाश वाली होती है। माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत गिरता है। ये किरणें सेहत के लिए काफी लाभदायक मानी जाती है।
 
7. चन्द्रमा का प्रभाव : वैज्ञानिकों के अनुसार इस दिन चन्द्रमा का प्रभाव काफी तेज होता है इन कारणों से शरीर के अंदर रक्‍त में न्यूरॉन सेल्स क्रियाशील हो जाते हैं और ऐसी स्थिति में इंसान ज्यादा उत्तेजित या भावुक रहता है। एक बार नहीं, प्रत्येक पूर्णिमा को ऐसा होता रहता है।
 
8. ज्वार-भाटा : पूर्णिमा के दिन चांद का धरती के जल से संबंध बनती है। जब पूर्णिमा आती है तो समुद्र में ज्वार-भाटा उत्पन्न होता है, क्योंकि चंद्रमा समुद्र के जल को ऊपर की ओर खींचता है। मानव के शरीर में भी लगभग 85 प्रतिशत जल रहता है। पूर्णिमा के दिन इस जल की गति और गुण बदल जाते हैं।
 
9. दिमाग पर असर : पूर्णिमा की रात मन ज्यादा बेचैन रहता है और नींद कम ही आती है। कमजोर दिमाग वाले लोगों के मन में आत्महत्या या हत्या करने के विचार बढ़ जाते हैं।
 
10. चय-उपचय की क्रिया : जिन्हें मंदाग्नि रोग होता है या जिनके पेट में चय-उपचय की क्रिया शिथिल होती है, तब अक्सर सुनने में आता है कि ऐसे व्यक्‍ति भोजन करने के बाद नशा जैसा महसूस करते हैं और नशे में न्यूरॉन सेल्स शिथिल हो जाते हैं जिससे दिमाग का नियंत्रण शरीर पर कम, भावनाओं पर ज्यादा केंद्रित हो जाता है। ऐसे व्यक्‍तियों पर चन्द्रमा का प्रभाव गलत दिशा लेने लगता है। इस कारण पूर्णिमा व्रत का पालन रखने की सलाह दी जाती है।

क्या कर्मों का फल इसी जन्म में मिलता है या अगले जन्म में?

वैशाख अमावस्या का पौराणिक महत्व क्या है?

शनि अपनी मूल त्रिकोण राशि में होंगे वक्री, इन राशियों की चमक जाएगी किस्मत

Akshaya Tritiya 2024: अक्षय तृतीया से शुरू होंगे इन 4 राशियों के शुभ दिन, चमक जाएगा भाग्य

Lok Sabha Elections 2024: चुनाव में वोट देकर सुधारें अपने ग्रह नक्षत्रों को, जानें मतदान देने का तरीका

धरती पर कब आएगा सौर तूफान, हो सकते हैं 10 बड़े भयानक नुकसान

घर के पूजा घर में सुबह और शाम को कितने बजे तक दीया जलाना चाहिए?

Astrology : एक पर एक पैर चढ़ा कर बैठना चाहिए या नहीं?

100 साल के बाद शश और गजकेसरी योग, 3 राशियों के लिए राजयोग की शुरुआत

Varuthini ekadashi 2024: वरुथिनी व्रत का क्या होता है अर्थ और क्या है महत्व