यदि भगवान विश्वनाथ न होते तो यह जगत अंधकारमय हो जाता, क्योंकि प्रकृति जड़ है और जीवात्मा अज्ञानी। अतः इन्हें प्रकाश देने वाले परमात्मा ही हैं। उनके बंधन और मोक्ष भी देखे जाते हैं। अतः विचार करने से सर्वज्ञ परमात्मा शिव के बिना प्राणियों के आदिसर्व की सिद्धि नहीं होती। जैसे रोगी वैद्य के बिना सुख से रहित हो क्लेश उठाते हैं, उसी प्रकार सर्वज्ञ शिव का आश्रय न लेने से संसारी जीव नाना प्रकार के क्लेश भोगते हैं।
अतः यह सिद्ध हुआ कि जीवों का संसार सागर से उद्धार करने वाले स्वामी अनादि सर्वज्ञ परिपूर्ण सदाशिव विद्यमान हैं। भगवान शिव आदि मध्य और अंत से रहित हैं। स्वभाव से ही निर्मल हैं तथा सर्वज्ञ एवं परिपूर्ण हैं। उन्हें शिव नाम से जानना चाहिए। शिव गम में उनके स्वरूप का विशदरूप से वर्णन है। यह पच्चाक्षर मंत्र उनका ही नाम है और वे शिव अभिधेय हैं। अभिधान और अभिरधेय रूप होने के कारण परम शिवस्वरूप यह मंत्र सिद्ध माना गया है।
' ॐ नमः शिवाय' यह जो षड़क्षर शिव वाक्य है, शिव का विधि वाक्य है, अर्थवाद नहीं है। यह उन्हीं शिव का स्वरूप है जो सर्वज्ञ, परिपूर्ण और स्वभावतः निर्मल हैं। सर्वज्ञ शिव ने जिस निर्मल वाक्य पच्चाक्षर मंत्र का प्रणयन किया है, वह प्रमाणभूत ही है, इसमें संयम नहीं है। इसलिए विद्वान पुरुष को चाहिए कि वह ईश्वर के वचनों पर श्रद्धा करे। मंत्रों की संख्या बहुत होने पर भी जिस विमल षडाक्षर मंत्र का सर्वज्ञ शिव ने किया है, उसके समान कहीं कोई दूसरा मंत्र नहीं है।
जिसके हृदय में 'ॐ नमः शिवाय' यह षड़क्षर मंत्र प्रतिष्ठित है, उसे दूसरे बहुसंख्यक मंत्रों और अनेक विस्तृत शास्त्रों से क्या प्रयोजन है? जिसने 'ॐ नमः शिवाय' इस मंत्र का जप दृढ़तापूर्वक अपना लिया है, उसने संपूर्ण शास्त्र पढ़ लिया और समस्त शुभ कृत्यों का अनुष्ठान पूरा कर लिया। आदि में 'नमः' पद से युक्त 'शिवाय' ये तीन अक्षर जिसकी जिह्वा के अग्रभाग में विद्यमान हैं, उसका जीवन सफल हो गया।